न्यायालय ने अमरावती भूमि मामले में उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज किया
उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) की पिछली सरकार के दौरान अमरावती में भूमि सौदों में कथित अनियमितताओं की विशेष जांच दल (एसआईटी) से जांच कराने पर रोक लगा दी गई थी।
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) की पिछली सरकार के दौरान अमरावती में भूमि सौदों में कथित अनियमितताओं की विशेष जांच दल (एसआईटी) से जांच कराने पर रोक लगा दी गई थी।
जगन मोहन रेड्डी सरकार ने 26 सितंबर, 2019 के एक सरकारी आदेश के माध्यम से पूर्ववर्ती सरकार के सदस्यों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए एक कैबिनेट उप समिति नियुक्त की थी जिसने कुछ आरोपों के बारे में प्रथम दृष्टया रिपोर्ट दी थी।
राज्य सरकार ने रिपोर्ट के आधार पर दूसरा आदेश जारी किया और विभिन्न कथित अनियमितताओं, विशेष रूप से अमरावती राजधानी क्षेत्र में चंद्रबाबू नायडू सरकार के दौरान हुए भूमि सौदों की व्यापक जांच करने के लिए पुलिस उप महानिरीक्षक रैंक के आईपीएस अधिकारी की अध्यक्षता में 10 सदस्यीय एसआईटी का गठन किया था।
दोनों अधिसूचनाओं पर उच्च न्यायालय ने अनिश्चितकाल के लिए रोक लगा दी थी, जिसके कारण राज्य सरकार को राहत के लिए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा।
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न्यायमूर्ति एम. आर. शाह और न्यायमूर्ति एम. एम. सुंदरेश की पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय को अंतरिम रोक नहीं लगानी चाहिए थी, जबकि इसकी आवश्यकता नहीं थी क्योंकि पूरा मामला शुरुआती चरण में था।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय इस तथ्य पर विचार करने में विफल रहा है कि राज्य सरकार ने केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को जांच सौंपने के लिए पहले ही केंद्र को एक अभ्यावेदन दिया था।
आंध्र प्रदेश सरकार ने सितंबर 2020 के उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें तेदेपा के नेतृत्व में पिछली सरकार के दौरान अमरावती में भूमि घोटाले के आरोपों की जांच के लिए एसआईटी के गठन को मंजूरी देने वाले सरकारी आदेशों पर रोक लगा दी गई थी।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि केंद्र सरकार को अभी पत्र और आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा दी गई सहमति पर विचार करना है और यह बेहतर होता, यदि उच्च न्यायालय ने पक्षकारों को दलीलें पूरी करने की अनुमति दी होती, और उसके बाद रिट याचिकाओं पर फैसला किया होता।
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शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता का यह कहना न्यायोचित है कि उच्च न्यायालय ने सरकार के दो आदेशों की गलत व्याख्या की है।
पीठ ने कहा, ‘‘उप-समिति और एसआईटी का गठन पिछली सरकार के भ्रष्टाचार और गलत कार्यों के आरोपों की जांच के लिए किया गया है।’’