बड़ी खबर: जिला पंचायत अध्यक्ष प्रभुदयाल चौहान की बर्खास्तगी जायज या नाजायज? हाईकोर्ट में सुनवाई कल

डीएन ब्यूरो

क्या सत्ता के दबाव में जिला पंचायत अध्यक्ष प्रभुदयाल चौहान को गलत तरीके से पद से बर्खास्त किया गया है? इस सवाल का जवाब जानने को हर निगाह उत्सुक है। डाइनामाइट न्यूज़ को मिली जानकारी के मुताबिक कल यानि बुधवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में इसकी व्यापक सुनवाई होगी। पूरी खबर:

जिला पंचायत अध्यक्ष प्रभुदयाल चौहान
जिला पंचायत अध्यक्ष प्रभुदयाल चौहान


लखनऊ: राजधानी लखनऊ में स्थित इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के कोर्ट नंबर 1 की कार्यवाही पर महराजगंज जिले की राजनीतिक और प्रशासनिक निगाह टिकी हुई है। जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस सौरभ लवानिया की डबल बेंच में महराजगंज के जिला पंचायत अध्यक्ष प्रभुदयाल चौहान का मामला सुना जायेगा।
डाइनामाइट न्यूज़ के हाईकोर्ट संवाददाता के मुताबिक चौहान ने रिट याचिका संख्या 24854/2020 प्रभु दयाल चौहान बनाम अपर मुख्य सचिव, पंचायती राज दाखिल कर हाईकोर्ट में अपनी बर्खास्तगी को चुनौती दी है। यह एक्सक्लूसिव खबर आप सिर्फ डाइनामाइट न्यूज़ पर पढ़ रहे हैं। 
जिला पंचायत में व्याप्त भारी भ्रष्टाचार और करोड़ों रुपये के टेंडर को लेकर जिले के एक जनप्रतिनिधि के साथ अंदर ही अंदर लंबे समय से चल रहे मनमुटाव के बाद कुछ दिन पहले चौहान ने अलग होने का फैसला कर लिया और भाजपा छोड़ सपा ज्वाइन कर ली।
इसके बाद जो जिला पंचायत अध्यक्ष पौने पांच साल तक सही था, जिसके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई, सपा ज्वाइन करते ही अचानक कुछ लोग सक्रिय हो गये और पर्दे के पीछे से रणनीति बना, जिला प्रशासन की मदद से चौहान की बर्खास्तगी करा डाली। यही नहीं जिला पंचायत के करोड़ों रुपये के टेंडर के वारे-न्यारे के लिए तीन सदस्यीय कमेटी बना डाली गयी। 
तकनीकी पहलू पर बात करते हुए चौहान खेमे के लोगों ने दावा किया कि मंडलायुक्त ने मनमाने तरीके से एकतरफा सारी कार्यवाही को अंजाम दिया। जिन आरोपों में चौहान को बर्खास्त किया गया, इस बारे में चौहान को कोई लिखित नोटिस न तो दी गयी और न ही चौहान का पक्ष जांच कमेटी में रिकार्ड हुआ। इसके बावजूद आनन-फानन में  किन परिस्थितियों में जिला प्रशासन ने क्या लिखा और मंडलायुक्त ने क्या सुना, माना और पाया कि जो जिला पंचायत अध्यक्ष पौने पांच साल तक ठीक था अचानक राजनीतिक दबाव में चंद मिनट में बर्खास्त कर दिया गया। 
फिलहाल हाईकोर्ट के नतीजों पर सिर्फ राजनीतिक ही नहीं प्रशासनिक निगाह भी लगी है।

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