अदालत ने सरकार से मानसिक रूप से बीमार लोगों को प्रर्याप्त गृह उपलब्ध कराने को कहा

डीएन ब्यूरो

दिल्ली उच्च न्यायालय ने सरकार से कहा है कि वह मानसिक रोग से पीड़ित उन व्यक्तियों के लिए पर्याप्त संख्या में दीर्घकालिक और अल्प प्रवास गृह उपलब्ध कराए, जिन्हें अस्पताल में नियमित रूप से भर्ती होने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन उनके पास सुरक्षित एवं सुखद वातावरण में रहने जाने के लिए घर नहीं हैं।

मानसिक रूप से बीमार (फाइल)
मानसिक रूप से बीमार (फाइल)


नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने सरकार से कहा है कि वह मानसिक रोग से पीड़ित उन व्यक्तियों के लिए पर्याप्त संख्या में दीर्घकालिक और अल्प प्रवास गृह उपलब्ध कराए, जिन्हें अस्पताल में नियमित रूप से भर्ती होने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन उनके पास सुरक्षित एवं सुखद वातावरण में रहने जाने के लिए घर नहीं हैं।

उच्च न्यायालय ने कहा कि अपने सभी नागरिकों के जीवन की देखभाल करना राज्य का परम कर्तव्य है। अदालत ने अधिकारियों से सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित एक महिला दोषी और ऐसे अन्य रोगियों की पर्याप्त देखभाल करने को कहा।

यह फैसला न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता द्वारा उनकी सेवानिवृत्ति से एक दिन पहले उनके नेतृत्व वाली अलग-अलग खंडपीठों द्वारा सुनाए गए 65 फैसलों में शामिल है। वह मंगलवार को 62 वर्ष की उम्र में दिल्ली उच्च न्यायालय से सेवानिवृत्त हो रही हैं।

न्यायमूर्ति गुप्ता और न्यायमूर्ति पूनम ए बाम्बा की पीठ ने 70 पृष्ठों वाले फैसले में कहा, ‘‘उम्मीद की जाती है कि इस अदालत के निर्देशों के अनुसार... राज्य मानसिक बीमारी वाले ऐसे लोगों के लिए पर्याप्त संख्या में अल्पावास गृह और लंबे समय तक रहने वाले गृह सुनिश्चित करेगा, जिन्हें अस्पताल में नियमित रूप से भर्ती होने की आवश्यकता नहीं है और जिनके पास सुरक्षित और सुखद वातावरण में रहने जाने के लिए कोई घर नहीं है।’’

पीठ उस महिला की ओर से दायर याचिका पर सुनवायी कर रही थी जिसमें उसने अपने पति की हत्या के लिए दोषी ठहराए जाने और आजीवन कारावास की सजा को चुनौती दी थी। उक्त महिला को उसकी सौतेली बेटी को गंभीर चोटें पहुंचाने का भी दोषी ठहराया गया था, जिसकी बाद में मृत्यु हो गई।

यह भी पढ़ें | Delhi Gas leakage: दिल्ली में गैस रिसाव से 28 छात्र बीमार, दो गंभीर, FIR दर्ज, जानिये हादसे से जुड़ा पूरा अपडेट

सुनवाई के दौरान, उसे सिज़ोफ्रेनिया होने का पता चला और उसे मानव व्यवहार और संबद्ध विज्ञान संस्थान (इहबास) में एक बाह्य रोगी के रूप में उपचार कराना पड़ा।

सिज़ोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक विकार होता है।

महिला को सितंबर 2005 में गिरफ्तार किया गया था और इहबास में उसका उपचार मई 2009 में शुरू हुआ था। निचली अदालत ने 21 अगस्त, 2010 को उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 302 और 326 के तहत अपराध का दोषी ठहराया था, जिसे उसने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।

उच्च न्यायालय ने महिला की दोषसिद्धि को हत्या से गैर इरादतन हत्या में बदल दिया। हालाँकि, उसने उसकी सौतेली बेटी को गंभीर चोट पहुँचाने के लिए उसकी सजा को बरकरार रखा।

उच्च न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा को 12 वर्ष जेल में बदल दिया।

यह भी पढ़ें | अदालत ने डॉ बाबासाहेब आंबेडकर अस्पताल के चिकित्सा निदेशक की नियुक्ति रद्द की

पीठ ने कहा, ‘‘अपने सभी नागरिकों के जीवन का ध्यान रखना राज्य का परम कर्तव्य है। चूंकि अपीलकर्ता खुद की देखभाल करने की स्थिति में नहीं है, भले ही सिज़ोफ्रेनिया इस समय ठीक है और न ही उसके परिवार का कोई सदस्य उसकी देखभाल करने के लिए इच्छुक है, यह राज्य का कर्तव्य है कि वह (महिला) और ऐसे अन्य रोगियों की उसकी पर्याप्त देखभाल करे जिनके लिए अल्पकालिक/दीर्घकालिक प्रवास गृह स्थापित किए गए हैं।’’

उसने यह भी कहा कि महिला इहबास में दीर्घकालिक गृह में रहेगी और उसके उपचार और रहने का खर्च राज्य द्वारा वहन किया जाएगा।

पीठ ने आदेश दिया कि फैसले की एक प्रति आवश्यक अनुपालन के लिए दिल्ली सरकार के प्रधान सचिव (गृह) और प्रधान सचिव (स्वास्थ्य), महानिदेशक (जेल) और चिकित्सा अधीक्षक, इहबास को भी भेजी जाए।

 










संबंधित समाचार