Uttar Pradesh : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़ी सभी पांच याचिकाएं खारिज कीं

डीएन ब्यूरो

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने, ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के स्वामित्व को लेकर वाराणसी की एक अदालत में लंबित मूल वाद की पोषणीयता और ज्ञानवापी परिसर का समग्र सर्वेक्षण कराने के निर्देश को चुनौती देने वाली सभी पांच याचिकाएं मंगलवार को खारिज कर दीं। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

इलाहाबाद उच्च न्यायालय
इलाहाबाद उच्च न्यायालय


प्रयागराज:  इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने, ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के स्वामित्व को लेकर वाराणसी की एक अदालत में लंबित मूल वाद की पोषणीयता और ज्ञानवापी परिसर का समग्र सर्वेक्षण कराने के निर्देश को चुनौती देने वाली सभी पांच याचिकाएं मंगलवार को खारिज कर दीं।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने सुनवाई के दौरान कहा कि वर्ष 1991 में वाराणसी की अदालत में दायर मूल वाद पोषणीय (सुनवाई योग्य) है और यह पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के तहत निषिद्ध नहीं है।

अदालत ने निचली अदालत को अपने समक्ष लंबित इस वाद पर तेजी से सुनवाई कर छह महीने के भीतर निर्णय करने का निर्देश दिया।

अदालत ने कहा, ‘‘किसी भी पक्ष के अनुरोध पर सुनवाई को अनावश्यक टाला नहीं जाना चाहिए। अगर कोई अंतरिम आदेश है, तो उसे हटाया जाता है। जरूरत पड़ने पर निचली अदालत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को आगे सर्वेक्षण का निर्देश दे सकती है।”

अदालत ने अपने 63 पन्नों के आदेश में कहा, “धार्मिक पूजा स्थल अधिनियम, 1991 ‘‘धार्मिक चरित्र’’ को परिभाषित नहीं करता और इस अधिनियम के तहत केवल ‘‘परिवर्तन’’ और ‘‘पूजास्थल’’ को परिभाषित किया गया है। विवादित स्थल का धार्मिक चरित्र क्या होगा, यह निष्कर्ष सक्षम अदालत द्वारा साक्ष्यों के आधार पर निकाला जा सकता है।’’

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अदालत ने कहा, “यह अधिनियम पूजा स्थल का परिवर्तन रोकता है, लेकिन यह 15 अगस्त 1947 को मौजूद पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र के निर्धारण के लिए किसी प्रक्रिया को परिभाषित नहीं करता है।’’

अदालत ने कहा, ‘‘वर्ष 1991 में दायर हुये मूल वाद को 32 वर्ष बीत चुके हैं और प्रतिवादियों द्वारा लिखित बयान दाखिल किए जाने के बाद केवल मुद्दे तय किए गए हैं। इस अदालत द्वारा 13 अक्टूबर 1998 को जारी अंतरिम आदेश के कारण इस मुकदमे में सुनवाई करीब 25 साल से लटकी हुई है।’’

यह भी अदालत ने कहा, “इस वाद में उठाया गया मुद्दा राष्ट्रीय महत्व का है। यह दो पक्षों के बीच का वाद नहीं है, बल्कि यह इस देश के दो प्रमुख समुदायों को प्रभावित करता है। वर्ष 1998 से लागू अंतरिम आदेश की वजह से इस मुकदमे पर सुनवाई आगे नहीं बढ़ी। राष्ट्रहित में इस वाद पर तेजी से सुनवाई कर निर्णय सुनाए जाने की आवश्यकता है जिसमें दोनों पक्षों का सहयोग अपेक्षित है।’’

वाराणसी की अदालत में 1991 में हिंदू श्रद्धालुओं ने वाद दायर कर काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद में पूजा करने का अधिकार मांगा है। वाराणसी की अदालत में लंबित इस वाद में उस स्थान पर मंदिर बहाल करने की मांग की गई है जहां वर्तमान में ज्ञानवापी मस्जिद स्थित है। याचिकाकर्ताओं की दलील है कि वह मस्जिद, उस मंदिर का हिस्सा है।

इससे पूर्व, आठ दिसंबर, 2023 को न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने याचिकाकर्ता अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी, उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और प्रतिवादी मंदिर पक्ष की दलीलें सुनने के बाद अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया था।

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वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने वाराणसी की अदालत में लंबित वाद की पोषणीयता को चुनौती दी थी।

पूर्व में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर ने 28 अगस्त 2023 के एक आदेश के तहत इन पांचों मामलों की सुनवाई एकल न्यायाधीश से अपने पास ले ली थी। 21 नवंबर 2023 को मुख्य न्यायाधीश दिवाकर के सेवानिवृत्त होने के बाद न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने इन याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर आठ दिसंबर को निर्णय सुरक्षित रख लिया था।

ये याचिकाएं ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड द्वारा दायर की गई थीं।

इन याचिकाओं में वाराणसी की अदालत द्वारा आठ अप्रैल 2021 को दी गई उस व्यवस्था को भी चुनौती दी गई थी, जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वेक्षण कराने का निर्देश दिया गया था।










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