मोहम्मद रफी की 40वीं पुण्यतिथि पर विशेष: न तुझ सा फनकार फिर कोई आया, तू बहुत याद आया
मोहम्मद रफी भारतीय फिल्म जगत के बेहतरीन गायकों में से एक थे। अगर हम यह कहें, रफी साहब संसार के सर्वोत्तम गायकों में से एक हैं तो कोई गलत न होगा।
नई दिल्ली: गीत संगीत के जानकारों का मानना है कि रफी साहब जैसा हर तरह के गीत गाने वाला न उनसे पहले कोई था और न ही होगा। 31 जुलाई 1980 को जब अचानक उनका आकस्मिक निधन हुआ तो लोग स्तब्ध रह गये।
किसी को भरोसा ही नहीं हुआ कि उनके जैसा उम्दा कलाकार और देवता स्वरुप इंसान इतनी जल्दी अचानक कैसे चला गया और उनके करोडों चाहने वाले दुख के सागर में डूब गये। उस दिन तो सभी यह चाह रहे थे कि यह खबर गलत हो।
उनके समय के अन्य गायक जैसे तलत महमूद, हेमन्त कुमार, किशोर कुमार, मुकेष, मन्ना डे आदि जो कि खुद महान एवं प्रतिभाषाली थे वे सभी मोहम्मद रफी को बहुमुखी प्रतिभा का धनी मानते थे।
रफी साहब एक साधारण गीत को भी अपनी मीठी व सुरीली आवाज से कर्ण प्रिय बना देते थे। ऐ दिल है मुश्किल जीना यहां.... (सीआईडी), मन तडपत हरि दर्शन को आज...., ओ दुनियां के रखववाले.... (बैजू बावरा), खोया खोया चांद, खुला आसमान.... (काला बाजार), याहू चाहे कोई मुझे जंगली कहे.... (जंगली), ये महलों ये तख्तों ये ताजों की दुनियां.... (प्यासा), नैन लडृ जइहें.... (गंगा जमुना), क्या से क्या हो गया....’ (गाइड), बाबुल की दुआयें लेती जा.... (नीलकमल), वतन की राह में वतन के नौजवां....’ (शहीद), दर्दे दिल दर्दे जिगर दिल में जगाया.... (कर्ज) आदि ऐसे गीतों की बहुत ही लम्बी सूची है जो उनकी गायकी एवं आवाज की गुणवत्ता का प्रमाण हैं। उन्होंने अपने समय के तमाम फिल्म कलाकारों जैसे दिलीप कुमार, भारत भूषण, देव आनन्द, जानी वाकर, गुरुदत्त, सुनील दत्त, शम्मी कपूर, राजेन्द्र कुमार, महमूद आदि के लिये अपनी आवाज दी और अपने गीतों में इन सभी कलाकारों के अभिनय अदायगी एवं पर्दे पर प्रदर्शित भावनाओं के अनुरुप रफी साहब अपनी आवाज को ढ़ाल लेते थे और पर्दे पर ऐसा लगता था कि वही नायक या कलाकार स्वयं गा रहा हो। वह एक मात्र ऐसे गायक थे जो हर अवसर पर उसी भावना के अनुसार अपनी आवाज में जज्बात भर देते थे।
इन गायकों की पहचान अधिकतर किसी न किसी विशेष फिल्मी हीरो या सह-कलाकार की आवाज के साथ पहचानी जाती थी, यद्यपि उन गायकों ने अन्य कलाकारों के लिये भी सुन्दर गीत गाये है किन्तु रफी साहब अपनी आवाज को सभी तरह के कलाकारों की पर्दे पर छवि व शैली के अनुरुप ढाल लेते थे। फिर चाहे संगीत निर्देषक नौशाद साहब हों या एस.डी. बर्मन, मदन मोहन हों या ओ.पी. नैयर, सी. रामचन्द्र हों या रवि, सभी तरह के तमाम संगीतकारों के साथ उच्चतम कोटि की जुगल बन्दी रही है रफी साहब की।
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अपने समय की लगभग सभी गायिकाओं एवं गायकों के साथ बडी सहजता के साथ रफी साहब ने तमाम युगल गीत गाये हैं। मुकेश, किशोर कुमार आदि उच्च कोटि के गायकों की प्रसिद्धि के समय भी रफी साहब उच्चतम पायदान पर कायम रहे। रफी साहब के समय और उनके बाद भी अनेक गायक आये जिन्होंने रफी साहब की आवाज की कापी की और प्रसिद्धि भी पाई। मगर रफी साहब के बाद कोई भी गायक उनकी विशेषज्ञता एवं महानता के आसापास भी नहीं पहुंच पाया।
किशोर कुमार ने अवश्य अपनी बहुमुखी प्रतिभा का परिचय दिया और फिल्म आराधना के बाद राजेश खन्ना की प्रसिद्धि के साथ स्वयं भी लोकप्रियता के शिखर को छुआ। किशोर कुमार तो गायकी के अलावा फिल्म विद्या के अन्य क्षेत्रों के भी उच्च कलाकार थे और वह भी रफी साहब की गायकी और महानता के कायल थे।
संगीत प्रेमियों को याद होगा कि रेडियो सिलौन पर फिल्मी गीतों का कार्यक्रम ’’बिनाका गीतमाला’ हर सप्ताह रात 8 बजे पेश होता था और उसके प्रत्येक कार्यक्रम में वर्षों तक सभी सुनाये गये गीतों में रफी साहब का कोई न कोई गाना हमेशा टाप पर होता था। उनके गीतों में इतनी विभिन्नता थी कि विश्वास ही नहीं होता कि कोई एक गायक इतनी तरह की भावनाओं को अपने गीतों में प्रदर्शित कर सकता है, फिर चाहे वे दुख भरे गीत हों या देष भक्ति के, रोमांटिक गीत हों या शास्त्रीय गीत हों, भजन हों या हास्य गीत।
मानव जीवन के प्रत्येक अवसर के लिये हर तरह की भावनाओं को उन्होंने अपनी मखमली, ओजपूर्ण एवं दैवीय आवाज से नवाजा है। कोई भी सामाजिक एवं राष्ट्रीय कार्यक्रम ऐसा नहीं होता था जो कि रफी साहब की गाये गीतों के बिना सम्पन्न होता हो। राष्ट्रीय त्योहारों पर आज भी यह परंपरा जारी है।
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आज उनके इंतकाल के चालीस साल बाद भी उनकी गीतों की ताजगी, उनकी भावनायें और खूबसूरती कायम है। अभी भी वह अपने चाहने वालों और संगीत प्रेमियों के दिलों में जीवित हैं और हमेशा रहेंगे। फिल्म उद्योग के लगभग सभी लोग जानते हैं कि रफी साहब कितने मददगार और रहमदिल आदमी थे।
रफी साहब जितने उच्चतम कोटि के वह कलाकर थे, उतने ही सादगी प्रिय और सुन्दर व्यक्तित्व के मालिक थे। नौशाद साहब ने कहा था कि रफी साहब जैसा फनकार न उनके पहले कभी हुआ था और न अब कभी होगा। उनके चाहने वालों द्वारा कई बार भारत सरकार से उन्हें भारत-रत्न दिये जाने की मांग भी की जा चुकी है जिसके वे वास्तविक हकदार थे, हैं, और रहेंगे।
रफी साहब की 40वीं पुण्यतिथि पर देश की ओर से उनको सलाम।
(लेखक किशोर कुमार मल्होत्रा दिल्ली के निवासी हैं और रफी साहब के बड़े प्रशंसकों में से एक हैं)