DN Exclusive: राफेल डील पर आखिर क्यों बरपा हैं हंगामा, जानें पूरा सच..
राफेल डील को लेकर देश भर में भारी हंगामा मचा हुआ है। कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी द्वारा इस विमान सौदे को मोदी सरकार का सबसे बड़ा घोटाला बताया जा रहा है। अब फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने इसको लेकर बड़ा ख़ुलासा किया है। डाइनामाइट न्यूज़ की इस एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में पढ़ें जानें राफेल विमान सौदे का सच..
नई दिल्ली: भारत और फ्रांस के बीच देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में हुई राफेल डील को लेकर देश की राजनीति में घमासान मचा हुआ है। कांग्रेस इसे मोदी सरकार का सबसे बड़ा घोटाला करार दे रही है और पीएम मोदी से इसको लेकर इस्तीफा देने की मांग की जा रही है। फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के नये खुलासे के बाद से इस डील को लेकर विवाद और गहराने लगा है। ओलांद के बयानों से कांग्रेस के आरोपों को और बल मिल गया है। डाइनामाइट न्यूज़ कि इस रिपोर्ट में पढ़ें आखिर क्या है यह विवाद..
सबसे ताजा बयान
राफेल डील को लेकर फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने अब तक का सबसे बड़ा ख़ुलासा किया है। ओलांद का कहना है कि भारत सरकार ने ही इस सौदे के लिये उन्हें अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस का नाम सुझाया था। भारत की तरफ से उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था, इसलिये दसॉल्ट एविएशन ने इस डील के लिये अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस से बात की।
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गौरतलब है कि राफेल विमान सौदा उसी समय हुआ था जब फ्रांस्वा ओलांस फ्रांस के राष्ट्रपति थे। वर्ष 2015 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फ्रांस की यात्रा पर गए थे तब फ्रांस्वा ओलांद से ही मिले थे। ओलांद के इस खुलासे के बाद से कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल पीएम मोदी समेत भाजपा सरकार पर और अक्रामक हो गये हैं।
राफेल डील का अतीत
भारतीय वायु सेना ने लडा़कू स्क्वाड्रंस की क्षमता बढ़ाने के लिये 126 लड़ाकू विमानों को खरीदने का सबसे पहला प्रस्ताव अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार के सामने रखा था। लेकिन वाजपेयी सरकार के सत्ता में न रहने के कारण कांग्रेस ने इस डील को आगे बढ़ाया। कांग्रेस सरकार में तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटोनी ने 126 एयरक्राफ्ट की खरीद को अगस्त 2007 में मंजूरी दी थी। जिसके बाद राफेल के लिये बोली प्रक्रिया शुरू हुई। और आखिरकार 126 विमानों की खरीद के लिये आरएफपी जारी किया गया।
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क्यों चुने गये राफेल विमान
राफेल को अंतिम तौर पर चुनने से पहले इस बीच अन्य विमानों का परीक्षण भी जारी रहा जिसमें अमेरिका, फ्रांस, स्वीडन, ब्रिटेन के कई अत्याधुनिक तकनीक वाले विमान भी शामिल थे। परीक्षण के बाद आखिरकार फ्रांस के डसॉल्ट राफेल को चुन लिया गया। फाइटर जेट्स के बीच राफेल को चुनने की सबसे बड़ी वजह राफेल की कम कीमत होना था इसके अलावा राफेल का रख-रखाव भी काफी सस्ता था। भारतीय वायुसेना ने 2011 में अंतिम मूल्यांकन के बाद राफेल को हरी झंडी दी।
राफेल का मोदी कनेक्शन
आखिरकार साल 2012 में राफेल को एल-1 बिडर घोषित किया गया और इसके फ्रांस की मैन्युफैक्चरर दसाल्ट एविएशन के साथ कॉन्ट्रैक्ट पर बातचीत शुरू हुई। लेकिन आरएफपी अनुपालन और लागत संबंधी कई मसलों की वजह से यह डील 2014 तक अधूरी ही रही। 2014 में ही भाजपा सत्ता में आयी और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री चुने गये। यहीं से भाजपा सरकार का राफेल डील से जुड़ना शुरु हुआ।
मोदी सरकार ने हासिल किया राफेल
मोदी सरकार ने राफेल कि दिशा दोबारा प्रयास किये और अटके मामलों को सुलझाने का प्रयास शुरू किया। पीएम मोदी की फ्रांस यात्रा के दौरान 2015 में भारत और फ्रांस के बीच इस विमान की खरीद को लेकर समझौता किया गया। मोदी सरकार ने इसके बाद 36 राफेल विमान हासिल करने की बात कहकर सभी को चौका दिया। दोनों देश के बीच विमानों की आपूर्ति को लेकर कई समझौते हस्ताक्षरित किये गये। सुरक्षा मामलों की कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद दोनों देशों के बीच इसके लिये 2016 में आईजीए समझौता हुआ, जिसके तहत 18 महीनों के भीतर भारत के लिये अन्य विमानों की आपूर्ति शुरू करने की बात कही गयी।
बचत का दावा और रिलायंस की एंट्री
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मोदी सरकार ने दावा किया कि उन्हें जिन कीमतों पर राफेल विमान हासिल हुए है, वह कांग्रेस की डील से भी सस्ते है। मोदी सरकार ने दावा किया उसने इस डील में देश के 12,600 करोड़ रुपये बचाए हैं। मैन्युफैक्चरिंग के लिये मोदी सरकार ने 'मेक इन इंडिया' को तव्वजो दी, जिसके लिये अनिल अंबानी की कंपनी का नाम सुझाया गया, जिसका दावा फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति भी कर रहे हैं।
मोदी सरकार पर आरोप और गोपनीयता
कुछ मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक यह पूरा सौदा 7.8 अरब रुपये यानी 58,000 करोड़ रुपये का हुआ। जिसके लिये 15 फीसदी लागत एडवांस में दी जा रही है। कांग्रेस और विपक्षी दल मोदी सरकार के दावों को झुठला रहे हैं। उनका कहना है कि यदि सरकार ने करोड़ों रूपये बचाये है तो फिर सरकार को आंकड़े सार्वजनिक करने में क्या परेशानी है। हालांकि इस सवाल को लेकर सरकार का कहना है कि यह एक रक्षा सौदा है इसलिये गोपनीयता के तहत फ्रांस के साथ इस पर हस्ताक्षर किये गये हैं, जिसे सार्वजनिक करना राष्ट्रहित में नहीं है।
मोदी सरकार से सस्ता यूपीए का राफेल
कांग्रेस का कहना है कि मोदी सरकार ने केवल 36 विमानों के लिए 58,000 करोड़ दिये जबकि यूपीए सरकार ने 126 विमानों के लिए 54,000 करोड़ रुपये में डील की थी। इस हिसाब से कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा एक वमान के लिये 1555 करोड़ रुपये दे रही है, जबकि कांग्रेस 528 करोड़ रुपये दे रही थी।
राफेल को लेकर देश के राजनीतिक दलों में भारी घमासान मचा हुआ है और देश की जनता भी इसकी हकीकत जानने को उत्सुक है।