Maharajganj: खाद्य प्रसंस्करण और काष्ठ उद्योग की जरूरत क्यों? पढ़िए रिपोर्ट

डीएन ब्यूरो

उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले में खाद्य प्रसंस्करण और काष्ठ उद्योग के विकास की काफी ज्यादा संभावनाएं हैं। पढ़िए यह रिपोर्ट

विकास की संभावनाएं
विकास की संभावनाएं


महराजगंज: किसी भी देश के त्वरित और सर्वांगीण विकास के लिए पूरे देश का संतुलित विकास होना आवश्यक है। विकास में क्षेत्रीय असमानता कई सामाजिक और आर्थिक समस्याओं को जन्म देती हैं। उदाहरण के तौर पर दूसरे विकसित राज्यों में अविकसित राज्यों से मजदूरों का प्रवासन और प्रवासी मजदूरों के साथ  भेदभाव, शोषण और प्रताड़ना। इसके अलावा घर के मुख्य आजीविका अर्जित करने वाले सदस्य का लंबे समय तक घर से बाहर होना और अपने परिवार और बच्चों पर समुचित ध्यान न दे पाना भी एक गंभीर समस्या है। लगभग इसी प्रकार समस्याएं किसी प्रदेश के जिलों में आसमान विकास भी पैदा करती है।

गांधी जी के विकास की परिकल्पना और भी ज्यादा व्यापक थी। गांधी जी गांव को एक स्वशासित सामाजिक और आर्थिक इकाई मानते थे, और चाहते थे कि यह इकाई इस अर्थ में आत्मनिर्भर होनी चाहिए कि यह वहां रहने वाले लोगों की भोजन, कपड़े, आवास और अन्य दैनिक जरूरतों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करे। इतना ही नहीं, बल्कि वे यह भी चाहते थे कि ग्रामोद्योग विकसित हो और फले-फूले। यद्यपि तकनीकी विकास के माध्यम से विकसित  उत्पादों और सेवाओं में बहुतायतता, शायद गाँव को पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर तो नही बना सकती, परंतु कृषि के अलावा अन्य आर्थिक गतिविधियों का केंद्र अवश्य बना सकती है। परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि स्वतंत्रता के पश्चात विकास तो हुआ है, परंतु क्षेत्रीय, राज्य और जिला स्तर पर विकास मे असमानताऐं भी बढ़ी हैं।

उदाहरण के लिए मैं उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले के विकास की स्थिति की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ। महाराजगंज  2 अक्टूबर, 1989 को जिले के रूप में अस्तित्व में आया। 35 वर्ष पूर्व जिला बनने के पश्चात भी यह उत्तर प्रदेश के पिछड़े जिलों में से एक है, जिसका जनसंख्या घनत्व राष्ट्रीय औसत से लगभग 2.5 गुना है। साक्षरता राष्ट्रीय औसत से कम है। इस जिले की अर्थव्यवस्था निर्वाह खेती और अकुशल और कुशल श्रमिकों द्वारा  बाहर के जिलों, राज्यों और विदेशों से अर्जित धन पर आधारित है। यह जिला धान, गेहूं, गन्ना, सब्जियां और फल आदि अच्छी मात्रा में पैदा करता है, और अधिशेष कृषि उत्पाद अन्य राज्यों और जिलों को बेच देता है।

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इस जिले में बेरोजगारी की दर बहुत अधिक है, जिसके कारण बहुत सारी युवा आबादी प्रदेश के दूसरे जिलों और राज्यों में प्रवासी मजदूरों के रूप में काम करने के लिए मजबूर है, और थोड़े से युवा अन्य देशों में ज्यादातर अकुशल मजदूरों के रूप में बहुत ही दुर्गम परिस्थितियों में काम करने के लिए जाते हैं। बेरोजगारी को दूर करने के लिए यहाँ कि अर्थव्यवस्था में कृषि के अलावा उद्योग और सेवाओं भागीदारी भी बधानी होगी। रोजगार को उत्पन्न करने में उद्योग कि भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। कच्चे माल और जनशक्ति की उपलब्धता के कारण इस जिले में खाद्य उद्योगों के विकास की बहुत अधिक संभावना है।

यदि उपयुक्त नीति हस्तक्षेप और सरकार के समर्थन से इस जिले में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग विकसित किए जा सकें, तो बेरोजगारी की समस्या कुछ हद तक कम हो सकती है और किसानों को उनकी उपज के लिए बेहतर बाजार और मूल्य भी मिल सकता है। हालांकि, स्थानीय जनशक्ति को खाद्य प्रसंस्करण में प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है, जिसके लिए खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों में तकनीशियनों, इंजीनियरों और प्रबंधकों के लिए प्रशिक्षण संस्थान स्थापित किए जाने चाहिए। इसलिए, इस जिले में  खाद्य प्रसंस्करण में विभिन्न कौशल के लिए विभिन्न स्तरों के प्रशिक्षण संस्थानों की स्थापना पर विचार करना चाहिए और निवेशकों को अच्छी नीतिगत सहायता और अच्छे प्रोत्साहन के साथ खाद्य प्रसंस्करण औद्योगिक पार्क स्थापित करना चाहिए।

इसी तरह इस जिले  में वन संपदाएं भी प्रचुर मात्रा में है। सरकार के “एक जिला, एक उत्पाद” योजना के तहत महराजगंज को फर्निचर उद्योग के लिए नामित किया गया है लेकिन फर्निचर या काष्ठ उद्योग के विकास के लिए सरकार की कोई ठोस योजना और कार्यक्रम नही है, जिससे प्रचुर वन संपदा के होते हुए भी महाराजगंज का फर्निचर या  काष्ठ उद्योग विकास नही कर पा रहा है। इसका  मुख्य कारण प्रशिक्षण की कमी है।

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काष्ठ उद्योग के विकास के लिए कुशल कारीगर और बढ़ई के साथ-साथ डिजाइन, फिनिशिंग, असबाब और आधुनिक प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञता आवश्यक है। स्वचालित  सीएनसी मशीन, लेजर कटर और 3-डी प्रिंटिंग जैसी आधुनिक मशीनरी के प्रशिक्षण और प्रयोग से काष्ठ उद्योग की उत्पादन दक्षता और गुणवत्ता में वृद्धि और मूल्य में कमी हो सकती है। इस क्षेत्र में उद्यमिता और विपणन में प्रशिक्षण इस उद्योग के विस्तार और विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान कर सकता है। अतः काष्ठ उद्योग से संबंधित तकनीकी एवं प्रबंधन प्रशिक्षण संस्थान की महाराजगंज में स्थापना, काष्ठ उद्योग को एक नई ऊंचाई तक पहुचा सकता है। यदि जन प्रतिदहियों और प्रशासन द्वारा यह पहल की जाती हैं, तो मुझे यकीन है कि यह क्षेत्र विकसित होगा, बेरोजगारी कम होगी और सभी हितधारकों को लाभ होगा। ऐसी ही पहल अन्य जिलों में उनके उपलब्ध संसाधनों के आधार पर कि जानी चाहिए जिससे भारत का समग्र और संतुलित विकास हो सके।

(इस आर्टिकल के लेखक डा. दिनेश चंद्र श्रीवास्तव हैं, जो नागपुर की राष्ट्रीय रक्षा उत्पादन अकादमी के पूर्व प्रधान निदेशक हैं) 










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