DN Exclusive: सरकार के दावे और किसानों की हकीकत, जानिये क्या है देश के अन्नदाताओं का असली हाल, पढ़ें डाइनामाइट न्यूज़ की ये रिपोर्ट
राज्य सरकारों और केंद्र की तमाम योजनाओं के बीच आखिरकार देश की खेती और किसानों के जीवन में आखिर कितना बदलाव आया और किसान सरकार की योजनाओं से कितने लाभान्वित हो रहे हैं? इसी तरह के बड़े सवालों के जवाब के लिए पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की ये एक्सक्लूसिव रिपोर्ट और जानिये क्या बोल रहे देश के अन्नदाता
नई दिल्ली: भारतीय कृषि और किसान हमेशा से ही देश की अर्थव्यस्था की रीढ़ और राजनीति के केंद्र में रहे हैं। सीमा पर जवान और खेत में किसान का हमारे देश में समान महत्व माना जाता है। आजादी के बाद हर सरकार ने समय-समय पर किसानों के हित में बड़ी-बड़ी घोषणाएं की लेकिन कई कारणों से किसानों की स्थिति में आज तक अपेक्षित सुधार न हो सका। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर कृषि देश का सबसे बड़ा रोजगार प्रदाता क्षेत्र है लेकिन इसके बाद भी यह देश का सबसे बड़ा असंगठित सेक्टर बना हुआ है।
किसान और सियासत का सामना
साल 2014 में केंद्र की सत्ता संभालने के बाद प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी ने जो भी बड़ी घोषणाएं की, उनमें से कई घोषणाएं कृषि और किसानों से जुड़ी हुई रहीं। लेकिन इसके बावजूद भी किसान और सियासत का एक दूसरे से आमना-सामना होता रहा। तीन कृषि कानूनों को लेकर देश ने किसान आंदोलन के रूप में एक बड़ा और अभूतपूर्व आंदोलन देखा। इसे किसानों की शक्ति समझें या सरकार का लचीलापन कि आखिरकार पीएम मोदी को अपनी सरकार के तीन महत्वाकांक्षी कृषि कानूनों को वापस लेना पड़ा।
खेती-किसानी की कई योजनाएं
इसमे कोई संदेह नहीं कि प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी ने खेती-किसानी के हित में किसान सम्मान निधि योजना, फसल बीमा, किसान क्रेडिट कार्ड, पशुधन योजना, किसान स्वास्थ्य बीमा और डीबीटी (डारेक्ट बैनिफिट ट्रांसफर) जैसी कई योजनाएं शुरू की है। इन योजनाओं का असर ये हुआ कि किसानों को उनके हक के सरकारी पैसे उनके बैंक खाते में डारेक्ट ट्रांसफर के जरिये मिलने लगे और बिचौलियों और सरकारी बाबुओं द्वारा ली जाने वाली कथित रिश्वत बंद हो गई।
खेती-किसानी में कितना बदलाव?
राज्य सरकारों और केंद्र की तमाम योजनाओं के बीच आखिरकार देश की खेती-किसानी में कितना बदलाव आया और किसान सरकार की योजनाओं से कितना लाभान्वित हो रहे हैं? ऐसे ही तमाम सवालों का जबाव तलाशने के लिये डाइनामाइट न्यूज़ की टीम दिल्ली से सटे हरियाणा के किसानों के बीच पहुंची और जमीनी हकीकत को जानने-समझने की कोशिश की।
यह भी पढ़ें |
Farmers Protest: कंक्रीट के अवरोधक, लोहे की कील, कंटीले तारों से किलेबंदी...फिर भी किसानों का दिल्ली कूच
टिकरी बॉर्डर और किसानों का गढ़
दिल्ली-हरियाणा सीमा पर स्थित टिकरी बॉर्डर देश में एक बार किसानों के आंदोलन का बड़ा केंद्र रहा। डाइनामाइट न्यूज़ टीम ने भी खेती-किसानी की जमीनी हकीकत को जानने के लिये यही क्षेत्र चुना और राजधानी दिल्ली से सटे हरियाणा के सावदा गांव और आसपास के क्षेत्रों में पहुंची। यह क्षेत्र किसानों के बड़े गढ़ के रूप में भी जाना जाता है।
ठिठुरती ठंड में खेती की मजबूरी
सर्द मौसम और घने कोहरे में भी यहां के किसान खेतों में डटे हुए हैं। शॉल में लिपटे और सिर पर साफा-गरम टोपी पहने अधिकतर किसानों के हाथों में घरेलू कृषि यंत्र, खेतों में लहलहाती साग-सब्जी और हरी-भरी कृषि उपज का दृश्य यहां दूर-दूर तक नजर आता है। ठिठुरती ठंड भी खेती के प्रति किसानों के प्रेम या कहें कि विवशता को रोकने में नाकाम है।
सर्द हवाओं में पसीना
लगभग दोपहर के 12 बजे रहे हैं और सर्द हवाओं के बीच हल्की सी धूप में कुछ किसानों के चेहरों पर काम करते-करते पसीना साफ नजर आ रहा है। किसानों का एक झुंड गाजर, मूली, राई, पालक और सरसों के हरे-भरे खेत में काम करने मशगूल हैं।
कई बार भूखे-प्यासे रहते किसान
डाइनामाइट न्यूज़ की टीम उस खेत में पहुंची, जहां किसानों का एक झुंड एक साथ काम कर रहा है। किसानों ने बताया कि वे ठंड-जाड़े की परवाह किये बिना वे अल्लसुबह लगभग 7 बजे खेतों में पहुंच जाते हैं। गाजर, मूली, पालक, राई आदि तैयार हो चुकी है। इन सबको निकालना, इकट्ठा करना और सुरक्षित तरीके से बाजार तक पहुंचाने की मशक्कत में उन्हें कई बार भूखा-प्यासा भी रहना पड़ता है। किसानों ने बताया कि इस क्षेत्र में गाजर, धान, बाजरा की खेती और हरी सब्जियां सबसे ज्यादा होती है।
यह भी पढ़ें |
Farmers Protest: किसानों के ‘दिल्ली मार्च’ को लेकर सीमाओं की किलाबंदी, धारा-144, ड्रोन और CCTV से निगरानी
किसान का दर्जा वापस दिलाएं पीएम मोदी
सरकार की योजनाओं को लेकर किसानों का मिलाजुला रुख सामने आया। डाइनामाइट न्यूज़ से बातचीत में एक किसान ने कहा कि जबसे ये सरकार आई है 2014 के बाद तबसे किसान घाटे में जा रहे हैं। एक अन्य किसान ने कहा कि हम किसान है ही नहीं। क्योंकि शीला दीक्षित सरकार ने उनके दिल्ली के किसानों का दर्जा खत्म कर दिया था। हमें किसी भी तरह की सब्सिडी नहीं दी जा रही है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ठीक काम कर रही है लेकिन यदि वे हमें किसान का दर्जा वापस दिला सकें तो यह उनकी किसानों के लिये बड़ी उपलब्धि होगी।
इनपुट-रोहित गोयल
किसानों से पूरी बातचीत के लिये देखें ये https://youtu.be/5m7QfBi71Rc वीडियो।