Bihar Politics: दो दशक से सीएम पद पर काबिज नीतीश कुमार को भी मिली थी मात, जानिए कैसे नंबर-1 बनी JDU
नीतीश कुमार ने बिहार में वो जादू चलाया, जिससे पूरा बिहार उनका दीवाना हो गया। वैसे तो पहली बार में नीतीश कुमार को हार का सामना करना पड़ा। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

पटना: बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार एक ऐसा नाम हैं जो पिछले 20 वर्षों से सत्ता का पर्याय बने हुए हैं। हालांकि, मुख्यमंत्री रहते हुए भी उन्होंने कभी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा। लेकिन उनकी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत 1977 के हरनौत विधानसभा चुनाव से हुई थी। जहां उन्हें अपने पहले ही चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। यह सीट अब जदयू का गढ़ मानी जाती है, लेकिन इसके पीछे का राजनीतिक सफर दिलचस्प रहा है।
डाइनामाइट न्यूज़ की इस रिपोर्ट में जानिए नीतीश कुमार का सियासी सफर
वर्ष 1977 में नीतीश कुमार को मिली पहली हार
वर्ष 1977 में हरनौत विधानसभा सीट पर 10 जून को मतदान हुआ था। इस चुनाव में जनता पार्टी के टिकट पर 26 वर्षीय नीतीश कुमार ने अपनी पहली चुनावी पारी खेली, लेकिन निर्दलीय उम्मीदवार भोला प्रसाद सिंह ने उन्हें मात दे दी। उस समय हरनौत के कुर्मी वोटरों का झुकाव भोला प्रसाद की ओर था, क्योंकि उन्होंने क्षेत्र के कई लोगों को बंदूकों के लाइसेंस दिलाने, बिजली की सुविधा उपलब्ध कराने और बाढ़ राहत में सक्रिय भूमिका निभाने में मदद की थी। इस चुनाव पर बेलछी हत्याकांड का भी असर पड़ा था। जिसमें दो जातियों के बीच तनाव बढ़ गया था। कहा जाता है कि इस घटना के कारण नीतीश कुमार को कुर्मी समाज का समर्थन पूरी तरह नहीं मिल सका और भोला प्रसाद को जीतने का मौका मिला।
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वर्ष 1980 और 1985 में असफलता के बाद पहली जीत
नीतीश कुमार ने वर्ष 1980 के विधानसभा चुनाव में दोबारा हरनौत से किस्मत आजमाई, लेकिन एक बार फिर हार का सामना करना पड़ा। हालांकि वर्ष 1985 में जब वे लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़े तो आखिरकार उन्हें सफलता मिली। उन्होंने कांग्रेस के बृजनंदन प्रसाद सिंह को 21,412 वोटों से हराकर पहली बार विधायक बनने का गौरव हासिल किया।
वर्ष 1990 और 1995 में फिर से निर्दलीय ने रोकी राह
वर्ष 1989 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद नीतीश कुमार ने हरनौत विधानसभा सीट छोड़ दी। 1990 में यहां से निर्दलीय बृजनंदन यादव ने जीत दर्ज की। लेकिन वर्ष 1995 में नीतीश कुमार ने समता पार्टी के टिकट पर यहां से दोबारा चुनाव लड़ा और जीत गए। हालांकि, लोकसभा सदस्यता बरकरार रखने के लिए उन्होंने यह सीट छोड़ दी लेकिन तब तक हरनौत जदयू के लिए एक मजबूत किला बन चुका था।
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जदयू का अभेद्य किला
वर्ष 1996 के उपचुनाव में समता पार्टी के अरुण कुमार सिंह ने जीत दर्ज की। वर्ष 2000 में भी समता पार्टी के विश्वमोहन चौधरी ने राजद के सुनील कुमार को हराया। वर्ष 2003 में समता पार्टी का जदयू में विलय हो गया। तब से यह सीट लगातार जदयू के कब्जे में बनी हुई है। फरवरी 2005 और अक्टूबर 2005 में जदयू के सुनील कुमार ने जीत दर्ज की। वर्ष 2010, 2015 और 2020 में जदयू के हरिनारायण सिंह ने लगातार जीत हासिल की।
हरनौत से नीतीश की राजनीतिक पकड़ बरकरार
नीतीश कुमार भले ही हरनौत से ज्यादा समय तक विधायक न रहे हों, लेकिन उन्होंने इस सीट को अपनी पार्टी का मजबूत गढ़ बना दिया। पिछले 25 वर्षों में यहां से जदयू को हराने में किसी भी पार्टी को सफलता नहीं मिली। यह सीट न केवल उनके शुरुआती संघर्ष की गवाह रही है, बल्कि जदयू के राजनीतिक वर्चस्व का प्रतीक भी बन चुकी है।