लेखिका का पाठकों को जवाब: ‘श्रीरामचरितमानस में लिखा है कोरोना से बचाव का उपाय जानिये कैसे’

प्रो. (डॉ.) सरोज व्यास

‘डाइनामाइट न्यूज़’ में 22 अप्रैल को ‘श्रीरामचरितमानस में लिखा है कोरोना से बचाव का उपाय जानिये कैसे’, नामक शीर्षक से मेरा लेख प्रकाशित हुआ। सबसे पहले तो मैं पाठकों की अपार प्रतिक्रिया के लिए शीश झुकाकर प्रणाम करती हूं। अब मैं बात करती हूं, जिन हमारे भाईयों-बहनों ने इस लेख के कुछ बिन्दुओं से असहमति जतायी थी, यह लेख मैंने वैश्विक संकट के समय जीवन एवं अध्ययन-अध्यापन के अनुभव और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण के आधार पर लिखा था।

लेखिका प्रो. (डॉ.) सरोज व्यास
लेखिका प्रो. (डॉ.) सरोज व्यास


नई दिल्ली: कोरोना वायरस से बचाव के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन, स्वास्थ्य मंत्रालय भारत सरकार एवं आयुष मंत्रालय द्वारा जारी किए गए दिशा-निर्देशों के साथ, हिन्दू समाज में जन्म-परिणय एवं मृत्यु के समय, निर्धारित रीति-रिवाजों, परम्पराओं, मान्यताओं और धारणाओं में साम्यता को सत्यापित करने के लिए वैदिक-संस्कृति, संस्कार और धार्मिक ग्रन्थों में वर्णित सांकेतिक भविष्यवाणियों का उल्लेख संदर्भ के तौर पर किया गया।

ऐसे में लेखन का औचित्य क्या है? इस पर कुछ पाठकों ने विचार नहीं किया। लेख के शीर्षक पर उनकी त्वरित टिप्पणियों ने अवश्य “जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी” चौपाई को सार्थक कर दिया। 

22 अप्रैल का मूल लेख पढ़ें: श्रीरामचरितमानस में लिखा है कोरोना से बचाव का उपाय, जानिये कैसे!

समालोचनाओं से नहीं आलोचनाओं से लेख चर्चित हो गया, आपत्ति विचारों पर दर्ज की जाती तो हितकारी होती लेकिन परोक्ष प्रहार संस्कृति एवं संस्कारों, सकारात्मक सोच और ‘गागर में सागर भरने’ की वृति पर हुआ।  विरोध की अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार हुई, @‘उत्तर कांड मौलिक ग्रंथ वाल्मीकि रामायण का हिस्सा नहीं है, इसे बाद में जोड़ा गया है और इसके विषयों पर आलोचना होती रही है’, @ ‘लेख के अंत में लिखी गयी चौपाई का अर्थ यह नहीं है’, @ ‘रामायण में कोरोना वायरस शब्द का कही भी उल्लेख नहीं है’, @ ‘तुलसीदास कवि थे, भविष्यवक्ता नहीं” @ ‘रामचरितमानस की चौपाई में लिखा है कि बुराई करने वाले चमगादड़ बनकर पैदा होंगे और बीमारियाँ फैलेंगी’ @‘व्यर्थ अफ़वाह फैलाने से बचें” @ धर्मगुरु एवं ज्योतिषाचार्यों ने रामचरितमानस में इस महामारी के संकेतों का वर्णन होने का खंडन किया’ हैं’, @‘रामचरितमानस में कोरोना की दवाई का उल्लेख है क्या’?  

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इतना ही नहीं डाइनामाइट न्यूज़ को कई शुभचिंतकों ने संदेश भेजा कि उनके मीडिया समूह को बड़ी संख्या में पाठकों द्वारा पढ़ा जाता हैं, विवादित लेखों से प्रतिष्ठा पर प्रश्नचिन्ह लग सकता है। प्रसन्नता इस बात की है कि शास्त्रों में वर्णित विभिन्न संस्कारों में निहित सामाजिक दूरी की परम्परा का खंडन करने का दुस्साहस स्वसमुदाय तथा अन्य समुदाय के स्नेही पाठकों द्वारा भी नहीं किया गया।

हम भारतीयों को केवल वही स्वीकार्य है, जिसे वह स्वीकारना चाहते हैं। ‘शराब और सिगरेट स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं’, यह वैधानिक चेतावनी स्पष्ट शब्दों में शराब की बोतलों और सिगरेट के पैकेटों पर प्रत्येक भाषा में लिखी होती है, लेकिन यदि इनका सेवन करना है तो फिर कोई विवाद नहीं चाहिए। हजारों वर्ष पहले ग्रन्थों में उल्लिखित सांकेतिक चेतावनियों के भावार्थ को समझने का प्रयास करने की अपेक्षा क्यों अक्षरश: अनुवाद चाहते हैं? तर्क की अपेक्षा कुतर्क करने के पीछे की मंशा को क्या कहा जाए? कहीं ऐसा तो नहीं कि जाने-अनजाने में धर्मनिरपेक्ष आचरण के दिखावे के चक्कर में अपनी जड़ों को अपने ही हाथों से खोद रहे हैं?

शुभेच्छु पाठकों का आभार व्यक्त करते हुए, आग्रह करती हूँ कि शाब्दिक अनुवाद एवं भावार्थ में अंतर स्वाभाविक और अपेक्षित है। 

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आस्था और विश्वास में तर्क प्रभावहीन हो जाते हैं। भगवान शिव ने जब डमरू बजाया तब पाणिनी ने उन माहेश्वरी स्वरों से सूत्रों को ग्रहण करके व्याकरण की रचना की, किसी के लिए वह ध्वनि संगीत के स्वर बनें और हो सकता है, निशाचर असुरों के लिए कर्कश गर्जना रही हो, जिस प्रकार से भारतीय संस्कृति और संस्कारों का अनुसरण, स्वच्छता, शुद्धता, सुचिता, संयमित आहार-व्यवहार, ध्यान-योग, आयुर्वेद एवं आत्मानुशासन सर्वश्रेष्ठ औषधियाँ हैं, उसी भांति वेद-पुराणों, मनुस्मृति, रामचरितमानस, भगवतगीता में वर्णित चौपाइयों, श्लोकों, सूक्तियों तथा नानक, कबीरदास, रविदास, सूरदास जैसे भविष्य दृष्टाओं की रचनाओं में वर्णित भविष्य के संकेतों को समझने की आवश्यकता हैं। 

लिखे हुए को पढ़ना, पढ़कर उसे समझना और समझकर उसकी समय एवं अवसरानुकूल व्यावहारिक जीवन में व्याख्या करना ही शिक्षण-अधिगम है और मैंने निसंदेह शिक्षिका के रूप में समाज को सार्थक संदेश देने के कर्तव्य का निर्वाह किया है। 

अति संवेदनशील पाठकों को किसी भी मंच पर चर्चा एवं प्रश्नोत्तर के लिए आमंत्रित करती हूँ।

(लेखिका प्रो. (डॉ.) सरोज व्यास, डाइनामाइट न्यूज़ की चर्चित स्तंभकार हैं। ये फेयरफील्ड प्रबंधन एवं तकनीकी संस्थान, कापसहेड़ा, नई दिल्ली में डायरेक्टर हैं। ये संपादक, शिक्षिका, कवियत्री और समाज सेविका के रूप में भी अपनी पहचान रखती है। ये इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के अध्ययन केंद्र की इंचार्ज भी हैं। पाठक इस लेख पर अपनी राय हमें  sarojvyas85@gmail.com ई-मेल कर सकते हैं)










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