मणिपुर सरकार ने जिलों, संस्थानों का नाम बदलने को लेकर सख्ती बरती, बिना मंजूरी के दंडनीय अपराध

डीएन ब्यूरो

मणिपुर सरकार ने मंजूरी लिए बिना जिलों और संस्थानों के नाम बदलने के खिलाफ एक अधिसूचना जारी की है, जिसमें कहा गया है कि इस तरह का कदम समुदायों के बीच संघर्ष की स्थिति पैदा कर सकता है तथा कानून-व्यवस्था की मौजूदा स्थिति को बिगाड़ सकता है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह
मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह


इंफाल: मणिपुर सरकार ने मंजूरी लिए बिना जिलों और संस्थानों के नाम बदलने के खिलाफ एक अधिसूचना जारी की है, जिसमें कहा गया है कि इस तरह का कदम समुदायों के बीच संघर्ष की स्थिति पैदा कर सकता है तथा कानून-व्यवस्था की मौजूदा स्थिति को बिगाड़ सकता है।

अधिसूचना में कहा गया है कि यदि किसी को दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करते पाया गया, तो उसके खिलाफ संबंधित कानूनों के तहत कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार मुख्य सचिव विनीत जोशी की ओर से जारी अधिसूचना के मुताबिक, ‘‘राज्य सरकार की मंजूरी के बिना कोई भी जानबूझकर जिलों, उप-मंडलों, स्थानों, संस्थानों के नाम बदलने का कार्य नहीं करेगा या करने का प्रयास नहीं करेगा...।’’

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इसमें कहा गया है, ‘‘मणिपुर सरकार को विश्वसनीय सूत्रों से पता चला है कि नागरिक समाज से जुड़े कई संगठन, संस्थान, प्रतिष्ठान और व्यक्ति जानबूझकर जिलों का नाम बदल रहे हैं या नाम बदलने की कोशिश कर रहे हैं... जो आपत्तिजनक है। इससे राज्य में रहने वाले समुदायों के बीच विवाद और संघर्ष की स्थिति पैदा हो सकती है। खासतौर पर कानून-व्यवस्था के समक्ष मौजूद वर्तमान संकट के मद्देनजर...।’’

अधिसूचना के अनुसार, इस मामले को ‘‘अत्यधिक संवेदनशीलता के साथ देखा जा रहा है, क्योंकि इस चलन से... राज्य में विभेद पैदा हो सकता है या कानून-व्यवस्था की स्थिति खराब और हो सकती है।’’

यह कदम तब उठाया गया है, जब चुराचांदपुर में ज़ो समुदाय के संगठन ने जिले को ‘लमका’ नाम दिया है।

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मणिपुर में अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में पर्वतीय जिलों में जनजातीय एकजुटता मार्च के आयोजन के बाद तीन मई को जातीय हिंसा भड़क गई थी। हिंसा की घटनाओं में अब तक 180 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और सैकड़ों लोग घायल हुए हैं।

मणिपुर की आबादी में मेइती समुदाय के लोगों की हिस्सेदारी लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं। वहीं, नगा और कुकी आदिवासियों की आबादी करीब 40 प्रतिशत है और वे ज्यादातर पर्वतीय जिलों में रहते हैं।










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