UP Board: अपने ही घर में बेगानी हुई हिंदी, यूपी बोर्ड परीक्षा में इस साल 8 लाख छात्र हिंदी में फेल

डीएन ब्यूरो

हिंदी भाषी राज्य उत्तर प्रदेश देश के उन राज्यों में शामिल हैं, जहां हिंदी का बखूबी पालन-पोषण हुआ। लेकिन बदलते वक्त के साथ अपने ही इसी घर में हिंदी के भाल की बिंदी का आकर्षण अब कम होता जा रहा है। स्पेशल रिपोर्ट..

डॉक्टर सूर्य प्रसाद दीक्षित
डॉक्टर सूर्य प्रसाद दीक्षित


लखनऊः हिंदी भाषी प्रदेश यूपी में इस साल 8 लाख छात्र हिंदी विषय में फेल हो गए हैं। हिंदी विषय को बढ़ावा दिये जाने के सरकारी दावों की पोल खोलने के लिए ये आंकड़े काफी हैं। इसके पीछे कहीं न कहीं समाज में तेजी से हावी हो रहा कान्वेंट कल्चर भी जिम्मेदार है। हिंदी अपने ही घर में तेजी से उपेक्षा का शिकार हो रही है।

भारत के ही कई विभूतियों ने वैश्विक मंचों पर हिंदी में अपने व्याख्यान देकर खासी ख्याति भी पाई है। वहीं आज की नई पीढ़ी के बीच तेजी से हिंदी उपेक्षा का शिकार हो रही है। नहीं तो क्या कारण है की यूपी बोर्ड की परीक्षा में ही 8 लाख छात्र हिंदी विषय की परीक्षा में फेल हो जाए।

इस बारे में लखनऊ विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष रहे डां सूर्य प्रसाद दीक्षित का मानना है कि हिंदी विषय का पाठ्यक्रम 5 सौ वर्ष से अधिक पुराना है। आज इसमें बड़े परिवर्तन की जरूरत है। तभी आज के समय में इसे लोकप्रिय बनाया जा सकेगा।

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उन्होंने कहा कि कॉलेजों में शिक्षकों की कमी भी उपेक्षा की एक बड़ी वजह है। यूपी के सभी 2383 राजकीय कालेजों शिक्षकों के 18 हजार के करीब पद खाली हैं। इनमें 1300 पद अकेले हिंदी शिक्षकों के हैं। लखनऊ के ही राजकीय कॉलेजों में हिंदी शिक्षकों के 80 पद खाली पड़े हैं।

हिंदी विषय के मूल्यांकन में भी बड़ी शिकायत

अक्सर ये शिकायत सामने आती है की किसी दूसरे विषय के शिक्षक से हिंदी विषय की कॉपियां जंचवाई गई। हिंदी विषय में छात्रों की रूचि बनाये रखने के लिए विषय मूल्यांकन में हिंदी विषय के योग्य और साहित्य प्रेमियों को लगाये जाने की आवश्यकता है।

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हिंदी को बढ़ावा देने में ये उपाय हो सकते हैं कारगर 

हिंदी को वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में सभी जगह अनिवार्य बनाया जाये। इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट और मेडिकल समेत समेत प्रतियोगी परीक्षाओं में इसे अनिवार्य बनाया जायें। हिंदी विषय के शिक्षकों के साथ सरकारी या कान्वेंट स्कूलों, कॉलेजों में वरीयता दी जाये। साथ ही खाली पदों को जल्द से जल्द भरा जाए। हिंदी के पाठ्यक्रम में विषय विशेषज्ञों की मदद लेकर व्यापक परिवर्तन कर इसे वर्तमान पीढ़ी के छात्रों के बीच लोकप्रिय बनाया जाए।










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