Kullu Dussehra 2024 होगा बेहद खास, जानें इसका इतिहास और विशेषताएं
हिमाचल प्रदेश का प्रसिद्ध कुल्लू दशहरा के आयोजन की भव्य तैयारियाँ जोरों पर हैं। 13 से 19 अक्टूबर तक चलने वाले इस महोत्सव में स्थानीय देवताओं की शोभायात्रा, पारंपरिक नृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रम मुख्य आकर्षण रहेंगे। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
नई दिल्ली: हिमाचल प्रदेश का प्रसिद्ध कुल्लू दशहरा (Kullu Dussehra) के आयोजन की भव्य तैयारियाँ जोरों पर हैं। 13 से 19 अक्टूबर तक चलने वाले इस महोत्सव में स्थानीय देवताओं की शोभायात्रा, पारंपरिक नृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रम मुख्य आकर्षण रहेंगे। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
इस साल हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) का प्रसिद्ध कुल्लू दशहरा खास होने वाला है। इस आयोजन की भव्य तैयारियाँ जोरों पर हैं। हर साल की तरह इस बार भी इस ऐतिहासिक पर्व (Historical Fastivals) में हजारों पर्यटक (Tourist) भाग लेंगे, जिससे यह उत्सव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित रहेगा। 13 से 19 अक्टूबर तक चलने वाले इस महोत्सव में स्थानीय देवताओं की शोभायात्रा, पारंपरिक नृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रम मुख्य आकर्षण रहेंगे।
आयोजन समिति ने दी जानकारी
कुल्लू दशहरे से संबंधित जानकारी दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस (Press Conference) के दौरान आयोजन समिति के अध्यक्ष सुंदर सिंह ठाकुर, मुख्य वन संरक्षक नीरज चड्डा, और उपायुक्त कुल्लू के सहायक आयुक्त शशि पाल नेगी ने दी।
रघुनाथ जी की निकलती है शोभायात्रा
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कुल्लू दशहरा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे अन्य स्थानों के दशहरे से अलग तरीके से मनाया जाता है। यहाँ रावण का पुतला दहन नहीं होता, बल्कि भगवान रघुनाथ जी की भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। इस बार बेहतर सुविधाओं के लिए कुल्लू प्रशासन ने विशेष इंतजाम किए हैं। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है बल्कि हिमाचल की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं का उत्सव भी है।
इतिहास 3 शताब्दी पुराना
कुल्लू दशहरा का इतिहास (Kullu Dussehra History) 350 साल से भी पुराना है और 17वीं शताब्दी से इसे ढालपुर मैदान में मनाया जाता है। इस महोत्सव में स्थानीय देवता अपने अनुयायियों के साथ भगवान श्री रघुनाथ जी की रथ यात्रा में हिस्सा लेते हैं। यह आयोजन हिमाचल की सांस्कृतिक और सामाजिक परंपराओं का प्रतीक है, जो इसे विशेष बनाता है।
रथ यात्रा के साथ शुरु होगा दशहरा
13 अक्टूबर को भव्य रथ यात्रा के साथ दशहरे की शुरुआत होगी। इस दौरान होने वाली शोभायात्रा कुल्लू घाटी की परंपराओं और रीति-रिवाजों का प्रदर्शन करती है। इसके बाद 14 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय सांस्कृतिक मंडलियाँ अपनी परंपराओं और संस्कृतियों का प्रदर्शन करेंगी।
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'ललहड़ी' का होगा आयोजन
18 अक्टूबर को पारंपरिक लोक नृत्य "ललहड़ी" का आयोजन होगा, जिसमें पारंपरिक वेशभूषा और संगीत के माध्यम से हिमाचल की समृद्ध विरासत को दर्शाया जाएगा।
'कुल्लू कार्निवल'
19 अक्टूबर को दशहरे का समापन "कुल्लू कार्निवल" के साथ होगा, जिसमें सांस्कृतिक धरोहर का उत्सव मनाया जाएगा। इस दौरान राजा पालकी में बैठकर जलेब (जुलूस) की शुरुआत करेंगे, जिसमें स्थानीय देवता अपने अनुयायियों के साथ भाग लेंगे। अंतिम दिन "लंका-दहन" के साथ समापन होगा, जो देवी-देवताओं के अपने घर लौटने का प्रतीक है।
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