आज की दुनिया को धर्म की कम शिक्षा की अधिक जरूरत है: अनुराग कश्यप
फिल्म निर्माता एवं निर्देशक अनुराग कश्यप ने कहा है कि आज की दुनिया को धर्म की कम और शिक्षा की अधिक जरूरत है क्योंकि ‘आस्था’ शक्तिशाली लोगों के लिए अपना एजेंडा आगे बढ़ाने का महज एक औजार बन गई है। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
नयी दिल्ली: फिल्म निर्माता एवं निर्देशक अनुराग कश्यप ने कहा है कि आज की दुनिया को धर्म की कम और शिक्षा की अधिक जरूरत है क्योंकि ‘आस्था’ शक्तिशाली लोगों के लिए अपना एजेंडा आगे बढ़ाने का महज एक औजार बन गई है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक सारा हाशमी और नवाजुद्दीन सिद्दीकी अभिनीत शाजिया इकबाल की लघु फिल्म ‘बेबाक’ के निर्माता अनुराग कश्यप ने कहा कि उन्होंने युवा निर्देशक द्वारा उठाई गई आवाज का समर्थन करने का फैसला किया क्योंकि उसकी (फिल्म की) पटकथा उस संसार को दिखाती है, जिसे उन्होंने नहीं देखा था।
सत्य घटनाओं पर आधारित 20 मिनट की इस लघु फिल्म की कहानी वास्तुकला के क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाह रही छात्रा फातिन खालिदी (हाशमी) के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसे एक छात्रवृत्ति साक्षात्कार के दौरान हिजाब नहीं पहनने को लेकर एक धर्म गुरु की फटकार सुननी पड़ती है।
कश्यप के अनुसार, प्रत्येक धर्म की उत्पत्ति प्राचीन काल में लोगों की रक्षा के लिए उन्हें एक साथ लाने की कोशिश करने की आवश्यकता से हुई थी, जब वैज्ञानिक ज्ञान उपलब्ध नहीं था।
कश्यप (51) ने 'पीटीआई-भाषा' से एक साक्षात्कार में कहा,'' वक्त के साथ लोगों ने विज्ञान के जरिये बहुत सी खोज की है। मुझे लगता है आज की दुनिया में धर्म की आवश्यकता काफी कम है। शिक्षा की जरूरत कहीं अधिक है लेकिन अब धर्म शक्तिशाली लोगों और राजनीतिक नेताओं के लिए अपने एजेंडा को आगे बढ़ाने का एक औजार बन गया है।''
पुरस्कार विजेता फिल्म 'बेबाक' में शीबा चड्ढा और विपिन शर्मा ने भी अभिनय किया है और इसे फिल्म महोत्सव के हिस्से के तहत जियोसिनेमा पर प्रदर्शित किया जा रहा है।
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कश्यप ने कहा कि इकबाल जैसी फिल्में उन्हें विभिन्न दुनिया से परिचित कराती हैं।
उन्होंने कहा,''शाजिया के लेखन का मुझपर गहरा प्रभाव पड़ा क्योंकि उसमें एक दृष्टिकोण है, जो मैंने उसकी पटकथा से सीखा। मैंने वह दुनिया नहीं देखी है। मेरी दुनिया में, मुझे पता है कि छात्रवृत्ति पाने के लिए हमें क्या करना चाहिए।''
कश्यप ने कहा,''ऐसी कई दुनिया है जिन्हें मैंने नहीं देखा है। आप किसी व्यक्ति को उसके काम, लेखन या फिल्म निर्माण के माध्यम से अधिक जानते हैं।'
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे अपने धर्म के बारे में बोलना चाहिए, ना कि किसी और के धर्म के बारे में। मैं अपने समुदाय, अपने लोगों के बारे में बात करूंगा। यदि में बुर्का और हिजाब पर चर्चा में शामिल होउंगा, तब मेरा नजरिया केवल सतही होगा और बाहरी व्यक्ति का होगा।’’
उन्होंने याद किया, ‘‘जब वह चर्चा शुरू हुई, मैं भूल गया कि यहां तक कि मेरी मां भी घूंघट लिया करती थी। घूंघट की लंबाई इस बात पर निर्भर करती थी कि उनके सामने कौन है।’’
समाज में महिलाओं को देखे जाने के दृष्टिकोण पर टिप्पणी करने के लिए कहे जाने पर निर्देशक ने कहा, ‘‘हम महिलाओं को जमींदारी के रूप में देखते हैं।’’
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कश्यप ने कहा कि वह कभी नहीं समझ पाये कि परिवार या समाज की इज्जत केवल महिला से कैसे जुड़ी हुई है।
उन्होंने कहा, ‘‘महिला के साथ जब कभी बदसलूकी होती है, तो यह कहा जाता है कि घर की इज्जत लुट गई। क्यों केवल बेटियों या महिलाओं को घर की इज्जत समझा जाता है? पुरुषों को क्यों नहीं?’’