Research: क्या है ‘स्वीटनेस जीन’? ल्यूपिन के साथ क्या है इसका संबंध, पढ़ें ये शोध रिपोर्ट
यदि आप इटली के किसी बार में जाते हैं, तो हो सकता है कि आपको नमकीन, पौष्टिक स्नैक्स वाला एक पकवान परोसा जाए, जिसे ‘ल्यूपिन बींस’ कहते हैं। यह एक फलीदार बीज है, जो हजारों साल से भूमध्य सागर के आसपास के क्षेत्रों और मध्य पूर्व तथा अफ्रीका के कुछ हिस्सों में खाया जाता है। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर
कैनबरा: यदि आप इटली के किसी बार में जाते हैं, तो हो सकता है कि आपको नमकीन, पौष्टिक स्नैक्स वाला एक पकवान परोसा जाए, जिसे ‘ल्यूपिन बींस’ कहते हैं। यह एक फलीदार बीज है, जो हजारों साल से भूमध्य सागर के आसपास के क्षेत्रों और मध्य पूर्व तथा अफ्रीका के कुछ हिस्सों में खाया जाता है।
ल्यूपिन में प्रोटीन और फाइबर बहुत अधिक मात्रा में जबकि कार्बोहाइड्रेट कम मात्रा में होता है। इन्हें विभिन्न जलवायु में उगाना आसान होता है। हालांकि, ल्यूपिन की कुछ किस्मों में कड़वे एल्कलॉइड का उच्च स्तर भी होता है।
एल्कलॉइड, प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले कार्बनिक यौगिकों का एक वर्ग है जिसमें कम से कम एक नाइट्रोजन परमाणु होता है।
नए शोध में शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने पहली बार कम एल्कलॉइड स्तर के लिए जिम्मेदार ‘‘स्वीटनेस जीन’’ (मिठास जीन) की पहचान की है। इस खोज से विश्वसनीय रूप से अधिक स्वादिष्ट पौधों का उत्पादन करना आसान हो सकता है।
मिठास की तलाश
लगभग 100 साल पहले, जर्मनी में पौधे उगाने वालों ने प्राकृतिक उत्परिवर्तन पाया जो कड़वे एल्कलॉइड के बहुत कम स्तर के साथ ‘मीठा ल्यूपिन’ उत्पन्न करता था। उन्होंने सफेद ल्यूपिन (ल्यूपिन एल्बस), संकरी पत्ती वाली ल्यूपिन (ल्यूपिन एंगुस्टिफोलियस, ऑस्ट्रेलिया में उगाई जाने वाली मुख्य प्रजाति) और कम पीली ल्यूपिन (ल्यूपिन ल्यूटस) की मीठी किस्में पैदा कीं।
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पिछले लगभग 50 वर्षों में, ल्यूपिन खेतों में काम करने वाले जानवरों के भोजन के रूप में अधिक उपयोग होने लगा है। मीठे ल्यूपिन इस उद्देश्य के लिए अच्छे हैं, क्योंकि उन्हें उपयोग करने योग्य बनाने के लिए बहुत अधिक धोने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इन्हें मनुष्यों द्वारा भी काफी उपयोग किया जा रहा है क्योंकि हम कड़वेपन के प्रति बहुत संवेदनशील हैं।
‘मीठे ल्यूपिन’ के लिए आनुवंशिक आधार खोजने के लिए, हमने कुछ तरीकों का इस्तेमाल किया।
एक आनुवंशिक खोज
डेनमार्क में हमारे सहयोगियों ने कड़वी और मीठी दोनों किस्मों में विभिन्न एल्कलॉइड के जैव रसायन का अध्ययन किया। एल्कलॉइड की संरचना में परिवर्तन को देखकर, हम इसमें शामिल जीन का अंदाजा लगा सकते हैं।
मेरा अपना काम आनुवंशिकी पर था। हमने सफेद ल्यूपिन की 227 किस्मों का विश्लेषण किया और उनके क्षारीय स्तर का भी परीक्षण किया।
फिर, फ्रांस में सहकर्मियों के साथ, हमने ल्यूपिन जीनोम में ‘मार्कर’ को देखा और आनुवंशिकी के साथ उच्च और निम्न क्षारीय स्तर को जोड़ने की कोशिश की।
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हमारे पास इस बारे में सुराग थे कि कुछ दर्जन जीन के एक निश्चित क्षेत्र में एक खास जीन कहां होगा। हमने यह पता लगाने के लिए बहुत सारे डीएनए मार्कर डिजाइन किए कि उस जीन में कौन सा अनुक्रम भिन्न है।
आखिरकार हमें एल्कलॉइड स्तर में बदलाव और हमारे जीन में एकल अनुक्रम में बदलाव के बीच एक बहुत मजबूत संबंध मिला। अंतिम परीक्षण में यह पता लगाना था कि क्या इस जीन में भिन्नता अन्य प्रकार के ल्यूपिन में भी मिठास पैदा करेगी।
कुछ अन्य पौधों में हम ऐसा करने के लिए आनुवंशिक संशोधन उपकरणों का उपयोग करने में सक्षम होंगे, लेकिन विभिन्न कारणों से ल्यूपिन में यह मुश्किल है।
इसके बजाय, हम ‘ट्रैटोमिक’ नामक एक कंपनी के पास गए, जिसने बड़ी संख्या में संकरी पत्ती वाले ल्यूपिन के बीजों की तब तक जांच की, जब तक कि उन्हें वह बीज नहीं मिल गया, जिसमें स्वाभाविक रूप से वही उत्परिवर्तन था जिसकी हम तलाश कर रहे थे।
जब हमने उस पौधे का परीक्षण किया, तो उसमें कम एल्कलॉइड थे, जिससे यह पुष्टि हुई कि हमें वास्तव में ‘स्वीटनेस जीन’ मिल गया था।
हमारा लक्ष्य मनुष्यों के उपभोग के लिए उच्च-प्रोटीन वाले ल्यूपिन की खेती को बढ़ावा देना है।