शीर्ष अदालत ने मीडिया साक्षात्कार को लेकर न्यायाधीश को स्कूल नौकरी भर्ती घोटाले के मामले से अलग किया
उच्चतम न्यायालय ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अभिजीत गंगोपाध्याय को पश्चिम बंगाल स्कूल भर्ती घोटाले के मामले में एक समाचार चैनल को साक्षात्कार दिये जाने को लेकर मामले से अलग कर दिया, जिसके बाद न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय ने शीर्ष अदालत के सेक्रेटरी जनरल से अपने साक्षात्कार की आधिकारिक अनूदित प्रति आज आधी रात तक उनके समक्ष प्रस्तुत करने को कहा है।
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अभिजीत गंगोपाध्याय को पश्चिम बंगाल स्कूल भर्ती घोटाले के मामले में एक समाचार चैनल को साक्षात्कार दिये जाने को लेकर मामले से अलग कर दिया, जिसके बाद न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय ने शीर्ष अदालत के सेक्रेटरी जनरल से अपने साक्षात्कार की आधिकारिक अनूदित प्रति आज आधी रात तक उनके समक्ष प्रस्तुत करने को कहा है।
न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ सामान्य अदालती घंटे पूरे होने के बाद तुरत-फुरत बैठी और न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय द्वारा पारित विवादास्पद आदेश पर रोक लगा दी।
इससे कुछ घंटे पहले उच्चतम न्यायालय ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश को पश्चिम बंगाल स्कूल भर्ती ‘घोटाले’ के मामले में कार्यवाही किसी और न्यायाधीश को सौंपने का निर्देश दिया।
कुछ दिन पहले ही उच्चतम न्यायालय ने एबीपी आनंदा चैनल को दिये गये न्यायमूर्ति अभिजीत गंगोपाध्याय के साक्षात्कार को लेकर निराशा प्रकट की थी।
न्यायमूर्ति बोपन्ना ने कहा कि शीर्ष अदालत के कलकत्ता उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश को निर्देश देने के कुछ ही समय बाद न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय का आदेश उचित नहीं है।
सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ के विचार से सहमति जताई और कहा कि न्यायाधीश को आदेश पारित नहीं करना चाहिए।
पीठ ने कहा, ‘‘सॉलिसीटर जनरल का पक्ष सुनने के बाद, जैसा कि ठीक ही कहा गया है, मौजूदा प्रकृति का आदेश न्यायिक कार्यवाही में पारित नहीं किया जाना चाहिए था। वह भी न्यायिक अनुशासन को ध्यान में रखते हुए। वर्तमान कार्यवाही बंद की जाती है और उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी जाती है।’’
पीठ ने फिर शीर्ष अदालत के सेक्रेटरी जनरल को निर्देश दिया कि कलकत्ता उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को तत्काल आदेश की जानकारी दी जाए।
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न्यायमूर्ति बोपन्ना ने कहा, ‘‘इस मामले में आगे कार्यवाही की जरूरत नहीं है।’’
न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय ने अपने आदेश पर रोक लगाये जाने के लिहाज से तत्काल सुनवाई के लिए उच्चतम न्यायालय की पीठ के बैठने से कुछ घंटे पहले अपने विवादास्पद साक्षात्कार का आधिकारिक अनुवाद अपने समक्ष प्रस्तुत करने को कहा। आरोप है कि वह साक्षात्कार में तृणमूल कांग्रेस के नेता अभिषेक बनर्जी के खिलाफ बोले।
न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय ने कहा था, ‘‘पारदर्शिता के लिहाज से, मैं उच्चतम न्यायालय के सेक्रेटरी जनरल को निर्देश देता हूं कि मेरे द्वारा मीडिया में दिये गये साक्षात्कार का आधिकारिक अनुवाद और इस अदालत के रजिस्ट्रार जनरल का हलफनामा मूल रूप में मेरे समक्ष आज रात 12 बजे तक प्रस्तुत करें।’’
उन्होंने कहा, ‘‘पारदर्शिता के लिहाज से यह जरूरी है। मैं दोनों मूल सेट प्राप्त करने के लिए आधी रात में 12:15 बजे तक मेरे चैंबर में इंतजार करुंगा जिन्हें आज उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के समक्ष रखा गया था।’’
इससे पहले, प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पीठ ने तृणमूल कांग्रेस के नेता अभिषेक बनर्जी की याचिका पर सुनवाई की जिन्होंने आरोप लगाया था कि एबीपी आनंदा चैनल को मामले के बारे में साक्षात्कार देने वाले न्यायाधीश इस मामले में सुनवाई के लिए सक्षम नहीं हैं।
शीर्ष अदालत ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता की चिंताओं पर संज्ञान लिया कि इस तरह का चलन देखने को मिला है कि लोग अपने खिलाफ कोई फैसला या आदेश आते ही न्यायाधीशों को धमकाने की कोशिश करते हैं।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘हम कलकत्ता उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश से कलकत्ता उच्च न्यायालय के किसी अन्य न्यायाधीश को लंबित कार्यवाही सौंपने का निर्देश देते हैं। जिस न्यायाधीश को कार्यवाही सौंपी जाएगी, उन्हें इस संबंध में दायर की गई सभी याचिकाओं पर गौर करने की आजादी होगी।’’
पीठ के आदेश सुनाये जाने के कुछ ही समय बाद सॉलिसीटर जनरल ने कुछ घटनाओं का जिक्र किया और दावा किया कि न्यायाधीशों पर दबाव बनाने का चलन शुरू हो गया है।
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उन्होंने कहा, ‘‘न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय से पहले एक और न्यायाधीश थे। मैं उनका नाम नहीं ले रहा। उनके कक्ष को ब्लॉक कर दिया गया, एक तरह से बंद कर दिया गया। उन्हें बाहर नहीं आने दिया गया।’’
उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय की अदालत में भी लोग अपने हाथों में पेपरवेट और चप्पल लेकर गये और उनके घर के बाहर पोस्टर चिपका दिये गये।
उन्होंने कहा, ‘‘यह न्यायपालिका के लिए मनोबल को गिराने वाला संदेश है। वे सही हैं या गलत हैं, यह तय करना पूरी तरह न्यायालय का विवेकाधिकार है। मुझे कुछ नहीं कहना। अगर इस तरह के तत्वों को प्रोत्साहन मिलता है तो अन्य न्यायाधीशों के सामने भी इस तरह की गतिविधियां होंगी। ’’
प्रधान न्यायाधीश ने शीर्ष विधि अधिकारी से कहा, ‘‘देश में कहीं भी न्यायाधीशों को धमकाने की कोशिश नहीं होनी चाहिए। निसंदेह इस बारे में कोई सवाल नहीं है।’’
मेहता का दावा था कि तृणमूल कांग्रेस महासचिव अभिषेक बनर्जी ने एक जनसभा में न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय का नाम लिया ताकि उन पर दबाव बनाया जा सके।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायाधीश बहुत ही मुश्किल काम करते हैं और देश में कहीं भी इस तरह की घटनाएं नहीं होनी चाहिए।
पीठ ने कहा कि वह केवल इस वजह से कार्यवाही एक अन्य न्यायाधीश को हस्तांतरित कर रही है क्योंकि साक्षात्कार की विषयवस्तु सार्वजनिक है, और कोई कारण नहीं है।