अमेरिकी राजनीति में बढ़ रहा भारत का दबदबा, ये समुदाय करता है चुनावी हार-जीत को तय, पढ़ें ये खास रिपोर्ट

डीएन ब्यूरो

भारत सहित एशिया के विभिन्न देशों से आकर अमेरिका में बसे लोग अब अमेरिकी राजनीति में उम्मीदवारों की ‘हार-जीत’ तय करने की स्थिति में हैं और अब वे सिर्फ ‘जीत का अंतर’ तय नहीं करते हैं। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन (फाइल फोटो)
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन (फाइल फोटो)


वाशिंगटन: भारत सहित एशिया के विभिन्न देशों से आकर अमेरिका में बसे लोग अब अमेरिकी राजनीति में उम्मीदवारों की ‘हार-जीत’ तय करने की स्थिति में हैं और अब वे सिर्फ ‘जीत का अंतर’ तय नहीं करते हैं। एक भारतीय-अमेरिकी राजनीतिक कार्यकर्ता ने यह बात कही।

भारतीय-अमेरिकी उद्यमी, समुदाय के नेता और राजनीतिक कार्यकर्ता शेखर नरसिम्हन का कहना है कि एशियाई-अमेरिकी समुदाय के बारे में सामान्य तौर पर यह माना जाता है कि ‘‘हम जीत का अंतर तय करते हैं, इसका मतलब यह है कि चुनाव के दौरान कांटे की टक्कर में हम 10 अंक इधर या उधर करके चुनाव परिणाम पर असर डाल सकते हैं।’’

लेकिन अटलांटा में डेमोक्रेटिक पार्टी के सीनेटर रफायल वारनॉक की हाल में हुई जीत का उदाहरण देते हुए नरसिम्हन ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मैं इसे सिरे से खारिज करता हूं। अब मैं मानता हूं कि हम जीत की वजह हैं।’’

सीनेट के लिए वारनॉक को 99,000 वोटों की मदद से जीत मिली। लेकिन उन्हें 34,000 वोट एएपीआई (एशियाई अमेरिकी प्रशांत द्वीप क्षेत्र के निवासी) समुदाय से मिले थे। ये वो वोट हैं जो मध्यावधि चुनाव के दौरान नहीं पड़े थे।

एएपीआई के प्रात्र मतदाताओं को लामबंद करने और डेमोक्रेटिक पार्टी के एएपीआई उम्मीदवारों का समर्थन करने का काम करने वाली एक ‘राजनीतिक कार्य समिति’ एएपीआई विक्टरी फंड के प्रमुख नरसिम्हन ने उक्त जानकारी दी।

यह रेखांकित करते हुए कि अटलांटा में मतदान के लिए पात्र आबादी में से महज चार फीसयदी लोग एएपीआई समुदाय से हैं, नरसिम्हन ने कहा, ‘‘हम (एएपीआई विक्टरी फंड) का ये वोट डलवाने में बड़ा हाथ है... चुनाव में 68,000 वोट चुनाव परिणाम को पूरी तरह से बदल सकते हैं। यह सिर्फ अश्वेत (काले लोगों) वोट या अटलांटा के उपनगरीय क्षेत्र से मिले वोट का कमाल नहीं था। यह एशियाई-अमेरिकी वोट का नतीजा है। वह भी इसे मानते हैं। मुझे नहीं लगता कि हमारे साथ के बगैर वह जीत सकते थे।’’

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उन्होंने रेखांकित किया कि यही स्थिति अमेरिका के अन्य राज्यों/प्रांतों की भी है। पेनसिल्वेनिया में एएपीआई समुदाय की आबादी चार फीसदी है जबकि मिशिगन में यह पांच फीसदी है। एरिजोला में यह महज दो फीसदी है, लेकिन वहां 10,000 वोटों के अंतर से तय हुए चुनाव परिणाम में भी समुदाय की भूमिका महत्वपूर्ण है।

