Coronavirus: अपने ही रक्षकों के भक्षक.. आखिर क्यों?
रामधारी सिंह 'दिनकर' की कालजयी रचना ‘कृष्ण की चेतावनी’ का यह अंशः “जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है” आज की परिस्थितियों में तबलीगी जमात के कई धर्मांध मौलानाओं, कई अनुयाईयों पर सटीक बैठता हैं।
नई दिल्ली: लगभग एक महीने से लगातार अलग-अलग माध्यमों से चीख़-चीख़ कर कोरोना वायरस के खतरे से प्रत्येक भारतीय को अवगत किया जा रहा है। सामाजिक दूरी क्यों जरूरी है? सीधी-सरल भाषा में, विज्ञापनों से और गीत-संगीत द्वारा समझाया जा रहा है। प्रधान सेवक द्वारा हाथ जोड़कर घर में रहने और जीवन को बचाने की गुहार लगायी जा रही है लेकिन “ढाक के वही तीन पात” वाला मुहावरा चरितार्थ हो रहा है।
एक ओर मजबूर असहाय श्रमिक समुदाय हैं जो दो वक्त की रोटी और सुरक्षित छत हेतु विद्रोह को विवश हो गया। घर-परिवार से दूर भूखे पेट ने उन्हें याद दिलाया कि ‘बिना रोये तो माँ भी दूध नहीं पिलाती’, फिर शासकीय कर्मचारियों और अधिकारियों से मौन अपेक्षा क्यों? शायद इसीलिए एकत्रित होकर पेट की आग को बुझाने और ‘नियोजक कुंभकरणों’ को नींद से जगाने के लिए सामाजिक दूरी के आह्वान की धज्जियां उड़ाते हुये सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर हो गए।
पाठकों के मन में भी इन लोगों के लिए संवेदना होगी, पीड़ा होगी और आत्मा चीत्कार रही होगी। हताशा और निराशा के कारण इनकी उग्र हुई मानसिकता को समझते हुये, ऐसे लाचार लोगों पर क़ानूनी कार्यवाही करने की अपेक्षा अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति करना श्रेयष्कर है।
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दूसरी ओर तबलीगी जमात से जुड़े लोगों और उनकी पैरवी करने वाले धर्मांध भारतीय हैं। सामान्य परिस्थितियों में अपना सब-कुछ दांव पर लगाकर डॉक्टरों से जिंदगी की भीख मांगने वाले आज की विषम परिस्थितियों में उन्हीं देवदूतों के साथ अमानवीय व्यवहार, अनुशासन एवं कानून व्यवस्था तथा सेवा-सुरक्षा में लगे पुलिसकर्मियों पर क्रूर-प्रहार और इस्लाम धर्म की पवित्रता एवं अल्लाह की पाक रहमत की दुहाई देने वाले अनुचित व्यवहार कैसे कर सकते हैं?
वर्तमान परिस्थितियों में सरकार के आदेशानुसार डॉक्टर, स्वास्थ्य सेवक, पुलिसकर्मी और अनिवार्य सेवाओं में लगे कर्तव्य परायण लोगों के साथ किया जाने वाला अक्षम्य अपराध प्रत्येक संवेदनशील भारतीय के सीने पर कभी नहीं भरने वाला घाव है।
मीडिया का कहना है कि केंद्र और राज्य सरकारें ऐसे दरिंदों के खिलाफ़ क़ानूनी कार्यवाही करके उनके द्वारा नष्ट की गयीं सम्पत्ति की भरपाई उनसे पूरी करेंगी। भविष्य के गर्त में क्या छिपा है कोई नहीं जानता, लेकिन आने वाली पीढ़ियों द्वारा इतिहास के पन्नों में राष्ट्र और मानवता के दुश्मनों के रूप में ऐसे लोगों से घृणा अवश्य की जाएगी। ऐसे लोगों का पतन इतिहास में उनके आत्मघाती कृत्य ही रहे हैं। ये अपनी आन-बान और शान के दुश्मन स्वयं ही हैं, यदि ऐसा नहीं होता तो क्या आज यह जमाती अपने ही रक्षकों के भक्षक बनते?
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(लेखिका प्रो. सरोज व्यास फेयरफील्ड प्रबंधन एवं तकनीकी संस्थान, कापसहेड़ा, नई दिल्ली में डायरेक्टर हैं। डॉ. व्यास संपादक, शिक्षिका, कवियत्री और लेखिका होने के साथ-साथ समाज सेविका के रूप में भी अपनी पहचान रखती है। ये इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के अध्ययन केंद्र की इंचार्ज भी हैं)