सुप्रीम कोर्ट से दिल्ली में बेघरों और गरीबों को मिली बड़ी राहत, अस्थायी आश्रयों ध्वस्त करने पर रोक

डीएन ब्यूरो

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी), दिल्ली पुलिस और दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) सहित संबंधित प्राधिकारियों पर राष्ट्रीय राजधानी में बेघरों के अस्थायी आश्रयों को उसकी अनुमति के बिना गिराने पर रोक लगा दी है।

फाइल फोटो
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नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी), दिल्ली पुलिस और दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) सहित संबंधित प्राधिकारियों पर राष्ट्रीय राजधानी में बेघरों के अस्थायी आश्रयों को उसकी अनुमति के बिना गिराने पर रोक लगा दी है।

न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्त की पीठ ने गीता घाट पर तीन अस्थायी आश्रयों से संबंधित एक मामले की सुनवाई करते हुए आदेश पारित किया, जो विशेष श्रेणी के बेघरों जैसे कि क्षय रोग (टीबी), हड्डियों से संबंधित विकलांगता से पीड़ित और मानसिक स्वास्थ्य दिक्कतों से पीड़ित व्यक्तियों के लिए बनाये गए थे।

पीठ ने आदेश दिया, ‘‘इन परिस्थितियों के मद्देनजर, डीयूएसआईबी, दिल्ली पुलिस और डीडीए और एनसीटीडी में काम कर रहे अन्य सभी प्राधिकारियों को निर्देश दिया जाता है कि गीता घाट पर वर्तमान में चल रहे तीन आश्रयों और किसी भी अन्य अस्थायी आश्रय को इस अदालत से सम्पर्क किये बिना ध्वस्त न करें।’’

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पीठ ने शुरू में तीन आश्रयों के संबंध में अपना आदेश पारित किया था। पीठ को वकील प्रशांत भूषण ने बताया कि दिल्ली-एनसीआर में 111 से अधिक अस्थायी आश्रय मौजूद हैं और तब पीठ ने अपने आदेश में ‘‘कोई अन्य अस्थायी आश्रय’’ जोड़ा।

पीठ ने डीयूएसआईबी को दिल्ली पुलिस, डीडीए या किसी अन्य एजेंसी के कहने पर ध्वस्त किए गए आश्रयों के बदले में वैकल्पिक आश्रयों के निर्माण के बारे में अगले छह सप्ताह के भीतर एक योजना तैयार करने और प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

शीर्ष अदालत सराय काले खां में रैन बसेरों को कथित रूप से कोई वैकल्पिक आवास प्रदान किए बिना तोड़े जाने के खिलाफ दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

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सुनवाई के दौरान, पीठ ने डीयूएसआईबी के हलफनामे से उल्लेखित किया कि उसने याचिका के लंबित रहने के दौरान आठ और अस्थायी आश्रयों को ध्वस्त किया और प्राधिकारियों के पास ध्वस्त किए गए आश्रय की जगह कोई नया अस्थायी आश्रय स्थल बनाने का कोई प्रस्ताव नहीं है।

इस बीच, पीठ ने उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश कैलाश गंभीर की अध्यक्षता वाली एक समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट का उल्लेख किया। इसमें दावा किया गया था कि स्थायी और अस्थायी दोनों तरह के रैन बसेरों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।










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