वही, नेवादा जहां एएपीआई समुदाय के पास एशियाई-अमेरिकी वोट का 12 फीसदी है, समुदाय चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। समुदाय विस्कांसिन के चुनाव में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

उत्तर कैरोलिना, जहां समुदाय के लोगों की आबादी तेजी से बढ़ रही है, एशियाई-अमेरिकी समुदाय उम्मीदवारों की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

एक सवाल के जवाब में नरसिम्हन ने कहा कि अगर 2024 का आम चुनाव राष्ट्रपति जो बाइडन और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच होता है तो एशियाई-अमेरिकी समुदाय को लामबंद करना आसान होगा।

उन्होंने कहा, लेकिन अगर बाइडन के समक्ष कोई नया प्रतिद्वंद्वी खड़ा होता है तो यह मुश्किल होगा, तब और भी मुश्किल होगा जब मुकाबला भारतीय-अमेरिकी निक्की हेली जैसे किसी उम्मीदवार के साथ हो। गौरतलब है कि निक्की हेली ने 2024 के चुनाव के लिए रिपब्लिकन पार्टी से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की दौड़ में शामिल होने की घोषणा कर दी है।

रेखांकित करते हुए कि अगर हेली रिपब्लिकन पार्टी से उम्मीदवार बनती हैं तो एएपीआई विक्टरी फंड उनकी नीतियों पर गौर करेगा, नरसिम्हन ने कहा कि ‘‘इसकी संभावना ज्यादा है’’ कि 2024 के चुनाव में वे बाइडन का साथ देंगे और समर्थन करेंगे। उन्होंने कहा, ‘‘वह (हेली) बहुत ही रूढ़िवादी और पुरातनपंथी रिपब्लिकन हैं।’’

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नरसिम्हन लंबे समय से डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थक हैं और उनके लिए धन जुटाने का काम करते हैं।

नरसिम्हन ने कहा, ‘‘अगर एएपीआई समुदाय की कोई महिला राष्ट्रपति बनती है और वह कमला हैरिस नहीं हैं, तो ऐसे में हम इस पर (महिला के पक्ष में वोट लामबंद करने पर) विचार क्यों नहीं करेंगे? हमें इस पर विचार करना चाहिए। लेकिन अंतत: अगर नैतिक मूल्य मेल नहीं खाते हैं और जीवन के सिद्धांत मौलिक रूप से विपरीत हैं, जैसा कि उन्होंने (कमला हैरिस) ने अतीत में किया है, तो फिर, ऐसे में हम ना सिर्फ बाइडन का समर्थन करेंगे बल्कि अपने समुदाय को यह भी बताएंगे कि वह गलत उम्मीदवार क्यों हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘परिस्थितियों के आधार पर काम किया जाएगा, लेकिन इसकी पूरी संभावना है कि शुरुआत में हम बाइडन का साथ देंगे, और अगर कोई एएपीआई उम्मीदवार दौड़ में शमिल होता है तो हम उसे तोलेंगे और इसकी भी संभावना है कि हम साथ खड़े होने की जगह एक-दूसरे के विरोध में खड़े मिलें।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे खुशी है कि निक्की, जिंदल और रामास्वामी जैसे नाम वाले लोग चुनाव लड़ रहे हैं। इसका मतलब है कि कुछ लोग नरसिम्हन का उच्चारण करना सीख लेंगे। ऐसे में मुझे दिल से लग रहा है कि यह मुख्यधारा में आ रहा है, यह दिखता है, जैसे कि आप के पास फॉर्च्यून 50 कंपनियों के कई सीईओ का होना, जैसे कि आपके पास विश्वविद्यालयों में कई प्रोफेसर, डीन और अध्यक्षों का होना। यह बता रहा है कि सुधार हो रहा है। हम मुख्यधारा में आ रहे हैं। यह मौलिक रूप से अच्छी बात है।’’










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