तमाम अपमान, अनादर सहने के बावजूद सेवा के रास्ते से नहीं हटना चाहिए

डीएन ब्यूरो

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार को खुद को ‘‘पीड़ित’’ बताते हुए कहा कि तमाम अपमान सहने के बावजूद किसी को सेवा के रास्ते से कभी नहीं हटना चाहिए। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

अनादर सहने के बावजूद सेवा के रास्ते से नहीं हटना चाहिए
अनादर सहने के बावजूद सेवा के रास्ते से नहीं हटना चाहिए


नयी दिल्ली: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार को खुद को ‘‘पीड़ित’’ बताते हुए कहा कि तमाम अपमान सहने के बावजूद किसी को सेवा के रास्ते से कभी नहीं हटना चाहिए।

उन्होंने यह भी कहा कि हर किसी को दूसरों के दृष्टिकोण को जगह देनी चाहिए लेकिन जब दूसरों को उनके रास्ते से हटाने के इरादे से विचार प्रस्तुत किए जाते हैं तो लोगों को अपनी ‘‘रीढ़ की ताकत’’ दिखानी चाहिए।

यहां भारतीय सांख्यिकी सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों के एक समूह को संबोधित करते हुए धनखड़ ने कहा कि वह उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति हैं, लेकिन लोग ‘मुझे भी नहीं छोड़ते।’ उन्होंने कहा, ‘‘क्या मुझे अपनी मानसिकता बदलनी चाहिए? नहीं। क्या इससे रास्ता भटक जाना चाहिए? नहीं।’’

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उपराष्ट्रपति की टिप्पणी संसद के हाल में समाप्त हुए शीतकालीन सत्र के दौरान सदन में व्यवधान और राज्यसभा से विपक्षी सदस्यों के बड़े पैमाने पर निलंबन की पृष्ठभूमि में आई है। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया था कि असहमति की आवाज को दबाया जा रहा है, वहीं धनखड़ ने कहा कि सदन में गतिरोध को हल करने के लिए बातचीत के सभी प्रयास विफल होने के बाद यह (निलंबन का) आखिरी कदम है।

धनखड़ ने यह भी कहा कि युवा अधिकारियों के रूप में उन्हें देश के विकास के प्रति उन लोगों से कभी डरना नहीं चाहिए जिनका हाजमा खराब है। उन्होंने कहा, ‘‘मैं पीड़ित हूं। पीड़ित जानता है कि अंदर से कैसे झेलना है। सभी अपमान, सभी अनादर को झेल लें- हम भारत माता की सेवा में हैं। आपको ईमानदारी और उच्च मानक दिखाने होंगे।’’

खुद को पीड़ित बताते हुए धनखड़ परोक्ष रूप से उस घटना का जिक्र कर रहे थे, जहां संसद के नए भवन की सीढ़ियों पर लोकसभा के एक विपक्षी सदस्य ने उनकी नकल की थी।

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डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार उपराष्ट्रपति ने प्रशिक्षु अधिकारियों को बताया कि महिला आरक्षण विधेयक तीन दशकों तक लंबित रहने के बाद संसद द्वारा लगभग सर्वसम्मति से पारित किया गया। उन्होंने कहा, ‘‘इसका मतलब है कि हमारे पास बातचीत की संस्कृति है...टकराव में शामिल न हों, सहयोग करें। देश सभी का है। सभी का विकास एक साथ होगा-यह नया आदर्श है।’’










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