DN Exclusive: वैश्य समुदाय की उपेक्षा 2022 के चुनाव में भाजपा को पड़ेगी भारी!
उत्तर प्रदेश के 75 जिलों से आ रही खबरों के मुताबिक वैश्य समुदाय में भाजपा को लेकर जबरदस्त नाराजगी है। वजह है वैश्य समाज की लगातार उपेक्षा। इसका बड़ा खामियाजा सत्तारुढ़ भाजपा को 2022 के यूपी विधान सभा के चुनाव में उठाना पड़ सकता है। डाइनामाइट न्यूज़ एक्सक्लूसिव:
नई दिल्ली/लखनऊ: 25 करोड़ की आबादी वाले देश के सबसे बड़े राज्य से एक भी वैश्य समुदाय का व्यक्ति केन्द्र सरकार में मंत्री नहीं है। आखिर क्यों?
उत्तर प्रदेश सरकार में वर्तमान में एक मात्र वैश्य नेता को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है और वो भी महत्वहीन विभाग का। आखिर क्यों?
क्या कारण है कि उत्तर प्रदेश की शीर्ष ब्यूरोक्रेसी के तीन अहम पदों मुख्य सचिव, डीजीपी और अपर मुख्य सचिव गृह के पद पर सत्तारुढ़ भाजपा के सवा चार साल के कार्यकाल में एक भी वैश्य अफसर को जगह नहीं दी गयी?
क्या सिर्फ वैश्य समाज का इस्तेमाल भाजपा करेगी? क्या वैश्य समाज का काम सिर्फ भाजपा की बैठकों के लिए दरी और चादर बिछाना है? क्या वैश्य समाज का काम सिर्फ भाजपा नेताओं के लिए बैठक, भोजन और विश्राम की व्यवस्था करनी है? वैश्य समाज का काम सिर्फ भाजपा के लिए चुनावी फंड का इंतजाम करना है?
य़े ऐसे ज्वलंत सवाल है जिनका जवाब वैश्य समाज का युवा भाजपा के दिग्गज नेताओं से जानना चाहता है।
सर्वे में भाजपा से नाराजगी की खुली पोल
डाइनामाइट न्यूज़ ने राज्य के 18 मंडल और 75 जिलों में एक सर्वे किया जिसमें चौंकाने वाली बातें सामने आयीं। वैश्य समाज के 20 से 35 साल के मतदाताओं में गहरी नाराजगी है। इनका कहना है कि उनके समाज को भाजपा का बंधुआ मजदूर समझा जाता है इसलिए उनके समाज को सरकार में उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाता है।
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केन्द्र में उत्तर प्रदेश के वैश्यों के साथ नाइंसाफी
इन युवाओं का सवाल है कि केन्द्र की यूपीए सरकार में अकेले उत्तर प्रदेश से वैश्य समाज के दो दिग्गजों श्रीप्रकाश जायसवाल और डा. अखिलेश दास गुप्ता को कांग्रेस सरकार ने केन्द्रीय मंत्री बनाया था और इन्हें गृह, कोयला, इस्पात जैसे बड़े और अहम मंत्रालय दिये थे लेकिन जब बारी भाजपा की आय़ी तो वैश्य समाज को ठेंगा दिखा दिया गया और 25 करोड़ की आबादी से एक भी वैश्य को केन्द्र में मंत्री नहीं बनाया गया।
उत्तर प्रदेश का समीकरण
राज्य की बात करें तो आजादी के बाद से ही वैश्यों का दबदबा रहा। जनसंघ काल से हमेशा वैश्यों ने पार्टी का साथ दिया। अकेले यूपी में चन्द्रभानु गुप्ता, बाबू बनारसी दास और राम प्रकाश गुप्ता जैसे दिग्गज वैश्य नेता मुख्यमंत्री बने। जब पहली बार राज्य में कल्याण सिंह की सरकार 1991 में बनी तो वैश्य समाज से 5 कैबिनेट मंत्री बनाये गये। यही हाल दोबारा सत्ता में आयी भाजपा का 1997-2002 के बीच रहा लेकिन अचानक ऐसा क्यों हुआ कि 2017 में भाजपा की जीत के आधार स्तंभ रहे वैश्यों को दरकिनार कर दिया गया? चुनिंदा नेताओं को जगह तो मिली लेकिन विभाग महत्वहीन।
शीर्ष नौकरशाही
टॉप ब्यूरोक्रेसी की बात करें तो सवा चार साल में वैश्य समाज के किसी अफसर को काबिलियत के बावजूद चीफ सेक्रेटरी और डीजीपी की कुर्सी पर नहीं बैठने दिया गया। वैश्य समाज के युवा सवाल पूछ रहे हैं कि सीएम से लेकर मुख्य सचिव, डीजीपी और अपर मुख्य सचिव गृह के पद पर सिर्फ दो जातियों का कब्जा क्यों है?
