तन्खा का तंज, कमलनाथ सरकार गिराने के चक्कर में खुद का ‘‘कांग्रेसीकरण’’ कर बैठी भाजपा

डीएन ब्यूरो

मध्यप्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कार्यकर्ताओं में भारी असंतोष होने का दावा करते हुए राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा ने कटाक्ष किया है कि कमलनाथ नीत कांग्रेस सरकार गिराने के चक्कर में भाजपा खुद का ‘‘कांग्रेसीकरण’’ कर बैठी है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा
राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा


इंदौर: मध्यप्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कार्यकर्ताओं में भारी असंतोष होने का दावा करते हुए राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा ने कटाक्ष किया है कि कमलनाथ नीत कांग्रेस सरकार गिराने के चक्कर में भाजपा खुद का ‘‘कांग्रेसीकरण’’ कर बैठी है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार तन्खा ने इंदौर में संवाददाताओं से कहा कि भाजपा के साथ समस्या यह है कि उसने राज्य मंत्रिमंडल के 50 प्रतिशत पद उन नेताओं को दे दिए हैं जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए थे।

उन्होंने कहा, ‘‘आपने (भाजपा) कमलनाथ सरकार को गिराने के चक्कर में अपनी पार्टी का कांग्रेसीकरण कर दिया है और अपने ही लोगों को मंत्रिमंडल में पर्याप्त स्थान नहीं दिया है।’’

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तन्खा ने कहा कि कांग्रेस से भाजपा में आने के बाद विधानसभा उपचुनाव हारे नेताओं को भी प्रदेश के निगम-मंडलों का अध्यक्ष बना दिया गया है।

गौरतलब है कि वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की सरपरस्ती में कांग्रेस के 22 बागी विधायकों के विधानसभा से त्यागपत्र देकर भाजपा में शामिल होने के कारण तत्कालीन कमलनाथ सरकार का 20 मार्च 2020 को पतन हो गया था। इसके बाद शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा 23 मार्च 2020 को सूबे की सत्ता में लौट आई थी।

तन्खा ने कहा, ‘‘इन दिनों भाजपा में बहुत गहरा असंतोष है। जिन लोगों ने बरसों-बरस वफादारी से भाजपा की सेवा की है, उन्हें बेवफा माना जा रहा है। भाजपा में आज वे लोग वफादार हो गए हैं जो संभवत: पैसा लेने के बाद कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए हैं।’’

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उनसे पूछा गया कि क्या इस साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के सूबे की सत्ता में लौटने पर बजरंग दल के खिलाफ प्रतिबंध लगाने पर विचार किया जाएगा? इस पर तन्खा ने कहा कि यह सूबे में कोई मुद्दा नहीं है और इस बारे में कोई चर्चा तक नहीं कर रहा है।

उन्होंने यह भी कहा कि हिंसाग्रस्त मणिपुर में बहुसंख्यक व अल्पसंख्यक समुदायों के मतभेदों को चर्चा के जरिये सुलझाया जाना चाहिए और किसी भी वर्ग को अपना निजी एजेंडा जबरन आगे नहीं बढ़ाना चाहिए।










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