यूपी: जिस आईएएस को सीएम ने लताड़ा वो बना राज्यपाल का दुलारा

डीएन संवाददाता

अजब यूपी का गजब खेल है। यहां के आईएएस यूं नही देश भर में प्रसिद्ध हैं। गजब के कलाकार हैं। एक की काट में दूसरा पावर सेंटर कैसे खोजना है.. कहां कील-कांटा भिड़ाना है कोई इनसे सीखे। हम बात कर रहे हैं यूपी के एक कलाकार आईएएस की.. इसे कुछ दिन पहले ही मुख्यमंत्री ने भरी मीटिंग में गैरहाजिरी को लेकर जमकर लताड़ा था, नाकारा तक कहा था लेकिन अपनी पेंटिंग प्रदर्शनी के बहाने ये महानुभाव राज्यपाल की गोद में जा बैठे। डाइनामाइट न्यूज़ एक्सक्लूसिव..



लखनऊ: बात महज चार महीने पुरानी है। सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपने कार्यालय में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की बैठक बुलायी थी और इस बैठक से कंधे की चोट के नाम पर राहत आय़ुक्त संजय कुमार बिन-बताये गायब हो गये। जैसे ही सीएम बैठक में पहुंचे और उन्हें पता लगा कि बैठक का संचालन करने वाले आईएएस संजय कुमार लापता है तो उनका पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया.. औऱ भरी मीटिंग में भड़कते हुए बोले कि “ये आदमी तो वैसे भी कुछ काम नही करता है.. इसकी अभी तत्काल छुट्टी करो”। इसे मैं बहुत पहले से जानता हूं ये नाकारा किस्म का अफसर है। 

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यह खबर राजधानी के अखबारों में भी पहले पन्ने की सुर्खियां बनी लेकिन ये क्या सीएम के आदेशों पर कोई अमल नही.. सीएम के गरजने-बरसने के बाद भी इस कलाकार अफसर का बाल बांका तक नही हुआ और अगले तीन महीने तक ये राहत आय़ुक्त के पद पर बने रहे। इसी 23 नवंबर को उन्हें इस पद से हटाया गया लेकिन पहले की तरह महत्वपूर्ण माने जाने वाली जगह नगर विकास में भेज दिया गया। 

तभी से ये माना जा रहा था कि इनका कील-कांटा कहीं न कहीं सेट है। अब इसका भेद खुला आज। बसपाई जमाने में 2011 में संजय मुख्यमंत्री के गृह इलाके गोरखपुर के डीएम होते थे तभी से ये सीएम को चुभते हैं।

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शुक्रवार को ललित कला एकेडमी में एक पेंटिंग प्रदर्शनी के बहाने इन्होंने अपने शक्ति प्रदर्शन की ठानी और राज्यपाल को बुला इसका उद्घाटन करा डाला। यहां इन साहब की शान में राज्यपाल ने जमकर कसीदे पढ़े।

अब आप ही सोचिये.. जो अफसर सीएम की नज़र में लापरवाह औऱ नाकारा हो वह राज्यपाल की नज़र में यदि वाकई बेहद प्रतिभाशाली हो तो ये खटकने वाली बात है या नही।

संजय 2002 बैच के आईएएस अफसर हैं और बिहार के रहने वाले हैं। 

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सवाल ये नही है कि इन्होंने प्रदर्शनी लगाकर कोई गुनाह कर दिया या फिर राज्यपाल को बुलाकर सिविल सेवा की नियमावली का उल्लघंन कर दिया। सवाल तो ये कि क्या ये अपने शौक पूरे करने के बहाने कहीं अपनी मार्केटिंग तो नहीं कर रहे? कहीं इसके पीछे इनका सेल्फ प्रमोशन का तो कोई एजेंडा नही।

वैसे भी जब सीएम ही यह मानते हैं कि इनका सरकारी काम में तो मन लगता नही इधर-उधर के काम में ये लगातार व्यस्त रहते हैं तो ऐसे में सवाल यह उठता है कि इन्होंने वर्किंग-डे के दिन क्यों इस काम को अंजाम दिया। उन्होंने आज के इस पर्सनल प्रमोशन के काम के लिए छुट्टी ली थी या नही.. यदि नही तो फिर सरकारी तख्वाह के घंटे में ये कैसे पर्सनल शौक को पूरा करने का काम कर सकते हैं? क्या इन्हें ये काम छुट्टी के दिन नही करना चाहिये था? 

वैसे भी चाहे गोरखपुर हो या फिर इलाहाबाद.. ये जहां के भी डीएम रहे.. चर्चित रहे। डीएम इलाहाबाद के कार्यकाल के दौरान झूंसी इलाके में रेलवे की करोड़ों रुपये मूल्य की नगर निगम इलाके की 41 बीघे जमीन को भू-माफियाओं को दिलवाने की कथित संलिप्तता के मामले में इलाहाबाद क्राइम ब्रांच ने संजय को जांच के लिए सम्मन भेजा था लेकिन बाद में इसकी विवेचना ही सीबीसीआई लखनऊ को ट्रांसफर करा दी गयी थी। 










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