‘सूचना का अधिकार’ कानून एक जन आंदोलन बन गया है : मुख्य सूचना आयुक्त

डीएन ब्यूरो

मुख्य सूचना आयुक्त (सीआईसी) यशवर्धन कुमार सिन्हा ने 2005 में लागू सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम की तारीफ करते हुए कहा कि यह कानून एक जन आंदोलन बन गया है, क्योंकि इसके तहत बड़ी संख्या में लोग सार्वजनिक हित से जुड़ी जानकारियां मांग रहे हैं और जवाब पा रहे हैं।पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

मुख्य सूचना आयुक्त (सीआईसी) यशवर्धन कुमार
मुख्य सूचना आयुक्त (सीआईसी) यशवर्धन कुमार



लखनऊ:  मुख्य सूचना आयुक्त (सीआईसी) यशवर्धन कुमार सिन्हा ने 2005 में लागू सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम की तारीफ करते हुए कहा कि यह कानून एक जन आंदोलन बन गया है, क्योंकि इसके तहत बड़ी संख्या में लोग सार्वजनिक हित से जुड़ी जानकारियां मांग रहे हैं और जवाब पा रहे हैं।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक सिन्हा ने बृहस्पतिवार को यहां आयोजित एक कार्यक्रम से इतर ‘पीटीआई-भाषा’ से बातचीत में कहा, “कोई भी देश इतनी बड़ी संख्या में आवेदन मिलने और इतने बड़े पैमाने पर जवाब दिए जाने का दावा नहीं कर सकता।”

वह ‘स्टैंडिंग कॉन्फ्रेंस ऑफ पब्लिक इंटरप्राइजेज’ (स्कोप) द्वारा आयोजित दो-दिवसीय ‘आरटीआई अधिनियम पर राष्ट्रीय बैठक’ के उद्घाटन सत्र में हिस्सा लेने के लिए लखनऊ पहुंचे थे।

उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि भारत का प्रदर्शन बहुत अच्छा है, क्योंकि कोई भी देश इतनी बड़ी संख्या में आवेदन मिलने, इतने बड़े पैमाने पर जवाब दिए जाने का दावा नहीं कर सकता।”

सिन्हा ने कहा, “हम दुनिया की सर्वाधिक आबादी वाले देश हैं, लेकिन केवल जनसंख्या पर्याप्त नहीं है। कई अन्य देश भी हैं, जिनकी आबादी बहुत अधिक है, लेकिन उनके पास यह अधिनियम नहीं है।”

उन्होंने कहा कि आरटीआई अधिनियम ने अपने कार्यान्वयन के शुरुआती दिनों से लेकर अब तक एक लंबा सफर तय किया है, लेकिन अभी भी कई कमियां मौजूद हैं।

सीआईसी ने कहा, “जाहिर है, कुछ खामियां और कमियां हैं, जिन्हें दूर करने की जरूरत है, लेकिन एक प्रक्रिया है, जो पहले से ही चल रही है और उम्मीद है कि समय बीतने तथा अनुभव मिलने के साथ चीजें बेहतर हो जाएंगी।”

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एक राजनयिक से सूचना आयुक्त और फिर मुख्य सूचना आयुक्त बनने तक के सफर के बारे में पूछे जाने पर सिन्हा ने कहा, “लोगों ने मुझसे पहले भी यह सवाल पूछा है।”

उन्होंने पूर्व सूचना आयुक्त शरत सभरवाल और मिजोरम के पूर्व सीआईसी लालदुथलाना राल्ते का उदाहरण देते हुए कहा, “हमारे पास विदेश सेवा से सूचना आयुक्त बनने वाले बहुत अधिक लोग नहीं हैं।”

सिन्हा ने कहा, “जब आप एक राजनयिक के रूप में कार्य करते हैं, तो आपमें कुछ गुण विकसित होते हैं, जिनमें धैर्य, दूसरे व्यक्ति की बात सुनना और रणनीति बनाना शामिल है... मैं दावे के साथ नहीं कह सकता कि मुझमें ये गुण विकसित हुए हैं या नहीं, लेकिन मैंने उन्हें विकसित करने की कोशिश की और इससे मुझे पहले सूचना आयुक्त और फिर सीआईसी के रूप में कुशलता से काम करने में मदद मिली।”

आरटीआई कार्यकर्ताओं से जुड़े सवाल पर सिन्हा ने जोर देकर कहा कि आरटीआई कार्यकर्ता भी भारत के नागरिक हैं और अधिनियम के माध्यम से जवाब मांगने का उन्हें भी उतना ही अधिकार है, जितना किसी और को।

उन्होंने कहा, “आरटीआई आवेदन दाखिल कर जवाब मांगना कोई बुरी बात नहीं है, क्योंकि इससे सरकार और नागरिक समाज के लोगों के बीच संवाद कायम करने में मदद मिलती है। समस्या तब उत्पन्न होती है, जब (कानून का) दुरुपयोग होता है या फिर इसके (आवदेन दाखिल करने के) पीछे कोई गुप्त मकसद होता है।”

सिन्हा ने कहा, “मुझे सिविल सोसायटी के लोगों के साथ बातचीत से व्यक्तिगत रूप से फायदा हुआ है, जिन्होंने अधिनियम के कार्यान्वयन में सुधार के तरीके भी सुझाए हैं, जिनका हमेशा स्वागत है। चूंकि, नागरिक समाज के लोग भी नागरिकों का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसलिए उनसे संवाद महत्वपूर्ण है।”

ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त रह चुके सिन्हा ने कहा कि उन्होंने इस देश में अपने कार्यकाल से बहुत कुछ सीखा, जिसके पास खुद का सूचना का अधिकार अधिनियम है।

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उन्होंने कहा, “भारतीय अधिनियम अपने आप में बहुत व्यापक और बहुत अच्छा है। हमारे पास भारतीय सूचना आयोगों का एक राष्ट्रीय संघ है, जो एक पंजीकृत निकाय है। विभिन्न आयोगों के बीच संवाद से हमें हमारे काम में मदद मिलती है।”

सीआईसी ने कहा, “इसी तरह, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक अंतरराष्ट्रीय संघ मौजूद है, लेकिन भारत अभी इसका सदस्य नहीं है।”

उन्होंने अभ्यर्थियों को ‘ओएमआर शीट’ देखने की अनुमति देने के अपने फैसले का जिक्र किया और कहा कि परीक्षा देने वालों को अपने अंक जानने का अधिकार है।

सिन्हा ने यह भी कहा कि आयोग किसी ऐसे व्यक्ति पर रोक नहीं लगा सकता, जो बार-बार आरटीआई आवेदन दायर करता है और सूचना प्रदान करने की प्रक्रिया में देरी की वजह बनता है।

उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत के साथ-साथ कई उच्च न्यायालयों ने भी अतीत में इस मुद्दे को संबोधित करने की कोशिश की है।

सीआईसी ने कहा, “सच कहूं तो अधिनियम में इस संबंध में कुछ भी नहीं है और आप किसी को आवेदन दायर करने से नहीं रोक सकते। हमने इस समस्या से निपटने के लिए बड़ी संख्या में आवेदनों को एक साथ जोड़कर उन पर सुनवाई की है और उन्हें निपटाया है। प्रत्येक आयुक्त/आयोग के पास इन मुद्दों को संबोधित करने का एक तरीका है, लेकिन यह एक समस्या है, जिस पर ध्यान देने की जरूरत है।”

 










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