कानपुर पुलिस हत्याकांड: क्या खाकी और खादी की शह पर ही पुलिस की पहुंच से बाहर है हिस्ट्रशीटर विकास दूबे?
कानपुर पुलिस हत्याकांड ने एक बार फिर से अपराधियों को खाकी और खादी का संरक्षण मिलने की कहानी को उजागर कर दिया है। बड़ा सवाल है कि क्या मोस्ट वांटेड विकास दूबे को अब भी इसी तरह के शह के कारण पुलिस की गिरफ्त से बाहर है? पढिये, स्पेशल रिपोर्ट..
लखनऊ: देश को झकझौर कर रख देने वाले कानपुर पुलिस हत्याकांड ने एक बार फिर से अपराधियों को खाकी और खादी का संरक्षण मिलने और उसकी ही शह में फलने-फूलने व बड़े होनी की कहानी को फिर उजागर कर दिया है। इस जघन्य हत्याकांड के मास्टरमाइंड विकास दूबे का अब तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर होना न केवल चौंकाने वाला है बल्कि हमारे पुलिस सिस्टम की पोल खोलकर रख देने वाला भी है।
देश के सबसे बड़े राज्य यूपी की सत्ता संभालने के शीघ्र बाद सीएम योगी आदित्यनाथ ने राज्य के अपराधियों यूपी छोड़कर चले जाने या फिर सरेंडर कर देने की चेतावनी दी थी और ऐसा न करने वालों को सीएम ने उन ‘दो जगहों’ को भेजने की बात कही थी, जहां कोई जाना नहीं चाहता। सीएम योगी के इस सख्त निर्देश पर यूपी पुलिस और एसटीएफ ने राज्य में मुठभेड़ अभियान भी छेड़ा और कई कुख्यात गुडों और अपराधियों को एनकाउंटर में हमेशा के लिये खत्म भी किया। पुलिस और सरकार पर अपराधियों के खात्मे के लिये चलाये गये इस अभियान को लेकर कई सवाल भी उठाये गये लेकिन सीएम योगी ने अपने निर्देशों से कोई समझौता नहीं किया।
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यूपी सरकार के यह अभियान हालांकि अब भी जारी है लेकिन सबसे बड़ा सवाल भी इस अभियान से ही निकलता है। यूपी सरकार के इस अभियान में अब तक कई वांटेड अपराधी मारे गये लेकिन कानपुर पुलिस हत्याकांड के मास्टरमाइंड विकास दूबे जैसे कुछ दुर्दांत गुंडे न केवल बचे रहे बल्कि वे चुपचाप अपने गैरकानूनी कृत्यों और अपराधों को भी अंजाम देते रहे। आखिर ये बचे कैसे? यही सबसे बड़ा सवाल है। इस सवाल का सीधा सा जबाव कि ऐसे कुख्यात अपराधियों को नेताओं और पुलिस की वर्षों से मिलता आ रहा संरक्षण।
कुख्यात विकास दूबे के मामले में परत दर परत यह साफ होता जा रहा है कि यदि पुलिस विभाग में कोई इस अपराधी का मुखबिर या भेदिया न होता तो यूपी के 8 जाबांज पुलिस कर्मियों की हत्या न होती। यदि इस अपराधी को खाकी और खादी का संरक्षण न मिलता तो यह सीएम योगी बतायी गयी दो जगहों में किसी एक जगह जरूर पहुंच चुका होता। लेकिन वर्ष 2017 के अंत में यूपी एसटीएफ द्वारा मोस्ट वांटेड विकास दूबे का गिरप्तार होने के बाद भी बच जाना, काफी अफसोसजनक है। यह तब है, जब इस अपराधी के खिलाफ तब भी 50-60 संगीन आपराधिक मुकदमें दर्ज थे।
यूपी के 8 पुलिस कर्मियों की हत्या के बाद भले ही अब पूरे पुलिस महकमें की नींद उड़ी हो, सच यही है कि इश अपराधी को यदि पुलिस की ही शह न मिलती तो यह दिल दहलाने वाली वारदात कभी नहीं होती। यह और भी हैरान करने वाला है कि यह सब तब किया गया जब इस मुखबरी की खास कड़ी एसओ विनय तिवारी और उसकी पूरी टीम के खिलाफ शदीह सीओ देवेंद्र मिश्रा ने तत्कालीन SSP को लिखित शिकायत भी की थी। यह पत्र अब वायरल हो रहा है। लेकिन तब पुलिस महज हाथ पर हाथ धरे रही। भले की खाकी में छुपे भेदियों को अब सस्पेंड कर दिया गया हो, लेकिन पूरे महकमे पर लगे दाग को धोना किसी के लिये भी अब संभव नहीं है।
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अब पांच दिन बीत जाने के बाद भी जिस तरह ये यह अपराधी अब भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर है और जिस तरह से यह पिछले लंबे समय से बचता आया है, उन परिस्थितियों को देखते हुए इस शक को और भी बल मिल जाता है कि हो न हो इस फरार अपराधी को आज भी कहीं न कहीं खाकी और खादी का संरक्षण तो प्राप्त नहीं है?