आईपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम का स्थान लेने वाले तीन विधेयकों के बारे में जानिये ये नया अपडेट

डीएन ब्यूरो

राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले तीन प्रस्तावित विधेयकों को जांच के लिए गृह मामलों की स्थायी समिति को सौंप दिया और तीन महीने के भीतर रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर:

राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़
राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़


नयी दिल्ली: राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले तीन प्रस्तावित विधेयकों को जांच के लिए गृह मामलों की स्थायी समिति को सौंप दिया और तीन महीने के भीतर रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है।

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने 11 अगस्त को लोकसभा में तीनों विधेयक भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य विधेयक को पेश किया था। ये तीनों विधेयक पारित होने के बाद क्रमश: आईपीसी, सीआरपीसी और भारतीय साक्ष्य अधिनियम का स्थान लेंगे।

यह भी पढ़ें | राज्यसभा सभापति ने संसदीय समिति से 12 विपक्षी सदस्यों के आचरण की जांच करने को कहा

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार विधेयकों को पेश करने के दौरान शाह ने कहा था कि ये भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली को बदल देंगे। उन्होंने कहा था कि ये बदलाव त्वरित न्याय प्रदान करने तथा एक कानूनी प्रणाली बनाने के लिए किए गए हैं जो लोगों की समकालीन जरूरतों एवं आकांक्षाओं को पूरा करती है।

राज्यसभा सचिवालय की ओर से कहा गया कि,‘‘सदस्यों को सूचित किया जाता है कि 18 अगस्त, 2023 को राज्यसभा के सभापति ने लोकसभा अध्यक्ष के परामर्श से लोकसभा में पेश किए गए और लंबित भारतीय न्याय संहिता-2023; भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता-2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक- 2023 को गृह मामलों से संबंधित संसद की स्थायी समिति को समीक्षा लिए भेजा गया है और तीन महीनों के भीतर रिपोर्ट मांगी गई है।’’

यह भी पढ़ें | Rajya Sabha: उपराष्ट्रपति धनखड़ ने दिलाई राज्यसभा के 10 नवनिर्वाचित सदस्यों को शपथ

गृह मामलों से संबंधित संसद की स्थायी समिति राज्यसभा की है और इसमें संसद के दोनों सदनों के सदस्य हैं। भारतीय जनता पार्टी के सदस्य बृजलाल इस समिति के अध्यक्ष हैं।

भारतीय न्याय संहिता में मौजूदा प्रावधानों में कई बदलाव किए गए हैं। इसमें धर्मांतरण से जुड़े अपराधों, सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियों, अलगाववादी गतिविधियों तथा संप्रभुता या एकता को खतरे में डालने जैसे नये अपराधों को भी सूचीबद्ध किया गया है। पहली बार आतंकवाद शब्द को भारतीय न्याय संहिता के तहत परिभाषित किया गया है जो भदंसं के तहत नहीं था।










संबंधित समाचार