होसबले ने संघ के स्वयंसेवकों से जाति आधारित भेदभाव मिटाने के लिए काम करने की अपील की
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने बृहस्पतिवार को कहा कि कहीं भी किसी भी व्यक्ति को मंदिर में प्रवेश करने का अधिकार है । पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
वड़ोदरा: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने बृहस्पतिवार को कहा कि कहीं भी किसी भी व्यक्ति को मंदिर में प्रवेश करने का अधिकार है ।
उन्होंने संघ के स्वयंसेवकों से जाति आधारित भेदभाव मिटाने का आह्वान करते हुए कहा कि इससे संपूर्ण हिंदू समुदाय की बदनामी होती है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक यहां स्थानीय स्वयंसेवकों की एक सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने देश के लोगों में ‘एकता का स्थायी भाव’ भरने की आवश्यकता पर भी बल दिया।
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आरएसएस सरकार्यवाह ने कहा, ‘‘कोई भी मंदिर में जा सकता है और हर व्यक्ति को किसी भी जलस्रोत से पानी लेने का अधिकार है। हमें जाति या अस्पृश्यता के आधार पर ऐसे भेदभाव को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे संपूर्ण हिंदू समुदाय की बदनामी होती है। ऐसी प्रथाओं का मात्र विरोध करने के बजाय हमें उन्हें मिटाने के लिए बढ़-चढ़कर काम करना चाहिए।’’
उन्होंने कहा कि जब भारतीय एथलीटों ने एशियाई खेलों में अच्छा प्रदर्शन किया तो किसी ने उनकी जाति या धर्म नहीं पूछा, तथा कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान, लोगों ने जाति -पंथ से ऊपर उठकर प्रवासी श्रमिकों की मदद की।
उन्होंने कहा, ‘‘इसी तरह, चंद्रयान-तीन मिशन की सफलता के पीछे जिन वैज्ञानिकों का हाथ है, उनकी जातियां एवं धर्म लोगों ने नहीं पूछा। यह दर्शाता है कि हमारा देश संकट हो या सफलता, एकजुट रहता है। एकता और सहयोग का भाव, केवल संकट या सफलता के दौरान नहीं, बल्कि हमेशा रहना चाहिए। भारत अतीत में दुनिया को कुछ दे पाया और उसकी एकमात्र वजह थी कि हम अपनी एकता को अक्षुण्ण रख पाए थे।’’
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किसी का नाम लिए बगैर उन्होंने कहा कि कुछ लोग सनातन धर्म को नष्ट करने की धमकी दे रहे हैं तथा आरएसएस पर हिंदुओं के पक्ष में बोलने के लिए सांप्रदायिक होने का आरोप लगा रहे हैं। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म केवल रीति-रिवाजों या उपासना पद्धति के बारे में नहीं है, बल्कि यह मानव में देव का दर्शन करना, अच्छा आचरण करना और समाज का कल्याण हासिल करना है।
उन्होंने कहा कि जिस तरह भारत और इसके लोगों ने यहूदियों, पारसियों और दलाईलामा एवं उनके अनुयायियों को शरण दी, उससे साबित होता है कि उसने ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ सिद्धांत का केवल उपदेश नहीं दिया, बल्कि उसका पालन भी किया।