सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार और हत्या मामले में 40 साल की सुनवाई के बाद बुजुर्ग को दी जमानत, जानिये पूरा मामला

डीएन ब्यूरो

उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई पूरी होने में 40 साल की असाधारण देरी को ध्यान में रखते हुए, 1983 के बलात्कार और हत्या के एक मामले में दोषी ठहराये गये एक बुजुर्ग व्यक्ति को जमानत दे दी है। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

सुप्रीम कोर्ट
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नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई पूरी होने में 40 साल की असाधारण देरी को ध्यान में रखते हुए, 1983 के बलात्कार और हत्या के एक मामले में दोषी ठहराये गये एक बुजुर्ग व्यक्ति को जमानत दे दी है।

उच्चतम न्यायालय ने कलकत्ता उच्च न्यायालय से 75 वर्षीय इस व्यक्ति की दोषसिद्धि के खिलाफ उसकी अपील को ‘आउट-ऑफ-टर्न’ प्राथमिकता देने का भी निर्देश दिया।

न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि आमतौर पर उच्चतम न्यायालय को किसी मामले में फैसला करने के लिए एक समय-सारिणी तय करने के वास्ते संवैधानिक अदालत या किसी अन्य अदालत को निर्देश जारी नहीं करना चाहिए।

पीठ ने 25 सितंबर को दिये अपने आदेश में कहा, ‘‘इस मामले की एक अनोखी विशेषता है कि सुनवाई में 40 साल लग गये। इसलिए, हम उच्च न्यायालय से कानून के अनुसार अपील के निपटान को प्राथमिकता देने का अनुरोध करते हैं।’’

उच्चतम न्यायालय दोषी व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उच्च न्यायालय के 17 मई के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसके तहत उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी।

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उच्च न्यायालय ने इस बात पर गौर किया था कि अपीलकर्ता पीड़िता का मामा है। उच्च न्यायालय ने कहा था कि रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री और अपराध की गंभीरता को देखते हुए अपीलकर्ता की सजा को निलंबित करना उचित नहीं है।

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि यह मामला एक लड़की के साथ बलात्कार और हत्या से जुड़ा है।

उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि घटना 1983 में हुई थी और ‘‘मुकदमे में देरी होने के कुछ कारण हैं।’’

उसने कहा, ‘‘अपीलकर्ता की 21 अप्रैल, 2023 को दोषसिद्धि के आदेश के साथ मुकदमा समाप्त हो गया। अपीलकर्ता इस पूरी अवधि के दौरान जमानत पर था। अपीलकर्ता की वर्तमान में आयु लगभग 75 वर्ष है। उच्च न्यायालय के समक्ष अपील को अंतिम सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया गया है।’’

पीठ ने मुकदमे के निपटारे में देरी को ध्यान में रखते हुए कहा कि यह घटना 1983 की है और अपीलकर्ता की वर्तमान आयु के मद्देनजर ‘‘वह उचित कड़े नियमों और शर्तों पर उच्च न्यायालय के समक्ष अपील के अंतिम निपटान तक जमानत पाने का हकदार है।’’

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उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के 17 मई के आदेश को रद्द करते हुए उससे उचित कड़े नियम और शर्तें तय करने का अनुरोध किया, जिसके आधार पर अपीलकर्ता को उसकी अपील का अंतिम निपटान होने तक जमानत दी जाएगी।

जब पीठ को सूचित किया गया कि अपीलकर्ता बार का सदस्य है, तो उसने कहा कि उससे यह सुनिश्चित करने की अपेक्षा की जाती है कि शीर्ष अदालत के आदेश को ईमानदारी से लागू किया जाए और अपील का शीघ्र निपटारा किया जाए।

पीठ ने कहा, ‘‘इसलिए, हम निर्देश देते हैं कि अपीलकर्ता किसी भी अनुचित आधार पर स्थगन का अनुरोध नहीं करेगा और अपील के शीघ्र निपटान के लिए उच्च न्यायालय के साथ सहयोग करेगा।’’










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