चुनावी साल में एसएसपी दीपक कुमार के ACR के बहाने आपस में भिड़े यूपी के आईपीएस..

मनोज टिबड़ेवाल आकाश

लखनऊ के एसएसपी रहे दीपक कुमार की ACR को लेकर यूपी में घमासान मचा हुआ है। पहले तो आईजी जेएन सिंह और प्रमुख सचिव गृह आपस में भिड़े। फिर आईपीएस अफसरों के WhstsApp ग्रुपों में तीरंदाज आईपीएस आपस में दो-दो हाथ करने लगे। इन सबके बीच डीजीपी रहस्यमय चुप्पी धारण किये हुए हैं। अनुशासन की धज्जियां उड़ रही है। दो महीने बाद इन्हीं आईपीएस अफसरों को राज्य में चुनाव कराना है लेकिन जब इस कदर अंर्तकलह मचा हुआ है तो फिर राज्य का भगवान ही मालिक है। डाइनामाइट न्यूज़ एक्सक्लूसिव..

आईपीएस अफसर की कैप (प्रतीकात्मक चित्र)
आईपीएस अफसर की कैप (प्रतीकात्मक चित्र)


नई दिल्ली: दो महीने बाद यूपी में चुनावी पारा उफान पर होगा लेकिन अनुशासित माने जाने वाले महकमे में सीनियर आईपीएस अफसर ही बिल्लियों की तरह आपस में झगड़ रहे हैं। ये लड़ाई.. दो आईपीएस अफसरों दीपक कुमार और गोरखपुर रेंज के आईजी जय नारायण सिंह के बीच की है और इसमें तड़का लगाया प्रमुख सचिव गृह अरविंद कुमार ने। 

वरिष्ठ आईपीएस अफसरों की आपसी गुटबाजी और लाबिंग का महकमे के नये लड़कों पर बुरा असर पड़ रहा है लेकिन इससे किसी को कोई मतलब नही.. यदि मतलब है तो सिर्फ अपने आप से।

राज्य की पूरी आईपीएस बिरादरी इस समय आईएएस बनाम आईपीएस; यूपी बनाम बिहार; आईपीएस बनाम आईपीएस; उत्तर बनाम दक्षिण की खेमेबंदी का शिकार होकर रह गयी है। बड़ी संख्या में आईपीएस किसी न किसी गुट से जुड़े हैं और जो नही जुड़े हैं या नये हैं.. उन्हें समझ में नही आ रहा है कि यह लड़ाई कहां जाकर रुकेगी?

सूबे में जब योगी की सरकार बनी तब जगह-जगह नये अफसर तैनात हुए। लखनऊ रेंज में आईजी की कमान संभाली जेएन सिंह ने। ये मूल रुप से आजमगढ़ के रहने वाले हैं 1994 बैच के आईपीएस हैं और राजपूत बिरादरी से आते हैं, इनकी वर्तमान तैनाती आईजी रेंज, गोरखपुर है। वहीं लखनऊ रेंज के एसएसपी की जिम्मेदारी मिली 2005 बैच के आईपीएस दीपक कुमार को। ये बिहार के बेगुसराय के रहने वाले हैं और भूमिहार जाति से आते हैं। हाल में ही इनको डीआईजी के रुप में प्रमोशन मिला है और गाजियाबाद पीएसी में तैनात हैं।

आईपीएस दीपक कुमार

इन दोनों की लखनऊ के आईजी और एसएसपी की तैनाती के दौरान की अदावत जग-जाहिर थी.. लोगों को लगा कि कोई पर्सनल झगड़ा थोड़े ही है.. कुर्सी बदलेगी, विवाद समाप्त हो जायेगा लेकिन हुआ उल्टा। दीपक बतौर एसएसपी लखनऊ में 28 अप्रैल 2017 से 7 जुलाई 2018 तक तैनात रहे। 

इनके इसी कार्यकाल की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (ACR) आईजी जेएन सिंह ने लिखी। इन्हें जेएन ने 10 में से 2.27 नंबर दिये। यूं तो किसी भी वरिष्ठ अधिकारी द्वारा मातहत की ACR लिखा जाना पूरी तरह उसका व्यक्तिगत विवेक है लेकिन जिस तरह की बात सामने आ रही है, वह कई सवालों को जन्म दे रही है। जेएन ने दीपक पर जमकर भड़ास निकाली और उन्हें नाकारा और गया-गुजरा अफसर लिखित में बता डाला। यही नही दीपक की अखंडता (इन्ट्रीगिटी) पर भी सवाल खड़े किये गये।  

आईपीएस जय नारायण सिंह

जेएन की नजरों में दीपक पर बड़े आरोप

1. दीपक ने जमकर भ्रष्टाचार और धनउगाही की

2. जमीनों पर खूब अवैध कब्जे कराये

3. घनघोर जातिवादी हैं

4. दलितों व अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव किया

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5. राजनीतिक द्वेषवश किसानों के द्वारा सीएम आवास पर आलू फेंके जाने के मामले में गैर जरुरी प्रेसवार्ता की

