राज्यसभा में कांग्रेस की मांग, जनगणना और परिसीमन के पहले ही लागू हो महिला आरक्षण कानून
लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने के प्रावधान वाले विधेयक को सत्तारूढ़ भाजपा का ‘चुनावी एजेंडा’ और ‘झुनझुना’ करार देते हुए कांग्रेस ने बृहस्पतिवार को राज्यसभा में मांग की कि इस प्रस्तावित कानून को जनगणना एवं परिसीमन के पहले ही लागू किया जाना चाहिए। इसके साथ ही पार्टी ने दावा किया कि यह विधेयक राजनीतिक समीकरण को ध्यान में रखकर लाया गया है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर
नयी दिल्ली: लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने के प्रावधान वाले विधेयक को सत्तारूढ़ भाजपा का ‘चुनावी एजेंडा’ और ‘झुनझुना’ करार देते हुए कांग्रेस ने बृहस्पतिवार को राज्यसभा में मांग की कि इस प्रस्तावित कानून को जनगणना एवं परिसीमन के पहले ही लागू किया जाना चाहिए। इसके साथ ही पार्टी ने दावा किया कि यह विधेयक राजनीतिक समीकरण को ध्यान में रखकर लाया गया है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार कांग्रेस सदस्य केसी वेणुगोपाल ने कहा कि यह सरकार 2014 में ही सत्ता में आ गई थी और उसने महिला आरक्षण लागू करने का वादा भी किया था। उन्होंने सवाल किया कि सरकार को इतने समय तक यह विधेयक लाने से किसने रोका। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि सरकार क्या नए संसद भवन के बनने की प्रतीक्षा कर रही थी या इसमें वास्तु से जुड़ा कोई मुद्दा था
लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने के प्रावधान वाले ‘संविधान (एक सौ अट्ठाईसवां संशोधन) विधेयक, 2023’ पर उच्च सदन में हुई चर्चा में भाग लेते हुए वेणुगोपाल ने इस विधेयक के प्रति सरकार की गंभीरता पर सवाल उठाया और कहा कि उसने नौ साल गंवा दिए।
उन्होंने पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के कार्यकाल में बनाए गए विभिन्न कानूनों का जिक्र करते हुए कहा कि वे कानून लोगों के जीवन में बदलाव लाने वाले थे और तत्कालीन सरकार द्वारा दिल से लाए गए कानून थे जबकि यह विधेयक दिल के बदले दिमाग का उपयोग कर लाया गया है।
उन्होंने कहा कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव में हार के बाद राजनीतिक समीकरण को ध्यान में रखते हुए यह विधेयक लाया गया। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित कानून के जनगणना और परिसीमन के बाद लागू होने की बात की गई थी और सरकार को बताना चाहिए कि जनगणना और परिसीमन कार्य कब होंगे।
कांग्रेस सदस्य ने कहा कि जब प्रस्तावित कानून को 2029 में ही लागू होना है तो इस विधेयक को पारित कराने के लिए विशेष सत्र की क्या जरूरत थी। उन्होंने कहा कि इसे शीतकालीन सत्र में भी पारित कराया जा सकता था।
उन्होंने महिलाओं को अधिकारसंपन्न बनाने के लिए कांग्रेस के विभिन्न कदमों का जिक्र करते हुए कहा कि देश में पहली महिला प्रधानमंत्री, पहली राष्ट्रपति, पहली लोकसभाध्यक्ष उनकी पार्टी की ही देन हैं।
वेणुगोपाल ने कहा कि यह सरकार ओबीसी समुदाय के प्रति गंभीर होने का दावा करती है तो वह जाति आधारित जनगणना से क्यों भाग रही है।
उन्होंने कहा कि सरकार की कथनी और करनी में अंतर है। उन्होंने कहा कि एक ओर सरकार ‘‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’’ का नारा देती है और महिलाओं को अधिकार एवं सम्मान देने की बात करती है लेकिन मणिपुर जैसे गंभीर मुद्दे पर प्रधानमंत्री ने 100 दिनों के बाद भी कोई टिप्पणी नहीं की।
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उन्होंने कहा कि नए संसद भवन के उद्घाटन के मौके पर राष्ट्रपति के साथ ही उपराष्ट्रपति जो राज्यसभा के सभापति भी हैं, उन्हें आमंत्रित किया जाना चाहिए था।
