एलजीबीटीक्यूआईए समूहों ने समलैंगिक शादी के समर्थन में लॉ स्कूल छात्र, जानें पूरा मामला

डीएन ब्यूरो

लॉ स्कूल के छात्रों के 30 से अधिक एलजीबीटीक्यूआईए++ समूहों ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के उस प्रस्ताव की निंदा की है, जिसमें उच्चतम न्यायालय से समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई न करने की अपील की गई है। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

फाइल फोटो
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नयी दिल्ली: लॉ स्कूल के छात्रों के 30 से अधिक एलजीबीटीक्यूआईए++ समूहों ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के उस प्रस्ताव की निंदा की है, जिसमें उच्चतम न्यायालय से समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई न करने की अपील की गई है।

इन समूहों ने बीसीआई के इस प्रस्ताव को ‘संविधान विरोधी’ करार दिया है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, बीसीआई ने 23 अप्रैल को शीर्ष अदालत में समलैंगिक शादियों के मुद्दे पर सुनवाई को लेकर अपनी चिंताएं जाहिर की थीं। उसने कहा था कि शादी की अवधारणा जैसी किसी चीज के मौलिक स्वरूप के साथ कोई भी छेड़छाड़ ‘विनाशकारी’ होगी और इस मुद्दे को विधायिका पर छोड़ दिया जाना चाहिए।

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सभी राज्यों के बार काउंसिल के प्रतिनिधियों की एक संयुक्त बैठक के बाद बीसीआई की ओर से जारी एक प्रस्ताव में कहा गया था कि इतने संवेदनशील मामले में शीर्ष अदालत का कोई भी फैसला देश की भावी पीढ़ियों के लिए बहुत हानिकारक साबित हो सकता है।

बीसीआई ने कहा था, “बैठक में सर्वसम्मति से राय व्यक्त की गई कि भारत सामाजिक-धार्मिक रूप से दुनिया के सबसे विविध देशों में से एक है, जहां कई धार्मिक मान्यताओं के लोग रहते हैं। इसलिए, कोई भी ऐसा मामला, जो मौलिक सामाजिक संरचना के साथ छेड़छाड़ कर सकता है, कोई भी ऐसा मामला, जिसका हमारी सामाजिक-सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है, उस पर फैसला अनिवार्य रूप से विधायी प्रक्रिया के माध्यम से ही आना चाहिए।”

बार काउंसिल के रुख की निंदा करते हुए लॉ स्कूल के 600 से अधिक छात्रों के एलजीबीटीक्यूआईए++ (लेस्बियन, गे, बाईसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर, क्वीर, क्वेश्चनिंग, इंटरसेक्स, पैनसेक्सुअल, टू-स्पिरिट, एसेक्सुअल, एली) समूहों ने कहा, “(बीसीआई का) प्रस्ताव हमारे संविधान और समावेशी सामाजिक जीवन की भावना के खिलाफ होने के साथ ही उसके लिए हानिकारक है।”

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इन समूहों में शामिल छात्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली, फैकल्टी ऑफ लॉ (दिल्ली विश्वविद्यालय) और गुजरात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी सहित अन्य 36 लॉ स्कूल से जुड़े हुए हैं।

उन्होंने एक बयान जारी कर कहा, “यह प्रस्ताव समलैंगिकों को यह बताते की कोशिश करता है कि कानून और कानूनी पेशे में उनके लिए कोई जगह नहीं है।”










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