हिस्सेदारी के अनुपात में भागीदारी क्यों नहीं?
जब डाइनामाइट न्यूज़ ने वैश्य समाज के कई बड़े दिग्गजों से उनकी राय जानी तो इनका कहना था कि टिकट बांटने वालों ने हमेशा वैश्य समाज को ठगा है। क्या कारण है कि 80 लोकसभा सीट में से सिर्फ और सिर्फ दो वैश्य नेताओं को पार्टी ने टिकट दी जबकि वैश्य समाज का जितना वोट है लगभग उतना ही वोट ब्राम्हण औऱ ठाकुरों का है फिर क्यों इतनी कम भागीदारी। जब 2017 में टिकट की बात आय़ी तो 403 सीटों में से बेहद कम टिकट वैश्य समाज को दी गयी। जानकारों का कहना है कि सहारनपुर में भाजपा से किसी वैश्य नेता को टिकट देने की मांग थी लेकिन पार्टी ने ऐसा नहीं किया लिहाजा सारे वैश्य एकजुट होकर भाजपा से बगावत कर बैठे और सपा के वैश्य प्रत्याशी संजय गर्ग को जीता दिया।
निषाद, क़ुर्मी और राजभर से बहुत अधिक है वैश्य समाज का वोट
वैश्य समाज के युवा यह भी सवाल पूछ रहे हैं कि वैश्य मतदाताओं की तुलना में पिछड़ी जाति के कुर्मी, निषाद और राजभर वोटों की संख्या बेहद कम है फिर भी नेता इनके समुदाय को वैश्यों की तुलना में यूपी सरकार से लेकर केन्द्र सरकार तक में ज्यादा भागीदारी दी जा रही है। आखिर क्यों? क्या यह वैश्य समाज का अपमान नहीं है?
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BJP से नाराज़ वैश्य समाज इस बार करेगा सपा को वोट
डाइनामाइट न्यूज़ की रायशुमारी में यह बात निकलकर सामने आय़ी कि उपेक्षा से नाराज वैश्य समाज का बड़ा हिस्सा 6 महीने बाद होने जा रहे यूपी विधानसभा चुनाव में यदि अखिलेश यादव पर भरोसा जताते हुए सपा में चला जाये तो कोई बड़ा अचरज नहीं।
बड़ी रणनीति पर काम कर रहे हैं वैश्य समाज के युवा
अंदर ही अंदर वैश्य समाज के युवाओं ने सोशल मीडिया पर अपनी आवाज बुलंद करनी शुरु कर दी है और आंकड़ों के माध्यम से यह बता रहे हैं कि कैसे भाजपा सरकार उनके साथ छल कर रही है और उनके हिस्से का कोटा सिर्फ दो जातियों पर लुटा रही है।
वैश्य छिटके तो 8 सीट पर सिमटी भाजपा
देश की राजनीतिक नब्ज पर गहरी पकड़ रखने वाले कुछ राजनीतिक विश्लेषकों से जब डाइनामाइट न्यूज़ ने बात की तो इन लोगों ने दिल्ली विधानसभा चुनाव का उदाहरण देते हुए बताया कि बागडोर जब तक वैश्य समाज के डा. हर्षवर्धन के हाथ थी तब तक भाजपा 70 में से 32 सीट जीतती थी, जब मनोज तिवारी को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया तो हैसियत महज 8 सीटों वाली पार्टी की रह गयी। वैश्य समाज ने एकतरफा भरोसा अरविंद केजरीवाल पर जताया। मतलब साफ है जब वैश्य समाज को सम्मान मिलेगा तभी वह भाजपा के साथ रहेगा अन्यथा नहीं।
जल्द सबक नहीं लिया तो होगा बड़ा नुकसान
जैसा दिल्ली में हुआ वैसा ही यूपी में होने की प्रबल संभावना है, यदि भाजपा के बड़े नेता नहीं जागे तो वैश्य समाज के एक बहुत बड़े तबके का सपा में जाना तय माना जा रहा है, जो भाजपा के लिए बहुत बड़े नुकसान का सबब होगा।