वैधानिक जमानत की अर्जी खारिज होने के खिलाफ कारोबारी विजय नायर ने उच्च न्यायालय में दी याचिका
व्यवसायी और आम आदमी पार्टी के संचार प्रभारी विजय नायर ने कथित दिल्ली आबकारी नीति घोटाले से संबंधित धन शोधन मामले में ‘डिफॉल्ट’ जमानत की मांग करते हुए सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया।
नई दिल्ली: व्यवसायी और आम आदमी पार्टी के संचार प्रभारी विजय नायर ने कथित दिल्ली आबकारी नीति घोटाले से संबंधित धन शोधन मामले में ‘डिफॉल्ट’ जमानत की मांग करते हुए सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया।
याचिका पर न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा के समक्ष सुनवाई होनी थी, लेकिन वो आज अदालत में नहीं बैठे थे, इसलिये अब इसे 10 अगस्त के लिए सूचीबद्ध किया गया है।
नायर को 13 नवंबर, 2022 को गिरफ्तार किया गया था। नायर ने उनकी ‘डिफॉल्ट’ जमानत याचिका खारिज करने के निचली अदालत के 29 जुलाई के आदेश को चुनौती दी है।
‘डिफॉल्ट’ जमानत का अधिकार तब मिलता है, जब पुलिस न्यायिक हिरासत में रखे गए किसी व्यक्ति के संबंध में निर्धारित अवधि के भीतर जांच पूरी करने में विफल रहती है। इसे वैधानिक जमानत के नाम से भी जाना जाता है। इस संबंध में प्रावधान दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 167(2) में है।
यह भी पढ़ें |
आबकारी ‘घोटाला’: वाईएसआर कांग्रेस सांसद के बेटे की अंतरिम जमानत याचिका खारिज
जमानत याचिका पर दलील रखते हुए नायर के वकील ने निचली अदालत के समक्ष कहा था कि पूरक अभियोजन शिकायत (आरोप पत्र) प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा गिरफ्तारी के 60 दिनों की वैधानिक अवधि के भीतर दायर की गई थी, लेकिन ऐसा उनके संबंध में वास्तविक जांच पूरी किए बिना किया गया था।
वकील ने तर्क दिया था कि इसलिए, पूरक अभियोजन शिकायत एक आरोपी के ‘डिफॉल्ट’ जमानत पर रिहा होने के अधिकार को खत्म करने के लिए दायर किया गया एक अधूरा आरोप पत्र था।
ईडी ने विचारणीयता के आधार पर याचिका का विरोध किया था और कहा था कि नायर ने पहले ही अपनी पिछली जमानत याचिका में उच्च न्यायालय के समक्ष अधूरे आरोप पत्र का मुद्दा उठाया था।
निचली अदालत ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी थी कि वह आरोपी को ‘डिफॉल्ट’ जमानत के आधार पर विचार करने के लिए सक्षम या उचित मंच नहीं है।
यह भी पढ़ें |
आबकारी घोटाला: उच्च न्यायालय ने नियमित जमानत दे दी है-आरोपी कारोबारी ने निचली अदालत को बताया
धनशोधन का मामला सीबीआई की एक प्राथमिकी पर आधारित है, जो दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना द्वारा 2021 में नई आबकारी नीति की सीबीआई जांच की सिफारिश के बाद दर्ज की गई थी। इस नीति को बाद में रद्द कर दिया गया था।