दिल्ली: अदालत ने बुजुर्ग की अस्वभाविक मौत की जांच में ‘असंवेदनशील’ रुख के लिए पुलिस को फटकार लगाई
यहां की एक अदालत ने सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) से सेवानिवृत्त 85 वर्षीय व्यक्ति की अस्वभाविक मौत की जांच में ‘‘लचर, गैर पेशेवर और असंवेदनशील’ रुख को लेकर दिल्ली पुलिस के अधिकारियों को फटकार लगाई। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर
नयी दिल्ली: यहां की एक अदालत ने सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) से सेवानिवृत्त 85 वर्षीय व्यक्ति की अस्वभाविक मौत की जांच में ‘‘लचर, गैर पेशेवर और असंवेदनशील’ रुख को लेकर दिल्ली पुलिस के अधिकारियों को फटकार लगाई।
अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार के प्रति संस्थागत उदासीनता को क्षमा नहीं किया जा सकता है और अपने बुजुर्गों की उपेक्षा और शोषण करने वालों को छूट नहीं दी जा सकती।
पुलिस ने दावा किया कि जम्मू निवासी उजागर सिंह सड़क हादसे में मारे गए जबकि अदालत ने पाया कि बुजुर्ग अपने ही बच्चों के उत्पीड़न का शिकार था और अस्वभाविक परिस्थितियों में उसकी मौत हुई।
मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण की पीठासीन अधिकारी कामिनी लाउ सिंह की मौत संबंधी मामले की सुनवाई कर रही थीं जो 10 दिसंबर को झंडेवालाना मंदिर के नजदीक घायल अवस्था में मिले थे। सिंह की उसी दिन अस्पताल में मौत हो गई जिसके बाद दुर्घटना में मौत की प्राथमिकी दर्ज की गई और जांच अधिकारी ने अधिकरण के समक्ष प्रथम दुर्घटना रिपोर्ट (एफएआर) जमा की।
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न्यायाधीश ने रेखांकित किया कि यह अदालत का कर्तव्य है कि वह सुनिश्चित करे कि अस्वभाविक मौत के किसी भी मामले को मोटर वाहन दुर्घटना मानकर नियमित आधार पर बंद नहीं किया जाए। अदालत ने अधिकारियों से सवाल-जवाब किया और उनके जवाब से असंतुष्ट होने पर पुलिस उपायुक्त (मध्य दिल्ली) को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का निर्देश दिया।
सुनवाई के बाद शुक्रवार को पारित आदेश में न्यायाधीश ने कहा, ‘‘पहाड़गंज के थाना प्रभारी ने लिखित में दिया है कि मौजूदा मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा- 109 (उकसाने के लिए सजा), 304 (गैर इरादतन हत्या) और 34 (समान मंशा) जोड़ी जा सकती है और वह माता-पिता व वरिष्ठ नागरिक कल्याण व देखरेख अधिनियम की सुसंगत धाराएं भी लागू करेंगे।’’
पुलिस ने इससे पहले लापरवाही से वाहन चलाने की वजह से मौत होने का मामला दर्ज किया था।
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मैंने पाया कि थाना प्रभारी और पुलिस उपायुक्त ने लचर, बहुत ही गैर पेशेवर और निश्चित तौर पर असंवेदनशील रुख अपनाया। उन्होंने स्थापित और मानक जांच प्रक्रिया को नजर अंदाज किया और उम्मीद की कि यह अदालत या अधिकरण बड़ी खामियों को नजरअंदाज कर उसके अतार्किक, अनुचित निष्कर्ष को मान लेगी।’’
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न्यायाधीश ने कहा, ‘‘विधि द्वारा स्थापित अदालत होने के नाते किसी भी गैर कानूनी कार्रवाई को बर्दाश्त या नजर अंदाज नहीं कर सकती। विधि द्वारा स्थापित अदालत रबर की मुहर नहीं है और न्याय सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने हेतु उसमें पार्यप्त शक्तियां निहित है।’’
अदालत ने पुलिस उपायुक्त को 17 जनवरी को स्थिति रिपोर्ट जमा करने की अनुमति दे दी और आदेश की प्रति ‘ सूचना और जरूरी कार्रवाई ’ के लिए पुलिस आयुक्त को भेजने का निर्देश दिया ।
गौरतलब है कि अदालत ने इससे पहले नौ जनवरी को हुई सुनवाई के दौरान प्राथमिकी दर्ज करने में 26 दिनों की देरी और हल्की धाराएं लगाने को लेकर सहायक पुलिस आयुक्त और पहाड़गंज के थाना प्रभारी के आचरण की आलोचना की थी।