कटारा हत्याकांड: दिल्ली उच्च न्यायालय ने विशाल यादव की पैरोल की मांग वाली याचिका खारिज की

डीएन ब्यूरो

दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2002 में नीतीश कटारा की हत्या के मामले में दोषसिद्धि और उम्रकैद की सज़ा के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील दायर करने के वास्ते पैरोल की मांग वाली विशाल यादव की याचिका को मंगलवार को खारिज कर दिया।

दिल्ली उच्च न्यायालय  (फाइल)
दिल्ली उच्च न्यायालय (फाइल)


नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2002 में नीतीश कटारा की हत्या के मामले में दोषसिद्धि और उम्रकैद की सज़ा के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील दायर करने के वास्ते पैरोल की मांग वाली विशाल यादव की याचिका को मंगलवार को खारिज कर दिया।

विशाल का चचेरा भाई विकास यादव भी मामले में जेल की सज़ा काट रहा है।

उच्च न्यायालय ने कहा कि विशाल को 2015 में ‘कस्टडी पैरोल’ प्रदान की गई थी लेकिन उसने यह लेने से मना कर दिया था।

उच्च न्यायालय ने कहा कि शीर्ष अदालत में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर करने के लिए ‘कस्टडी पैरोल’ स्वीकार करने से बार-बार इनकार करना उसके पक्ष में नहीं है, क्योंकि कि उसके संवैधानिक अधिकार को नकारा नहीं जा रहा है बल्कि पीड़ित और गवाहों की सुरक्षा और स्वतंत्रता को भी देखा गया है जो जरूरी है।

साल 2018 में जब उच्च न्यायालय ने पैरोल के आग्रह को खारिज किया था तब अदालत ने कहा था कि एसएलपी दायर करने के लिए ‘कस्टडी पैरोल’ दी जा सकती है और इस बाबत एक आवेदन दायर किया जा सकता है।

न्यायमूर्ति अनीश दयाल ने कहा, “ याचिकाकर्ता (विशाल) को उच्चतम न्यायालय में एसएलपी दायर करने के विकल्प से रोका नहीं गया है...।”

अदालत ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ एसएलपी दायर करने के लिए चार हफ्ते के नियमित पैरोल पर रिहा करने का आग्रह करने वाली विशाल की याचिका को खारिज कर दिया है। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में उसकी दोषसिद्धि को बरकरार रखा था और सज़ा को बढ़ा दिया था।

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अदालत ने कहा कि कोविड-19 के दौरान कैदियों की रिहाई से संबंधित परिपत्र के आधार पर जून 2020 में इस अदालत ने उसके पैरोल के आग्रह को खारिज कर दिया था जो याची के मामले को अपवाद के तौर पर पेश करता है।

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता और सह-आरोपी विकास यादव का अतीत का आचरण (सुनवाई से पहले, जांच के दौरान, सुनवाई के दौरान और हिरासत में) ‘‘गंभीर एवं असामान्य था और इस याचिका पर विचार करने के दौरान उसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है या हल्के में नहीं लिया जा सकता है।”

अदालत ने कहा कि वह इन तथ्यों और परिस्थितियों पर आंखें नहीं मूंद सकती है।

विशाल ने इस आधार पर पैरोल पर रिहा किए जाने की मांग की है कि मामले के रिकॉर्ड दो हजार पन्नों के हैं और एसएलपी तैयार करने और उसे अंतिम रूप देने के लिए वकीलों के साथ उसकी मौजूदगी जरूरी है।

याचिका में कहा गया है कि वह 18 साल चार महीने से जेल में है और मई 2014 में उसे पिछली बार 10 दिन के लिए पैरोल पर रिहा किया गया था और तब से आठ साल हो गए हैं।

पैरोल की याचिका का पुलिस और नीतीश कटारा की मां नीलम कटारा ने भी विरोध किया है।

तीन अक्टूबर 2016 को शीर्ष अदालत ने नीतीश कटारा के सनसनीखेज़ अपहरण और हत्या के मामले में विकास और विशाल को बिना किसी छूट के 25-25 साल कैद की सज़ा सुनाई थी।

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मामले में एक अन्य दोषी सुखदेव पहलवान को 20 साल जेल की सज़ा सुनाई गई थी।

इससे पहले, दिल्ली उच्च न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा विकास और विशाल यादव को सुनाई गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखते हुए दोनों के लिए बिना किसी छूट के 30 साल की सजा तय की थी। इसने पहलवान को 25 साल की जेल की सजा सुनाई थी।

तीनों को फरवरी 2002 में एक शादी समारोह से नीतीश कटारा को अगवा करने और उसकी हत्या करने का दोषी ठहराया गया था। नीतीश का विकास की बहन भारती यादव से कथित रूप से प्रेम प्रसंग था जो उन्हें नापंसद था, क्योंकि उनकी जातियां अलग अलग थीं।

भारती उत्तर प्रदेश के नेता डी पी यादव की बेटी हैं। डी पी यादव हत्या के अन्य मामले में जेल में बंद है।

 










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