मन मस्तिष्क के अंदर विचारों का फूटता ज्वार अपने चरम पर है। अभिव्यक्ति पर अब यदि विराम लगाया तो अवसाद और मानसिक कुंठा से स्वयं को बचा पाना असंभव होगा।
शनिवार, 25 जुलाई 2020, दोपहर 1:18 बजे
“लौटकर बुद्धू घर को आए”, कहावत आज की परिस्थिति में प्रासंगिक है। बचपन में पिताजी अक्सर कहते थे, पुस्तकों में संग्रहित ज्ञानवर्धक सामग्री को रटकर परीक्...
बुधवार, 22 अप्रैल 2020, शाम 5:06 बजे
स्तब्ध हूँ, नि:शब्द हूँ, किन्तु अन्तर्मन की पीड़ा के ज्वार को रोकने में असमर्थ हूँ। 14 अप्रैल को लॉकडाउन बढ़ा, अपेक्षित था और अनिवार्य भी। लॉकडाउन बढ़ने...
गुरूवार, 16 अप्रैल 2020, दोपहर 11:41 बजे
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