बलरामपुर में महाकुंभ का अवदान पर राष्ट्रीय संगोष्ठी, जानिये खास बातें

डीएन ब्यूरो

महाकुंभ का अवदान विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में वक्ताओं ने महाकुंभ के उद्देश्य व महत्ता पर प्रकाश डाला। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की रिपोर्ट

कार्यक्रम में उपस्थित लोग
कार्यक्रम में उपस्थित लोग


बलरामपुर: मां पाटेश्वरी विश्वविद्यालय व महारानी लाल कुँवरि स्नाकोत्तर महाविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में मंगलवार को महाकुंभ 2025 का अवदान विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, महारानी लाल कुँवरि स्नाकोत्तर महाविद्यालय के आडिटोरियम में आयोजित कार्यक्रम  में वक्ताओं ने अपने विचार रखे।

कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी के कुलपति प्रोफेसर बिहारी लाल शर्मा रहे। जिन्होंने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। 

समारोह की औपचारिक शुरुआत मां सरस्वती की वंदना, महाविद्यालय के कुलगीत व स्वागत गीत के साथ हुआ। कार्यक्रम का संचालन लेफ्टिनेंट डॉ देवेंद्र चौहान ने किया। 

इस अवसर पर  मुख्य नियंता प्रो. राघवेंद्र सिंह, प्रो. अरविंद द्विवेदी, प्रो. पीके सिंह, प्रो. एस एन सिंह, प्रो. एम अंसारी, प्रो. वीणा सिंह, प्रो. तबस्सुम फरखी, प्रो विमल प्रकाश वर्मा, प्रो. अशोक कुमार, डॉ अरुण कुमार सिंह, डॉ तारिक कबीर, डॉ राजीव रंजन, डॉ आलोक शुक्ल, डॉ सुनील मिश्र, डॉ आशीष लाल, डॉ एस के त्रिपाठी, डॉ के के सिंह, डॉ सुनील शुक्ल, डॉ रमेश शुक्ल सहित महाविद्यालय के सभी शिक्षक, प्रतिनिधि गण व शोधार्थी मौजूद रहे।

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महाकुंभ सांस्कृतिक चेतना का केंद्र बिंदु रहा

शोधार्थियों को संबोधित करते हुए कार्यक्रम अध्यक्ष प्रोफेसर रवि शंकर सिंह ने कहा कि महाकुंभ जहां सांस्कृतिक चेतना का केंद्रबिंदु है वहीं सामाजिक सदभाव का परिचायक भी है। महाकुंभ से सामुदायिक संवेदना में वृद्धि हुई है।

महाकुंभ ने धर्म जागरण का काम किया

मुख्य वक्ता के रूप में संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी के कुलपति प्रोफेसर बिहारी लाल शर्मा ने महाकुंभ की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि महाकुंभ वसुधैव कुटुम्बकम का साकार रूप है।

कुम्भ धर्म के जागरण का कार्य करता है। इसका लाभ सर्व सामान्य व्यक्ति को मिलता है। भव्यता व दिव्यता से युक्त महाकुंभ राष्ट्र के सांस्कृतिक जागरण  का प्रतीक है।  

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भारत के  प्रयागराज  धरती पर इन 45 दिनों में एक विस्मयकारी घटना है जिसमें बिना तनाव ,बिना भय व द्वेष के 66 करोड़ सनातनी एक साथ स्नान किये। 

यह सामाजिक वैमनस्य का आधार है। इसका उद्देश्य दिव्य संदेश-दिव्य विचार निरंतर आगे बढ़ाना है।

समय द्वारा बनाया गया महाकुंभ का इतिहास

कुम्भ पर्व किसी इतिहास निर्माण के दृष्टिकोण से नहीं शुरू हुआ था अपितु इसका इतिहास समय द्वारा स्वयं ही बना दिया गया। 

वैसे भी धार्मिक परम्पराएं हमेशा आस्था एवं विश्वास के आधार पर टिकती हैं न कि इतिहास पर। यह कहा जा सकता है कि कुम्भ जैसा विशालतम् मेला संस्कृतियों को एक सूत्र में बांधे रखने के लिए ही आयोजित होता है। 










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