Supreme court: न्यायालय ने देश में एकल “संवैधानिक धर्म” के अनुरोध संबंधी याचिका खारिज की
उच्चतम न्यायालय ने देश में एकल “संवैधानिक धर्म” की मांग करने वाली याचिका सोमवार को खारिज कर दी और याचिकाकर्ता से पूछा कि क्या वह लोगों को उनकी धार्मिक आस्थाओं का पालन करने से रोक सकता है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर
नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने देश में एकल “संवैधानिक धर्म” की मांग करने वाली याचिका सोमवार को खारिज कर दी और याचिकाकर्ता से पूछा कि क्या वह लोगों को उनकी धार्मिक आस्थाओं का पालन करने से रोक सकता है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि ऐसी याचिका दायर करने का विचार उसे कैसे आया।
पीठ ने याचिकाकर्ताओं से पूछा, “आपने कहा कि एक संवैधानिक धर्म होना चाहिए। क्या आप लोगों को उनके धर्म का पालन करने से रोक सकते हैं? यह क्या है?”
याचिकाकर्ता पेशे से वकील नहीं हैं, लेकिन उसने अदालत में खुद अपनी दलीलें पेश कीं। यह याचिका मुकेश कुमार और मुकेश मानवीर सिंह नामक व्यक्तियों ने दायर की थी।
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अदालत ने अपने समक्ष पेश एक याचिकाकर्ता से पूछा, “यह क्या है? आप इस याचिका के जरिए क्या चाहते हैं।”
खुद को सामाजिक कार्यकर्ता बताने वाले याचिकाकर्ता ने पीठ से कहा कि उसने “एकल संवैधानिक धर्म” की मांग कर रहे भारत के लोगों के अनुरोध पर संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत जनहित याचिका दायर की है।
अदालत ने पूछा, “किस आधार पर?”
पीठ ने कहा कि याचिका में 1950 के संवैधानिक आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया गया है। हालांकि इसमें यह नहीं बताया गया कि किस संवैधानिक आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया गया है।
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इसके बाद अदालत ने याचिका खारिज कर दी।
संविधान का अनुच्छेद 32 देश के नागरिकों को यह अधिकार देता है कि यदि उन्हें लगता है कि उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है तो वे उचित कार्यवाही के माध्यम से शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं।