त्रिपुरा की आदिवासी महिला की बदली जिंदगी, जानिये कैसे किये आजीविका के मौके सृजित

डीएन ब्यूरो

त्रिपुरा में गोमती जिले के वन क्षेत्रों में रह रहे लोगों के लिए आजीविका के मौके सृजित करने और राज्य में मछली पालन को बढ़ाने के लिए बांध के जरिए एक बड़ा जलाशय बनाया गया, जिसके बाद 45 वर्षीय जामिनीसारी मोलसोम की जिंदगी बदल गई। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

त्रिपुरा की आदिवासी महिला की मत्स्य पालन से बदली जिंदगी
त्रिपुरा की आदिवासी महिला की मत्स्य पालन से बदली जिंदगी


अगरतला: त्रिपुरा में गोमती जिले के वन क्षेत्रों में रह रहे लोगों के लिए आजीविका के मौके सृजित करने और राज्य में मछली पालन को बढ़ाने के लिए बांध के जरिए एक बड़ा जलाशय बनाया गया, जिसके बाद 45 वर्षीय जामिनीसारी मोलसोम की जिंदगी बदल गई।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार आदिवासी महिला मोलसोम पहले जिले में पहाड़ियों की ढलानों पर खेती करती थीं और अब पहाड़ियों की तलहटी में स्थित एक गांव में बस गई हैं और नव निर्मित जलाशय में मछली पकड़कर अपने पांच सदस्यीय परिवार का गुजर-बसर कर रही हैं।

वन विभाग की त्रिपुरा जेआईसीए परियोजना के तहत आने वाली वन भूमि में एक हेक्टेयर से अधिक भूमि का बड़ा जलाशय बनाया गया है। इसका मकसद मुख्य रूप से वनों में रहने वाले आदिवासी लोगों के लिए आजीविका के मौके सृजित करना और वैज्ञानिक तरीके से मत्स्य पालन कर मछली उत्पादन को बढ़ाना है।

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मोलसोम ने कहा कि वैकल्पिक आजीविका मिलने के बाद उनके परिवार को एक व्यवस्थित जीवन मिला है और उन्होंने ‘झूमिया’ किसान (स्थानांतरित खेती करने वाले) के तौर पर खानाबदोश जीवन को छोड़ दिया है।

वह अब खुम्पुई स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) की सदस्य हैं और गांव की अन्य नौ आदिवासी महिलाओं के साथ झील में मछली पालन करती हैं और समूह प्रति वर्ष पांच लाख रुपये से अधिक कमाता है।

उन्होंने कहा, ‘‘अब हम व्यवस्थित हो गए हैं। हम मत्स्य पालन के अलावा सूअर पालन और अपनी जमीन पर सब्जियों की खेती कर सकते हैं और बेफिक्र होकर जीवन जी सकते हैं।’’

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त्रिपुरा जेआईसीए परियोजना के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं परियोजना निदेशक डॉ अविनाश एम. कानफडे ने एक नोट में कहा, ‘‘त्रिपुरा जेआईसीए परियोजना के तहत त्रिपुरा के जंगलों में छोटा बांध बनाकर बड़ी संख्या में जलाशय बनाए गए हैं। अगर इन जल क्षेत्रों का पूरी तरह से उपयोग किया जाता है तो मछली उत्पादन में वृद्धि हो सकती है और साथ ही गरीब वन निवासियों के लिए आजीविका के मौके सुनिश्चित हो सकते हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘वन पर निर्भर समुदायों को झूमिया जैसी अपनी पारंपरिक प्रथाओं को छोड़ने का मौका मिल सकता है क्योंकि इससे वनों का क्षरण होता है और वे मत्स्य पालन को अपनी आजीविका के रूप में अपना सकते हैं।’’

मत्स्य पालन विभाग के अधीक्षक बप्पी बासफोर ने कहा कि राज्य में मछली की खपत काफी ज्यादा है। उनके मुताबिक, ‘‘राज्य में प्रति व्यक्ति मछली की खपत प्रति वर्ष 26.26 किलोग्राम और प्रति व्यक्ति मछली उत्पादन 19.47 किलोग्राम है। इसलिए इसकी कमी है। इस परियोजना का उद्देश्य इस अंतर को पूरा करना है।’’










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