सरेआम हो रहे अपराधों पर वैज्ञानिकों ने जताई चिंता, जानिए क्या है इसका कारण

डीएन ब्यूरो

गैंगस्टर-राजनेता अतीक अहमद की हत्या की तरह सरेआम किए जा रहे अपराधों पर चिंता व्यक्त करते हुए, कई अपराध विज्ञानिओं ने कहा है कि अधिक चिंताजनक बात यह है कि समाज का एक वर्ग इस तरह के कृत्यों पर खुले तौर पर जश्न मना रहा है। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

फाइल फोटो
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नयी दिल्ली: गैंगस्टर-राजनेता अतीक अहमद की हत्या की तरह सरेआम किए जा रहे अपराधों पर चिंता व्यक्त करते हुए, कई अपराध विज्ञानिओं ने कहा है कि अधिक चिंताजनक बात यह है कि समाज का एक वर्ग इस तरह के कृत्यों पर खुले तौर पर जश्न मना रहा है।

अतीक अहमद (60) और उसके भाई अशरफ को शनिवार की रात मीडिया से बातचीत के दौरान पत्रकारों के रूप में आए तीन बदमाशों ने गोली मार दी थी। यह वारदात तब हुई जब पुलिसकर्मी दोनों को प्रयागराज के एक मेडिकल कॉलेज में जांच के लिए ले जा रहे थे।

वारदात के फौरन बाद पुलिस ने हत्यारों को गिरफ्तार कर लिया था। हमलावर मीडियाकर्मियों के उस समूह में शामिल हो गए थे जो अहमद और अशरफ से सवाल पूछना चाह रहा था।

गांधीनगर में राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय (आरआरयू) के ‘स्कूल ऑफ क्रिमिनोलॉजी एंड बिहेवियरल साइंसेज’ (एससीबीएस) में सहायक प्रोफेसर नेताजी सुभाष ने कहा, “कैमरे के सामने अपराध के उद्देश्य को दो तरह से समझा जा सकता है। सबसे पहले, अपराधी प्रसिद्धि, खुशी या सटीक बदला लेना चाहता है। यह अपराधी को किसी विशेष समुदाय को संदेश देने में भी मदद कर सकता है।”

आरआरयू केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन कार्यरत राष्ट्रीय सुरक्षा और पुलिस विश्वविद्यालय है। इसे 2020 में संसद के एक अधिनियम द्वारा स्थापित किया गया था।

सुभाष ने अतीक की हत्या और भीड़ द्वारा पीट-पीटकर लोगों को मारने की हाल ही में सामने आई कई घटनाओं के बीच तुलना करते हुए कहा, “ये दिनदहाड़े और सार्वजनिक स्थान पर हो रहे हैं। यहां तक कि यौन अपराध भी अब रिकार्ड किए जा रहे हैं।”

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पिछले साल जून में राजस्थान के उदयपुर में एक दर्जी कन्हैया लाल की दुकान पर दो लोगों ने उसकी एक धारदार हथियार से हत्या कर दी थी। आरोपी ने घटना का एक वीडियो भी ऑनलाइन पोस्ट किया, जिसमें दावा किया गया कि यह पीड़ित द्वारा सोशल मीडिया पर एक टिप्पणी साझा करने के प्रतिशोध में था। हत्यारे उस टिप्पणी को “इस्लाम का अपमान” मानते हैं।

अपराध विज्ञानियों के अनुसार, अतीक और लाल की हत्या दोनों में एक बात समान है - हत्यारे उस समुदाय को डराना चाहते हैं जिसके पीड़ित सदस्य थे।

सुभाष ने कहा, “मीडिया उस इच्छित संदेश को फैलाने के लिए एक उपकरण के रूप में कार्य करता है जिसे अपराधी बहुत तेजी से संप्रेषित करना चाहता है।”

संघीय जांच एजेंसी के साथ काम कर रहे एक अन्य अपराध मनोविज्ञानी ने कहा, “इस तरह के अपराध के पक्ष में सामाजिक समर्थन, मीडिया का उत्साह और जनता की वाहवाही बढ़ रही है और यह एक चिंताजनक प्रवृत्ति है। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि समाज का एक वर्ग ऐसे जघन्य अपराधों की भर्त्सना और निंदा करने के बजाय खुले तौर पर वीरतापूर्ण कार्यों के रूप में उसका जश्न मना रहा है।”

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, एससीबीएस के एक अन्य सहायक प्रोफेसर पृथ्वी राज ने ऐसे आपराधिक व्यवहार के कारणों और प्रतिमानों की व्याख्या करने के लिए अपराधशास्त्रीय सिद्धांतों का सहारा लिया।

उन्होंने कहा, “तनाव सिद्धांत का तर्क है कि अपराध हताशा और क्रोध का परिणाम है जो लोगों को महसूस होता है जब वे सामाजिक या आर्थिक बाधाओं के कारण अपनी आकांक्षाओं को प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं। गैंगस्टर अतीक अहमद और उसके सहयोगियों के राजनीतिक और आपराधिक प्रभाव से निशानेबाजों ने वंचित या उत्पीड़ित महसूस किया होगा।”

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दूसरी ओर, “उपसांस्कृतिक सिद्धांत बताता है कि अपराध कुछ समूहों या उपसंस्कृतियों के मूल्यों और मानदंडों का परिणाम है जो मुख्यधारा के समाज से अलग या विरोध में हैं। इस मामले में, हत्यारे एक कट्टरपंथी समूह से संबंधित हो सकते हैं, जो अतीक और उसके भाई को दुश्मन या उनकी धार्मिक पहचान और विचारधारा के लिए खतरे के रूप में देखते थे।”

राज ने कहा, “ये सिद्धांत अपराध को न्यायसंगत नहीं ठहराते या क्षमा नहीं करते हैं, क्योंकि यह अब भी मानव अधिकारों और कानून के शासन का उल्लंघन है। एक अपराध की निंदा की जानी चाहिए और अधिकारियों द्वारा जांच की जानी चाहिए, तथा हत्यारों को उनके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।”

विशेषज्ञ धार्मिक कट्टरता के साथ-साथ जैविक स्थितियों, मनोवैज्ञानिक लक्षणों, समाजशास्त्रीय कारकों, राजनीतिक और वैचारिक मान्यताओं जैसे कई अन्य कारकों पर भी प्रकाश डालते हैं जो किसी व्यक्ति को इस तरह के आपराधिक कृत्यों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

एससीबीएस की एक अन्य सहायक प्रोफेसर लक्षिता चौधरी ने कहा, “हत्या के बाद अपराधियों का आत्मसमर्पण न्याय प्रणाली की कमी और मीडिया और कानून प्रवर्तन एजेंसियों की उपस्थिति में अपराध करने के दुस्साहस का संकेत देता है।”










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