यूपी उप चुनाव: योगी का पारा सातवें आसमान पर.. डीजीपी की भूमिका सवालों के घेरे में..

मनोज टिबड़ेवाल आकाश

सीएम योगी आदित्यनाथ को बेहद करीब से जानने वाले बताते हैं कि उन्हें हार.. किसी कीमत पर पसंद नही है। बचपन से लेकर आज तक उन्होंने सिर्फ जीत देखी है और पहली बार भयानक राजनीतिक हार सामने आयी है। बेहद विश्वसनीय सूत्रों के मुताबिक अब यह हार.. ब्यूरोक्रेसी पर कड़कती बिजली के रुप में गिरेगी। डीजीपी ओपी सिंह की भूमिका सवालों के घेरे में है। पूरी खबर..

डीजीपी ओपी सिंह
डीजीपी ओपी सिंह


नई दिल्ली: यूपी लोकसभा उप चुनाव में यूं तो सीट महज दो है लेकिन इसकी हार कितनी करारी है इसका अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है इस समय इसकी गूंज लखनऊ से लेकर दिल्ली तक सुनायी दे रही है। कल संसद में डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के सामने बेहद निश्चिंत दिखायी दे रहे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से लेकर भाजपा के सर्वे-सर्वा नरेन्द्र मोदी और राज्य के युवा सीएम योगी आदित्यनाथ आश्चर्य में पड़ गये हैं कि आखिर ये हो क्या गया? गोरखपुर की हार तो भगवा ब्रिगेड और खास तौर पर आरएसएस के लिए किसी बुरे सपने से कम नही है। 

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इन दोनों सीटों पर हुई हार का असर दूर तलक जायेगा। योगी हाई बोल्टेज करंट बनकर कई नौकरशाहों के शरीर में उतरेंगे। डाइनामाइट न्यूज़ ने जब इसकी अंदरुनी पड़ताल की तो पता चला कि पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह की भूमिका सवालों के घेरे में हैं। उन्हें जिस तरह से इन दोनों जिलों को गंभीरता से लेना चाहिये था, उस तरह से इन्होंने नही लिया। बड़ा सवाल यह है कि उनकी निष्ठा सीएम के प्रति है या दिल्ली में बैठे किसी 'खास' के प्रति?

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मुख्यमंत्री सचिवालय से जुड़े सूत्रों की मानें तो 23 जनवरी को कार्यभार संभालने के बाद से ही डीजीपी ने इलाहाबाद और गोरखपुर का एक बार भी दौरा तक नही किया। दोनों जिलों में कानून-व्यवस्था ध्वस्त थी। जनता बुरी तरह हैरान व परेशान थी लेकिन किसी से कोई मतलब नही। सब सीएम को झूठे सब्जबाग दिखा चापलूसी में जुटे रहे। 

जिस समय मतगणना के परिणाम आ रहे थे ठीक उसी समय साहब.. कुछ जरुरी काम दिखा.. डीजीपी साहब.. यूपी छोड़ दिल्ली की सड़कों पर थे। आखिर क्यों? 

इलाहाबाद में अतीक अहमद का कहर तो था ही साथ ही अनगिनत भू-माफियाओं ने अपने फन उठा लिये लेकिन कार्यवाही किसी पर नही। डीजीपी ने आखिर क्यों गोरखपुर और इलाहाबाद जिलों में पुलिस की तैनातियों की असरदार समीक्षा नही की? यह सवाल सारे मामले को संदिग्ध बनाता है।

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जनता के मूड और गुस्से को भांपने के बावजूद कोई ठोस समाधान व उपचार समय रहते क्यों नही किया गया.. दोनों संसदीय सीटों पर क्षेत्र की जनता भाजपा से काफी नाराज चल रही थी.. क्योंकि किसी की भी समस्या का समाधान ठोस तरीके से नही किया जा रहा था। जनता को थानों से भगाया जा रहा था और प्रदेश की पुलिस ट्वविटर पर अपने को स्वयंभू सरताज साबित करने पर तुली थी। नतीजा.. हार और जग हंसाई.. 










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