महराजगंज: सरकारी दफ्तरों की धूल भरी फाइलों में होता रहा विकास, 'माननीयों' से चुनाव दर चुनाव छले जाते रहे सिसवा के मतदाता

डीएन ब्यूरो

सिसवा के सालों पुराने मुद्दे आज भी किसी नुक्‍कड़ पर छेड़ दो तो लोग यही कहते हुए सामने आते हैं कि 'खुशी से मर न जाते गर ऐतबार होता'। उनका यह दर्द किसी एक राजनीतिक दल के किसी एक नेता के लिए नहीं है। वह कहते हैं हमें तो अधिकार के नाम पर मताधिकार ही मिला है लेकिन वह भी वादों के नाम पर हर बार लूटा गया। शहर आज भी मूलभूत सुविधाओं से महरूम है। न स्‍वास्‍थ्‍य सेवा न ही परिवहन, भाग्‍य बदलने वाली शिक्षा व्‍यवस्‍था भी अपनी बदनसीबी पर रो रही है। डाइनामाइट न्यूज़ की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट...

सिसवा बाजार रेलवे स्‍टेशन के बाहर की फोटो
सिसवा बाजार रेलवे स्‍टेशन के बाहर की फोटो


महराजगंज: लोकसभा चुनाव 2019 की सरगर्मी तेज हो गई है। पांचवें चरण का कल मतदान होना है। तमाम राजनीतिक पार्टियों के उम्मीदवार नये-नये वादों के दावे साथ जनता के बीच पहुंच रहे हैं। इस मौके पर यह जानना आवश्‍यक होगा कि अभी तक यहां से चुने जाने वाले 'माननीयों' ने ऐसा क्‍या किया है कि जिससे जनता उनके वादों के दावे पर भरोसा कर पाए।

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महाराजगज संसदीय क्षेत्र की 148 वर्ष पुरानी नगर पंचायत सिसवा बाजार को 21 नवंबर 1871 को अंग्रेजों के समय में नगर पंचायत का दर्जा प्राप्त हुआ था। देश आजाद हो गया, 70 साल बीत गए लेकिन सिसवा नगर पंचायत अपने दुर्भाग्‍य पर आंसू बहा रही है। जबकि इसके बाद जिले का दर्जा पाने वाली नगर पंचायतें आज इससे बेहतर हालत में हैं लेकिन सिसवा नगर पंचायत एक तहसील का भी दर्जा नहीं पा सकी है विकास तो खैर बहुत दूर की बात है।

सिसवा बाजार रेलवे स्‍टेशन का प्‍लेटफार्म 

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राजनीतिक शून्‍यता के भेंट चढ़ गए अधिकारियों के प्रयास

साल  2011 में उस समय कमिश्‍नर के. रविन्द्र नायक ने महाराजगज जिले के दो नगर पंचायतों को तहसील बनाने के लिए शासन को एक रिपोर्ट भेजी थी। आज वह फाइल कहां किस सरकारी दफ्तर में धूल फांक रही होगी किसी को नहीं पता। कमिश्‍नर के. रविन्द्र नायक की मेहनत राजनीतिक शून्यता की भेंट चढ़ गई।

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तहसील बनाने के लिए संघर्ष करते युवा थक हार कर लौट चुके हैं घर

वहीं बीते पांच वर्षों में 'सिसवा तहसील बनाओ संघर्ष समिति' के बैनर तले नगर के युवाओं ने रैली, पोस्टकार्ड, हस्ताक्षर अभियान चला कर जन प्रतिनिधियों और अधिकारियों के समक्ष अपनी मांग रखी। फिर वही ढाक के तीन पात। आज तक मांगें, मांगें ही रहीं लेकिन चुनाव आ गया 'माननीय' और दलों के नेता फिर वोट मांगने आने लगे। वादों की झड़ी फिर लगने लगी है।

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कृपया निवेदन है कि परिवहन के लिए अपना वाहन रखें

इसके अलावा सिसवा नगर में मूलभूत सुविधाएं भी जनसामान्‍य के लिए नहीं हैं। कहने के लिए रेल सुविधा है लेकिन गाड़ियां निर्धारित समय के हिसाब से नहीं अपनी मनमर्जी से चलती हैं। आ गई तो बैठ लीजिए नहीं तो कोई दूसरा विकल्‍प खोजिए। बसों के संचालन की हालत भी इससे कम बिल्‍कुल नहीं है।

चेतावनी: अपने स्‍वास्‍थ्‍य की हिफाजत खुद करें

वहीं स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं की भी हालत चरमराई हुई रहती है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्‍टरों का मिलना भी तय नहीं है। जबकि राजकीय महिला चिकित्सालय तो वर्षों से बिना किसी चिकित्सक के अपनी सार्थकता सिद्ध कर रहा है।

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फायर ब्रिगेड स्‍टेशन की स्थिति भी बदहाल

गर्मी का मौसम चल रहा है आए दिन किसी न किसी गांव में आग लगती रहती है। किसानों का लाखों का नुकसान होता है। फायर बिग्रेड स्टेशन है लेकिन दुर्दशा ऐसी कि ग्रामीणों को अपने सामर्थ्‍य पर ही भरोसा करना पड़ता है।

...फिर आ गए चुनाव

इस तरह की अनेकों समस्‍याएं सिसवा में मुंह बाए खड़ी हैं लेकिन किसी भी नेता ने आजतक इनके समाधान के लिए कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है। चुनाव का समय है तो वादों की बौक्षार होती है। जिससे सिसवा की जनता फिर एक बार भरोसा करके अपना वोट किसी तरह उनको सौंप दे।

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वैसे अब इन चुनावों में देखना है कि वोट मांगने वाले उम्मीदवारों से सिसवा की जनता कैसे पेश आती है। साथ ही उम्मीदवार भी उन्हें कैसे अपने विश्वास में लेकर अपनी नैया पार लगाते हैं।










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