इस विषय पर सभापति जगदीप धनखड़ ने उन्हें टोकते हुए कहा कि इस संबंध में कोई संवैधानिक उल्लंघन नहीं हुआ है। उन्होंने सदस्य को ‘होमवर्क’ करने की नसीहत देते हुए संविधान में किए गए संशोधन का जिक्र किया।
इससे पहले कांग्रेस सदस्य रंजीत रंजन ने विधेयक पर चर्चा की शुरुआत की। रंजन ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि उन्हें इस विधेयक के पीछे षडयंत्र नजर आता है क्योंकि सरकार साढ़े नौ साल बाद इसे लेकर आई है।
उन्होंने सवाल किया कि इस विधेयक के लिए संसद के विशेष सत्र की क्या जरूरत थी? उन्होंने कहा कि सरकार का मकसद इस विधेयक के जरिए भी सुर्खियां बटोरना है। उन्होंने इस विधेयक को चुनावी एजेंडा करार देते हुए कहा कि क्या सरकार इसके जरिए ‘‘झुनझुना’’ (बच्चों का एक खिलौना) दिखा रही है।
रंजन ने कहा कि सरकार का इरादा परिसीमन के बाद सीटों की संख्या में वृद्धि कर आरक्षण मुहैया कराना है ताकि पुरुषों की सीटों की संख्या नहीं घटे। उन्होंने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछ़ड़ा वर्ग (ओबीसी) की महिलाओं को भी अधिकार दिए जाने की मांग की।
विधेयक के कानून बनने इसे ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ कहे जाने का जिक्र करते हुए रंजन ने इस नाम पर आपत्ति जताई और कहा कि समानता महिलाओं का संवैधानिक अधिकार है और इसे दैविक या पूजा से जोड़ना उचित नहीं है।
उन्होंने कहा कि भाजपा नीत सरकार भले ही महिलाओं के वंदन की बात करती है लेकिन उसकी कथनी और करनी में भारी अंतर है। उन्होंने सवाल किया कि अगर सरकार को महिलाओं को उचित सम्मान ही देना था तो उसने नए संसद भवन के उद्घाटन के मौके आदिवासी समाज से आने वालीं महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को क्यों नहीं आमंत्रित किया।
उन्होंने कहा कि जंतर मंतर पर महिला पहलवानों के धरने का मामला हो या मणिपुर में महिलाओं के उत्पीड़न का मामला, सरकार के रुख को सबने देखा है। उन्होंने कहा कि जब सत्ता पाने की जरूरत होती है तो महिलाओं की वंदना की जाती है।
कांग्रेस की ही रजनी पाटिल ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि आज वह भाव विभोर हैं और खुद को गौरवान्वित महसूस कर रही हैं।
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उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को याद करते हुए कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री की दुरदृष्टि की वजह से ही उनकी जैसी महिलाएं आज नगर पंचायतों और जिला परिषद में हैं।
पाटिल ने कहा कि वर्ष 1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंचायतों में महिला आरक्षण का विधेयक लेकर आए थे लेकिन भाजपा के कारण वह राज्यसभा में पारित नहीं हो सका।
उन्होंने कहा कि जिस तरीके से सरकार यह विधेयक लेकर आई है, इससे उसकी नीयत में खोट नजर आ रहा है।
उन्होंने महिला आरक्षण विधेयक पेश किए जाने पर बॉलीवुड अभिनेत्रियों को संसद भवन में बुलाए जाने का उल्लेख करते हुए कि इससे उन्हें कोई आपत्ति नहीं है लेकिन आपत्ति इस बात पर है कि मणिपुर की महिलाओं और ओलंपिक पदक विजेता महिला पहलवानों के साथ यह सरकार हमदर्दी नहीं जताती है।
पाटिल ने जब अपना संबोधन आरंभ किया था उस समय आसन पर पीठासीन उपाध्यक्ष के रूप में झारखंड मुक्ति मोर्चा की महुआ माजी सदन का संचालन कर रही थी लेकिन जैसे ही उन्होंने बॉलीवुड अभिनेत्रियों को बुलाए जाने का जिक्र किया, उसी समय आसन पर समाजवादी पार्टी की सदस्य और अपने जमाने की मशहूर अभिनेत्री रहीं जया बच्चन आसीन हुईं।
इस दौरान सदन में कुछ देर ठहाके भी लगे।
इस पर पाटिल ने कहा कि उन्हें बॉलीवुड अभिनेत्रियों को बुलाए जाने पर कोई आपत्ति नहीं है।
बच्चन ने कहा कि इस समय वह आसन पर विराजमान हैं, लिहाजा कुछ नहीं बोलेंगी। इसके बाद एक बार फिर पूरा सदन ठहाकों से गूंज उठा।
पाटिल ने कहा कि परिसीमन और जनगणना को महिला आरक्षण विधेयक की राह में आड़े नहीं आना चाहिए।