राजद्रोह कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सोमवार को सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट
औपनिवेशिक काल के राजद्रोह कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह पर उच्चतम न्यायालय सोमवार को सुनवाई कर सकता है। इनमें से एक याचिका ‘एडिटर्स गिल्ड’ ने दायर की थी।
नई दिल्ली: औपनिवेशिक काल के राजद्रोह कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह पर उच्चतम न्यायालय सोमवार को सुनवाई कर सकता है। इनमें से एक याचिका ‘एडिटर्स गिल्ड’ ने दायर की थी।
सुनवाई में, विवादास्पद दंडनीय प्रावधान की समीक्षा के सिलसिले में अब तक उठाये गये कदमों से केंद्र द्वारा न्यायालय को अवगत कराये जाने की उम्मीद है।
शीर्ष न्यायालय ने राजद्रोह कानून और इसके तहत दर्ज की जाने वाली प्राथमिकी पर रोक लगाने संबंधी 11 मई के अपने निर्देश की अवधि पिछले साल 31 अक्टूबर को बढ़ा दी थी। साथ ही, प्रावधान की समीक्षा करने के लिए सरकार को ‘उपयुक्त कदम’ उठाने के लिए अतिरिक्त समय दिया था।
शीर्ष न्यायालय की वेबसाइट के अनुसार, प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की पीठ ने इस कानून की वैधता को चुनौती देने वाली 16 याचिकाएं सुनवाई के लिए सूचीबद्ध की हैं।
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केंद्र सरकार ने पिछले साल 31 अक्टूबर को पीठ से कहा था कि उसे कुछ और समय दिया जाए, क्योंकि ‘‘संसद के शीतकालीन सत्र में (इस मुद्दे पर) कुछ हो सकता है।’’
अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा था कि यह मुद्दा संबद्ध प्राधिकारों के पास विचारार्थ है और 11 मई के अंतरिम आदेश के मद्देनजर चिंता करने की कोई वजह नहीं है, जिसके जरिये प्रावधान के उपयोग पर रोक लगा दिया गया है।
उल्लेखनीय है कि 11 मई को जारी ऐतिहासिक आदेश में न्यायालय ने विवादास्पद कानून पर उस समय तक के लिए रोक लगा दी, जब तक कि केंद्र औपनिवेशक काल के इस कानून की समीक्षा पूरा नहीं लेती। न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को इस कानून के तहत कोई नया मामला दर्ज नहीं करने को कहा था।
न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया था कि राजद्रोह कानून के तहत जारी जांच, लंबित मुकदमे और सभी कार्यवाहियां पूरे देश में निलंबित रखी जाएं तथा राजद्रोह के आरोपों में जेल में बंद लोग जमानत के लिए अदालत का रुख कर सकते हैं।
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भारतीय दंड संहिता राजद्रोह के अपराध को 1890 में धारा 124(ए) के तहत शामिल किया गया था। सोशल मीडिया सहित अन्य मंचों पर असहमति की आवाज को दबाने के औजार के रूप में इसका इस्तेमाल किये जाने को लेकर यह कानून सार्वजनिक जांच के दायरे में है।
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) एस जी वोमबटकेरे, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरूण शौरी और पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने इस मुद्दे पर याचिकाएं दायर की थीं।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, 2015 से 2020 के बीच राजद्रोह के 356 मामले दर्ज किये गये और 548 लोगों को गिरफ्तार किया गया। हालांकि, राजद्रोह के सात मामलों में गिरफ्तार सिर्फ 12 लोगों को ही छह साल की अवधि में दोषी करार दिया गया।