नये शोध में हिमालय को लेकर बड़े खुलासा, जानिये ग्लेशियरों के अदृश्य नुकसान और खतरों के बारे में
हाल में हुए एक अध्ययन में हिमालय के वृहद क्षेत्र में ग्लेशियरों को रहे अदृश्य नुकसान का पता चला है। अध्ययन में कहा गया है कि उपग्रहों के, पानी के नीचे होने वाले ग्लेशियर परिवर्तनों को देखने में असमर्थ होने के कारण हिमखंडों को बड़े पैमाने पर पहुंच रहे नुकसान को 2000 से 2020 तक काफी कम करके आंका गया।पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर
नयी दिल्ली: हाल में हुए एक अध्ययन में हिमालय के वृहद क्षेत्र में ग्लेशियरों को रहे अदृश्य नुकसान का पता चला है। अध्ययन में कहा गया है कि उपग्रहों के, पानी के नीचे होने वाले ग्लेशियर परिवर्तनों को देखने में असमर्थ होने के कारण हिमखंडों को बड़े पैमाने पर पहुंच रहे नुकसान को 2000 से 2020 तक काफी कम करके आंका गया।
अध्ययन की रिपोर्ट ‘नेचर जियोसाइंस पत्रिका’ में प्रकाशित हुई है। संबंधित क्षेत्र से ग्लेशियर गायब होने तथा जल संसाधनों के भविष्य के अनुमानों के लिए यह खोज महत्वपूर्ण हो सकती है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार ब्रिटेन के सेंट एंड्रयूज विश्वविद्यालय और अमेरिका के कार्नेगी मेलन विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं सहित अंतरराष्ट्रीय टीम ने पाया कि पिछले आकलनों में वृहद हिमालय क्षेत्र में पिघलकर झीलों में गिर रहे ग्लेशियरों के कुल नुकसान को 6.5 प्रतिशत कम करके आंका गया था।
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अध्ययन में पाया गया कि मध्य हिमालय क्षेत्र में इस नुकसान को 10 प्रतिशत कम करके आंका गया, जहां हिमनद झील का विकास सबसे तेज था। विशेष रूप से एक दिलचस्प मामला इस क्षेत्र में गैलॉन्ग का है, जहां नुकसान 65 प्रतिशत कम करके आंका गया।
इसमें पता चला कि 2000 से 2020 तक, क्षेत्र में प्रोग्लेशियल झीलों की संख्या में 47 प्रतिशत, क्षेत्रफल में 33 प्रतिशत और आयतन में 42 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार, इस विस्तार के परिणामस्वरूप ग्लेशियरों को लगभग 2.7 गीगाटन का नुकसान हुआ, जो 57 करोड़ हाथियों के बराबर है।
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पिछले अध्ययनों में इस नुकसान पर विचार नहीं किया गया क्योंकि उपयोग किए गए उपग्रह डेटा केवल झील के पानी की सतह को माप सकते हैं, लेकिन पानी के नीचे की बर्फ को नहीं जिसकी जगह पर पानी अपनी जगह बना लेता है।