एनेस्थेटिक्स के ज्यादा इस्तेमाल से मरीज की मौत, डॉक्टर और हॉस्पिटल को देना होगा हर्जाना, जानिये पूरा मामला
एनसीडीआरसी ने माना कि हालांकि लापरवाही एनेस्थेसियोलॉजिस्ट की ओर से हुई लेकिन अस्पताल संबंधित दायित्व से मुक्त नहीं हो सकता। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
मुंबई: राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) ने राज्य आयोग के उस आदेश को बरकरार रखा जिसमें शहर के एक अस्पताल और एक चिकित्सक को उस वरिष्ठ नागरिक के परिवार को मुआवजे के रूप में 12 लाख रुपये से अधिक का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था। उक्त वरिष्ठ नागरिक की एक सर्जरी के दौरान एनेस्थेटिक्स के अत्यधिक इस्तेमाल के चलते मृत्यु हो गई थी।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक एनसीडीआरसी ने 29 मार्च को पीड़ित परिवार के पक्ष में महाराष्ट्र राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग द्वारा 2015 में पारित आदेश को चुनौती देते हुए चिकित्सक और अस्पताल द्वारा दायर अपील खारिज कर दी थी।
एनसीडीआरसी ने माना कि हालांकि लापरवाही एनेस्थेसियोलॉजिस्ट की ओर से हुई लेकिन अस्पताल संबंधित दायित्व से मुक्त नहीं हो सकता।
मृतक महिला की बेटी द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के अनुसार, कुसुम (66) का 21 जून, 2008 को परेल स्थित अस्पताल में हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. अजय राठौर द्वारा हाथ में फ्रैक्चर के लिए ऑपरेशन किया गया था।
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एनेस्थेसियोलॉजिस्ट डॉ मूलजी खेमजी गाड़ा थे (जिनकी राज्य आयोग के समक्ष सुनवायी के दौरान मृत्यु हो गई थी)।
इसमें कहा गया कि ऑपरेशन हालांकि सुबह किया गया, लेकिन ज्यादा एनेस्थीसिया देने के कारण मरीज को होश नहीं आया। शिकायत के अनुसार मरीज की हालत और खराब हो गई और उसे वेंटिलेटर पर रखा गया।
इसके अनुसार मरीज कुसुम बेहोशी की हालत में काफी समय तक अस्पताल में भर्ती रहीं। न्यूरोलॉजिस्ट ने सीटी स्कैन और एमआरआई करने के बाद उसके 'हाइपोक्सिक एन्सेफैलोपैथी' होने का पता लगाया। इसके बाद बेहोश मरीज को दूसरे अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां 24 अक्टूबर, 2008 को उनकी मृत्यु हो गई।
कुसुम की बेटी ने शुरुआत में जिला मंच, मध्य मुंबई के समक्ष एक शिकायत दायर की, जिसने याचिका खारिज कर दी। इसके बाद उन्होंने 2015 में राज्य उपभोक्ता आयोग का रुख किया। 2018 में, इसने उनके पक्ष में फैसला सुनाया और अस्पताल और डॉक्टर को उन्हें 12 लाख रुपये से अधिक का मुआवजा देने का आदेश दिया।
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वर्ष 2019 में, डॉक्टर और अस्पताल ने किसी भी लापरवाही से इनकार करते हुए राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के समक्ष अपील दायर की।
आयोग ने माना कि यह स्पष्ट है कि एनेस्थेसियोलॉजिस्ट ने प्री-एनेस्थेटिक परीक्षण ठीक से नहीं किया था। आयोग ने कहा, ‘‘मेरे विचार में, यह एनेस्थिसियोलॉजिस्ट की देखभाल के कर्तव्य की लापरवाही और विफलता थी, जिसने केटामाइन की अत्यधिक खुराक दी और ‘हाइपोक्सिक’ घटना का प्रबंधन करने में विफल रहा।’’
राष्ट्रीय आयोग ने कहा, ‘‘हालांकि, लापरवाही के लिए एनेस्थेसियोलॉजिस्ट जिम्मेदार था, अस्पताल संबंधित दायित्व से मुक्त नहीं हो सकता।’’