अयोध्या में गुरु पूर्णिमा के पर्व की धूम, उमड़ा आस्था का सैलाब, सरयू में लगा रहे डुबकी
शिष्यों द्वारा स्नान-दान के बाद मठ-मंदिरों में जाकर गुरु चरणों में नतमस्तक हो आस्था अर्पित की जा रही है। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
अयोध्या: बंदउ गुरुपद कंज कृपा सिंधु नर रूप हरि/ महा मोह तम पुंज जासु कृपा रविकर निकर। रविवार को रामनगरी बयांध्या में रामचरितमानस में वर्णित इस पंक्ति सहित संपूर्ण भारतीय चेतना में प्रतिपादित गुरु पद की महिमा-महत्ता गुरुपूर्णिमा के अवसर पर पूरी तरह शिरोधार्य हो रही है। भोर से ही पावन सलिला सरयू में डुबकी लगाने के लिए भक्तों का तांता लगा हुआ है। शिष्यों द्वारा स्नान-दान के बाद मठ-मंदिरों में जाकर गुरु चरणों में नतमस्तक हो आस्था अर्पित की जा रही है।
डाइनामाइट न्यूज संवाददाता के अनुसार रामनगरी अयोध्या में गुरुपूर्णिमा पर्व की पूर्व संध्या से ही श्रद्धालुओं की भीड़ गुरु पूजन के निमित्त गुरु स्थानों पर जुटने लगी भोर से ही सभी मंदिरों में शिष्यों द्वारा गुरु की पूजा-आरती कर उनके प्रति समर्पण व्यक्त किया जा रहा है। सर्वाधिक भीड़ श्रीमणिराम दास जी की छावनी में देखी जा रही है।
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यहां शिष्य लंबी कतार में लगाकर श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष व श्रीमणिराम दास की छावनी के महंत नृत्यगोपाल दास के पूजन के लिए कतारबद्ध हैं। दशरथ महल बड़ा स्थान, उदासीन ऋषि आश्रम रानोपाली, श्रीराम बल्लभाकुंज, रंगमहल, श्रीतुलसी दास जी की छावनी, रामायणम् आश्रम, श्रीमंत्रार्थ मंडपम्, लवकुश मंदिर, सियाराम किला, तिवारी मंदिर नयाघाट, सद्गुरु सदन, विअहुति भवन, हनुमत सदन, हनुमान बाग, कोशलेश सदन, अशर्फी भवन, आदि प्रमुख पीठों पर भी गुरु पूजन के लिए शिष्यों की भारी भीड उमडी हुई है।
मान्यताओं के अनुसार गुरु पूर्णिमा के दिन भगवान वेद व्यास, जिन्हें हिंदू धर्म का आदि गुरु माना जाता है, का जन्म हुआ था। वेदव्यास ने महाभारत, वेदों और पुराणों सहित कई महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथों की रचना की थी। इसके अलावा, गुरु पूर्णिमा को भगवान कृष्ण ने अपने गुरु ऋषि शांडिल्य को ज्ञान प्रदान करने के लिए चुना था।
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इसी दिन, भगवान बुद्ध ने भी अपने पहले पांच शिष्यों को उपदेश दिया था। इस दिन, लोग अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए उनके चरणों में स्पर्श करते हैं, उन्हें मिठाई और फूल भेंट करते हैं, और उनका आशीर्वाद लेते हैं। गुरु मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। कई जगहों पर, गुरु शिष्य परंपरा को दर्शाने वाले नाटक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। लोग इस दिन दान-पुण्य भी करते हैं।