कोल इंडिया के सार्वजनिक क्षेत्र में रोल को लेकर क्या बोले चेयरमैन
कोल इंडिया के चेयरमैन प्रमोद अग्रवाल ने बृहस्पतिवार को कहा कि देश में कोयले की कीमत स्थिरता के लिए कंपनी को आगे भी सरकारी कंपनी रहना चाहिए। उन्होंने भविष्य में कोयले की कीमत के लिए वैकल्पिक विधि अपनाने की भी सलाह दी। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर
कोलकाता: कोल इंडिया के चेयरमैन प्रमोद अग्रवाल ने बृहस्पतिवार को कहा कि देश में कोयले की कीमत स्थिरता के लिए कंपनी को आगे भी सरकारी कंपनी रहना चाहिए। उन्होंने भविष्य में कोयले की कीमत के लिए वैकल्पिक विधि अपनाने की भी सलाह दी।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, कोल इंडिया के चेयरमैन के तौर पर 30 जून को कार्यकाल समाप्त होने से एक दिन पहले पीटीआई-भाषा से विशेष बातचीत में अग्रवाल ने कहा कि ‘सभी उद्यमों का पैसा कमाना ही एकमात्रा उद्देश्य नहीं हो सकता।
उन्होंने कहा कि सरकार के स्वामित्व वाली इकाई के तौर पर कोल इंडिया की जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करना भी है कि कोयला उत्पादन के लाभ जनता को भी मिलें।
अग्रवाल ने यह भी कहा कि खनन कंपनियों की पहचान देश के ऊर्जा क्षेत्र का पर्याय है और शीर्ष होल्डिंग कंपनी के रूप में सीआईएल की वर्तमान संरचना ‘मजबूत और स्थिर’ है।
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उत्पादन बढ़ाने के लिए खनन कंपनियों के सरकारी इकाई रहने से संबंधित एक सवाल के जवाब में अग्रवाल ने कहा, “पिछले साल हमने कोयले की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में भारी बढ़ोतरी देखी है। ऐसे मामलों में, निजी कंपनियों ने भी कीमतें बढ़ा दी होंगी। हालांकि, कोल इंडिया जैसी सरकारी इकाई के लिए इसकी संभावना नहीं है।”
केंद्र सरकार राजस्व इकट्ठा करने के लिए कोल इंडिया में से अपनी हिस्सेदारी घटा रही है। हालांकि यह बहुत कम मात्रा में है।
सरकार ने इस महीने तीन प्रतिशत हिस्सेदारी बेचकर 4,185 करोड़ रुपये जुटाए। इसके बाद इकाई में सरकार की हिस्सेदारी घटकर लगभग 63.1 प्रतिशत रह गई।
कोल इंडिया के कोयले की कीमत आयातित कोयले की तुलना में काफी कम है।
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वित्त वर्ष 2022-23 में अप्रैल-सितंबर में आयातित कोयले की औसत कीमत 19,324.79 रुपये प्रति टन थी, वहीं इस दौरान घरेलू कोयले की औसत अधिसूचित कीमत 2,662.97 रुपये प्रति टन थी।
पांच से ज्यादा साल के बाद कोयला कंपनी ने हाल ही में उच्च श्रेणी के कोयले (जी2 से जी11 तक) की कीमत में सिर्फ आठ प्रतिशत वृद्धि की, जिससे कंपनी के राजस्व में तीन प्रतिशत वृद्धि होगी और इससे बिजली उत्पादकों पर मुश्किल से कोई प्रतिकूल असर पड़ेगा।
उन्होंने कहा कि भविष्य में हम छोटी अवधि में कोयले की कीमतों को लेकर कुछ मानदंडों के आधार पर फिर से विचार कर सकते हैं। इसे थोक मूल्य सूचकांक जैसे मुद्रास्फीति लागतों से जोड़ा जा सकता है। कीमतों में संशोधन के लिए लंबी अवधि तक इंतजार करने की तुलना में इसका असर कम होगा। हमारी प्राथमिकता यह सुनिश्चित करना है कि देश पर बढ़ी हुई कीमत का बोझ न पड़े और कंपनी का मुनाफा मजबूत बना रहे।''