यूएई जलवायु वार्ता : मीथेन उत्सर्जन को कम करने के लिए त्वरित कार्रवाई पर ध्यान
संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता में मीथेन पर व्यापक वार्ता होने की उम्मीद है। मीथेन दूसरी सबसे प्रमुख ग्रीन हाउस गैस है जिसमें ग्लोबल वार्मिंग बढ़ाने में कार्बन डाई ऑक्साइड की तुलना में अधिक खतरनाक क्षमता है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर
नयी दिल्ली: संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता में मीथेन पर व्यापक वार्ता होने की उम्मीद है। मीथेन दूसरी सबसे प्रमुख ग्रीन हाउस गैस है जिसमें ग्लोबल वार्मिंग बढ़ाने में कार्बन डाई ऑक्साइड की तुलना में अधिक खतरनाक क्षमता है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार अमेरिका और यूरोपीय संघ ने मीथेन पर कार्रवाई की जरूरत पर जोर दिया जो पूर्व औद्योगिक काल (1850-1900) से करीब 30 प्रतिशत ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार है।
इस साल की जलवायु वार्ता (सीओपी28) की मेजबानी कर रहे यूएई द्वारा भी प्रमुख तेल एवं गैस कंपनियों से मीथेन उत्सर्जन कम करने के लिए प्रतिबद्धता जताने की घोषणा करने की उम्मीद है।
ईयू और अमेरिका ने संयुक्त रूप से 2020 के स्तर की तुलना में 2030 तक दुनिया भर में मीथेन उत्सर्जन को 30 प्रतिशत तक कम करने के लिए 2021 में ‘‘वैश्विक मीथेन संकल्प’’ शुरू किया था। लगभग 150 देशों ने इस पर हस्ताक्षर किए हैं, लेकिन चीन, भारत और रूस प्रमुख उत्सर्जकों में से हैं जिनका अब भी इसमें शामिल होना बाकी है।
इस महीने की शुरुआत में दुनिया के शीर्ष दो कार्बन उत्सर्जक देशों अमेरिका और चीन ने ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए अपनी 2035 की राष्ट्रीय योजनाओं में मीथेन को शामिल करने का वादा किया था। यह पहली बार है कि चीन ने ऐसा वादा किया है हालांकि इसके लिए उसने कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं किया है।
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कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम भारत पर भी इस दिशा में सोचने के लिए मजबूर कर सकता है।
नयी दिल्ली स्थित स्वतंत्र जलवायु विचार समूह काउंसिल ऑन एनर्जी एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) के एक शोधार्थी वैभव चतुर्वेदी ने कहा, ‘‘मीथेन उत्सर्जन को लेकर लंबे समय से अकादमिक बहस होती रही है, लेकिन अब इसे भू-राजनीतिक वार्ता में एक बड़े मुद्दे के रूप में पेश किया जा रहा है। इसका मतलब यह नहीं है कि हर कोई मीथेन संकल्प से सहमत होगा, लेकिन इससे कई राष्ट्र यह सोचने के लिए मजबूर होंगे कि मीथेन उत्सर्जित करने वाले क्षेत्रों में आंतरिक रूप से क्या हो रहा है।’’
पर्यावरण मंत्रालय के एक सूत्र ने कहा कि 2035 की जलवायु योजनाओं में मीथेन को शामिल करने के चीन के संकल्प से कृषि क्षेत्र से उत्सर्जित मीथेन पर ‘‘भारत का रुख प्रभावित होने की संभावना नहीं है’’।
चतुर्वेदी ने कहा, ‘‘भारत में 60 प्रतिशत से अधिक मीथेन उत्सर्जन पशुधन क्षेत्र से होता है, इसके बाद चावल की खेती से मीथेन उत्सर्जन होता है। दोनों क्षेत्रों से निपटना हमारे लिए बहुत जटिल है।’’
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के अनुसार, पूर्व-औद्योगिक काल से मीथेन लगभग 30 प्रतिशत ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार है और 1980 के दशक में रिकॉर्ड रखने की शुरुआत के बाद से यह किसी भी अन्य समय की तुलना में तेजी से बढ़ रहा है।
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मीथेन प्राकृतिक स्रोतों और मानवीय गतिविधियों दोनों से आता है। नासा का अनुमान है कि आज का लगभग 60 प्रतिशत मीथेन उत्सर्जन मानवीय गतिविधियों के कारण होता है।
कार्बन डाई ऑक्साइड वायुमंडल में सैकड़ों से हजारों वर्षों तक बनी रहती है। अगर इसका उत्सर्जन तुरंत कम भी कर दिया जाए तब भी सदी के अंत तक इस कमी का जलवायु पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
इसके विपरीत मीथेन का वायुमंडलीय जीवनकाल बहुत कम (लगभग 12 वर्ष) होता है, लेकिन यह बहुत अधिक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है, जो वायुमंडल में मौजूद रहते हुए बहुत अधिक ऊर्जा अवशोषित करती है।
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 2030 तक मानव-जनित मीथेन उत्सर्जन को 45 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। इस कमी से 2045 तक ग्लोबल वार्मिंग में लगभग 0.3 डिग्री सेल्सियस की कमी हो सकती है।