बंबई हाई कोर्ट ने ऐसे बच्चों को आरक्षण का लाभ न देने पर सरकार को दी बड़ी नसीहत, जानिये क्या कहा
बंबई उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को महाराष्ट्र सरकार के इस रुख से अप्रसन्नता जतायी कि अनाथ बच्चों को दिए जाने वाले आरक्षण का लाभ अभिभावकों द्वारा छोड़ दिये गए बच्चों को नहीं दिया जा सकता। अदालत ने कहा कि राज्य को ऐसे बच्चों के लिए ‘‘संरक्षक’’ के तौर पर काम करना चाहिए। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
मुंबई: बंबई उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को महाराष्ट्र सरकार के इस रुख से अप्रसन्नता जतायी कि अनाथ बच्चों को दिए जाने वाले आरक्षण का लाभ अभिभावकों द्वारा छोड़ दिये गए बच्चों को नहीं दिया जा सकता। अदालत ने कहा कि राज्य को ऐसे बच्चों के लिए ‘‘संरक्षक’’ के तौर पर काम करना चाहिए।
राज्य सरकार अनाथ बच्चों को शिक्षा में एक प्रतिशत आरक्षण प्रदान करती है। हालांकि, इसने उन बच्चों को इस तरह का लाभ देने से इनकार कर दिया, जिन्हें उनके माता-पिता ने छोड़ दिया है क्योंकि वे परिभाषा के अनुसार 'अनाथ' नहीं हैं।
न्यायमूर्ति गौतम पटेल और न्यायमूर्ति नीला गोखले की खंडपीठ शहर के एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) द्वारा उन दो लड़कियों के लिए आरक्षण प्रदान करने के अनुरोध वाली एक याचिका पर सुनवायी कर रही थी उनके माता-पिता ने छोड़ दिया था।
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अदालत द्वारा फटकार लगाए जाने के बाद, सरकार ने दोनों लड़कियों को 'अनाथ' का प्रमाणपत्र प्रदान करने पर सहमति व्यक्त की थी ताकि वे आरक्षण के लिए अनुरोध कर सकें, लेकिन साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि उसका रुख यह है कि अनाथ और अभिभावकों द्वारा छोड़ दिये गए बच्चों के बीच अंतर है।
अदालत ने इस रुख से अप्रसन्नता जताते हुए कहा कि सरकार हर मामले में विरोधाभास से काम करती है। अदालत ने कहा, ‘‘हमें लड़ना है... हमें इसका विरोध करना है, का रवैये क्यों ? यह सरकार कब इस अहसास के प्रति जागेगी कि केवल वही सही नहीं है और अक्सर गलत होती है।’’
पीठ ने महिला एवं बाल विकास विभाग के संयुक्त सचिव शरद अहिरे द्वारा सरकार के रुख को सही ठहराने वाले हलफनामे पर भी अप्रसन्नता व्यक्त की। पीठ ने कहा कि हलफनामा अपमानजनक और निंदनीय है।
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अदालत ने कहा कि राज्य सरकार को अनाथ और अभिभावकों द्वारा छोड़ दिये गए बच्चों के बीच अंतर करने के बजाय ऐसे सभी बच्चों के लिए ‘‘संरक्षक’’ के रूप में कार्य करना चाहिए।
अदालत ने कहा कि वह 31 मार्च को इस मुद्दे पर अपना फैसला सुनाएगी।