Know about Nanda Devi Glacier: जानिये विश्व धरोहर नंदा देवी ग्लेशियर के बारे में, कैसे आई ग्लेशियर के टूटने से उत्तराखंड के चमोली में तबाही
उत्तराखंड में नंदा देवी ग्लेशियर के टूटने से चमोली में भारी तबाही का मंजर है। विश्व धरोहर दर्ज नंदा देवी पर्वत में स्थित यह ग्लेशियर हमें प्रकृति का अनुपम वरदान है, जिसे पर कई चीजें टिकी हुईं है। जानिये, इसे ग्लेशियर के बारे
नई दिल्ली: उत्तराखंड के सीमांत जनपद चमोली में कल रविवार को नंदादंवी ग्लेशियर (हिमनद) का एक हिस्सा टूटने से बड़ी तबाही मची हुई है। अति दुर्गम हिमालयी क्षेत्र में स्थित इस ग्लेशियर के टूटने से अलकनंदा की सहायक नदियों धौलीगंगा और ऋषिगंगा में विकराल बाढ का तांडव सामने आया। धौली गंगा के किनारे बने एनटीपीसी प्रोजेक्ट और ऋषि गंगा पर ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट बुरी तरह तबाह हो गया है। इन दोनों परियोजनाओं की सुरंग में अब भी कई लोग फंसे हुए है जबकि कई लोगों के लापता होने की खबरें है। इस तबाही के लिये नंदादेवी हिमनद के टूटने को बड़ा कारण माना जा रहा है। जानिये नंदा देवी ग्लेशियर समेत ग्लेशियरों के टूटने और बनने की घटना के बारे में और समझिये कैसे आयी चमोली में तबाही?
नंदा देवी ग्लेशियर चमोली जनपद में हिमालय पर्वत श्रंखला में स्थित नंदा देवी पर्वत चोटी में है, इसलिए इसे नंदा देवी ग्लेशियर कहा जाता है। नन्दा देवी उत्तराखंड की एक मुख्य देवी है, जिसे हिमालय की पुत्री कहा जाता है। इसलिये नंदा देवी के नाम से ही इस इस शिखर और ग्लेशियर को जाना जाता है। नंदा देवी पर्वत भारत की दूसरी और विश्व की 23वीं सबसे ऊंची चोटी है। भारत की सबसे ऊंची चोटी कंचनजंगा के बाद दूसरी बड़ी चोटी नंदा देवी दो छोरों पर पूर्व में गौरीगंगा और पश्चिम में ऋषिगंगा घाटियों के बीच स्थित है। कंचनजंगा पर्वत चोटी भारत और नेपाल सीमा पर स्थित है, जबकि नंदा देवी पर्वत चोटी पूरी तरह हिमालय में देश के आंतरिक हिस्से में स्थित है। गौरीगंगा और ऋषिगंगा घाटियों के बीच के पूरे क्षेत्र को नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान (नेशनल पार्क) के नाम से जाना जाता है। 1988 में यूनेस्को द्वारा प्राकृतिक महत्व के इस नेशनल पार्क को विश्व धरोहर का सम्मान दिया जा चुका है।
अलकनंदा की सहायक नदी धोली गंगा और ऋषि गंगा में जो तबाही कल देखने को मिली, वह नंदा देवी ग्लेशियर के टूटने के कारण सामने आई। नंदा देवी ग्लेशियर के भी दो हिस्से हैं। इसमें एक उत्तरी नंदा देवी ग्लेशियर और दूसरा दक्किनी नंदा देवी ग्लेशियर है। दोनो ग्लेशियर हिमालय के बड़े भूभाग में फैले हुए है। ये दोनों ग्लेशियर पूरे साल बर्फ से ढके होते हैं। इनमें भी कई छोटे-बड़े हिमनद मौजूद है।
हाल के कुछ शोधों में वैज्ञानिकों पाया कि मौसम में तेज बदलाव के कारण नंदा देवी के आठ मुख्य ग्लेशियरों का करीब 26 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र कम हुआ है। क्वाटरनरी इंटरनेशनल में जून में प्रकाशित एक अंतरराष्ट्रीय शोध पत्र के मुताबिक क्षेत्र में 1980 के बाद से ही बारिश कम हो रही है और ग्लेशियरों पर इसका प्रभाव पड़ा है।
नंदा देवी ग्लेशियर में स्थित ऋषि गंगा का जल संग्रहण क्षेत्र करीब 690 वर्ग किलोमीटर का है। 1980 में यहां ग्लेश्यिर करीब 243 वर्ग किलोमीटर में फैले हुए थे। 2017 तक आते-आते इस क्षेत्र में ग्लेश्यिर करीब 26 वर्ग किलोमीटर कम हो गए। वैश्विक तापमान बढ़ने के कारण भी ग्लेश्यिर तेजी से सिकुड़ रहे हैं और तमाम हिमनदों में लगातार हलचल हो रही है।
ग्लेशियर ठोस रूप में बर्फीला पानी ही होता है, जो पहाड़ों की ही तरह जमा होता है। उत्तराखंड समेत पूरे हिमालय में इस तरह के सैकड़ों ग्लेशियर मौजूद हैं, जिनके लगातार रिसाव से नदियों का अस्तित्व सामने आता है। ग्लेशियर ही नदियों का उद्गम स्थल होती हैं। ग्लेशियर की बर्फ नीचे से पिघलकर नदियों का निर्माण करती हैं। लेकिन इनके अत्यधिक या अचानक रिसाव अथवा ग्लेशियर के टूटने से नदीं-घाटी में पानी का प्रवाह एकाएक बढ़ जाता है और बाढ़ या फ्लैश फ्लड की स्थिति पैदा हो जाती है। ग्लेशियरों का टूटना तबाही का बड़ा कारण बनता है।
ग्लेशियर टूटने के भी कई कारण होते हैं, जिनमें पर्यावरणीय और पारिस्थितकीय बदलाव सबसे महत्वपूर्ण हैं। ज्यादा या कम बरसात, कम-ज्यादा गर्मी, प्राकृतिक क्षरण, पानी का दबाव, बर्फीला तूफान, चट्टान का खिसकना, बर्फीली सतह के नीचे भूकंप, बर्फीले इलाकों में पानी का विस्थापन, भौतिक बदलाव, भू क्षरण जैसे कई कारणों से ग्लेशियर टूटते हैं। इन्हीं सब कारणों से चमोली में रविवार को सामने आयी तबाही जैसी त्रासदी सामने आती है। इसलिये पर्यावरणीय संतुलन को बनाये रखना अत्यंत जरूरी होता है।