6. बेकार और किसी काम लायक अफसर नही हैं

7. बतौर आईपीएस अखंडता (इन्ट्रीगिटी) संदिग्ध है

जब इतने सारे आरोप जेएन ने दीपक पर लिखित में मढ़ डाले तो फिर दीपक ने अपना जोड़-घटाना शुरु किया और पहुंच गये प्रमुख सचिव गृह अरविंद कुमार के दरबार। यहां उन्हें भरपूर संरक्षण मिला और दीपक के बहाने अरविंद कुमार ने जमकर जेएन की लानत-मलामत की।

अरविंद ने न सिर्फ जेएन की ACR को फाड़कर रद्दी की टोकरी में डाल दिया बल्कि जिस अंग्रेजियत में जेएन के एक-एक आरोपों को धोया वह भी कम हैरान करने वाला नही है। 

प्रमुख सचिव गृह अरविंद कुमार

कुछ इस अंदाज में जेएन की ACR को PS Home ने किया खारिज

1. लगता है ACR नहीं लिख रहे बल्कि दीपक से पुरानी दुश्मनी निभा रहे हैं जेएन

2. हैरान हूं कैसे किसी मातहत से व्यक्तिगत दुश्मनी निभा सकते हैं

3. पूरी ACR पक्षपातपूर्ण, पूर्वाग्रह से ग्रस्त है इसलिए खारिज की जाती है

4. मुझे लखनऊ के कमिश्नर और एडीजी जोन ने बताया कि दोनों अफसरों के बीच क्या चल रहा है

4. बात-बात पर आईजी अपना निर्णय एसएसपी को मानने को बाध्य करते और सार्वजनिक तौर पर जलील करते थे

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5. इन्हीं सब हरकतों के चलते जेएऩ को लखनऊ रेंज से बाहर फेंका गया

6. दीपक के करियर को नुकसान पहुंचाने का कुत्सित प्रयास किया गया

इतना तक तो गनीमत था कि एक एसएसपी के ACR को उसके आईजी ने खराब मान लिखा और फिर एसएसपी ने उसे प्रमुख सचिव गृह के दरबार मे चुनौती दी जिसे PS Home ने अपने विवेक से निपटाया। इतना तक चुपचाप हो जाता तो गनीमत था। शायद कुछ ही लोगों के बीच दो आईपीएस के बीच के झगड़े की कहानी रह जाती लेकिन यूपी के कलाकार आईपीएस कहां किसी को चैन से बैठने देने वाले। यहां तो हर किसी को फटे में टांग अड़ाने की आदत जो ठहरी।

एडीजी आदित्य मिश्रा

एडीजी आदित्य मिश्रा की मंशा पर उठे सवाल

डाइनामाइट न्यूज़ के पास मौजूद स्क्रीनशाट्स के मुताबिक डायल-100 में तैनात एडीजी आदित्य मिश्र ने प्रमुख सचिव गृह की गोपनीय वार्षिक रिपोर्ट को सार्वजनिक तौर पर यूपी के आईपीएस अफसरों के WhstsApp ग्रुप में डाल हड़कंप मचा दिया। कहने को ये उस पर स्वस्थ चर्चा चाहते थे लेकिन अंदर की मंशा पर उनके साथी बड़ी संख्या में सवाल खड़े कर रहे हैं। सवाल यह भी उनके पास यह गोपनीय वार्षिक रिपोर्ट आय़ी कहां से? क्या घर में ही कोई फिक्स मैच चल रहा है? आदित्य मूल रुप से पटना के रहने वाले हैं और 1989 बैच के आईपीएस हैं। जानकार बताते हैं कि इनकी जेएन से बनती नही है। जेएन और दीपक के दौर में ये सूबे के एडीजी (कानून और व्यवस्था) थे।

अब हालत ये ही कि WhatsApp ग्रुप में ये ACR सार्वजनिक होते ही ज्ञान व नैतिकता देने के नाम पर आईपीएस अफसरों की आपसी गुटबंदी शुरु हो गयी। हर कोई अपने-अपने हिसाब से दोनों एसीआर की व्याख्या करने लगा। तरह-तरह की बातें कही जाने लगीं।

क्या ACR लिखना ही नही जानते जय नारायण सिंह?

इधर जब डाइनामाइट न्यूज़ ने नई दिल्ली में तैनात डीजी रैंक के दो आईपीएस अफसरों से अलग-अलग बात की तो दोनों ने कहा कि आईजी जेएन सिंह को लगता है ACR लिखने ही नही आता। वो ये सारी चीजें तरीके से लिख जगहंसाई से बच सकते थे। उन्हें अपने आरोपों के बारे में मजबूत दलीलें/सबूत देने चाहिए थे लेकिन वे ऐसा नही कर पाये।

बदनामी लगातार जारी

अब देखना होगा आईपीएस अफसरों की लड़ाई कहां जाकर समाप्त होती है। अपने ही एजेंडे पर सूबे की पुलिस को हांकने वाले डीजीपी साहब.. आईपीएस अफसरों की गुटबाजी, लाबिंग को कंट्रोल कर उन्हें अनुशासित कर पाते है या नही.. या फिर उनके नेतृत्व में यूपी पुलिस की ये बदनामी बदस्तूर जारी रहेगी..










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