कानपुर: अंग्रेजी हुकूमत में मारे गए निषादों को दी श्रद्धांजलि
कानपुर में अंग्रेजी हुकूमत में मारे गए निषादों को दी श्रद्धांजलि दी गई। इस श्रद्धांजलि को देने कि लिए हजारों की तादाद में निषाद मैस्कर घाट पहुंचे।
कानपुर: शहीद हुए निषादों की शहादत में शामिल होने के लिए देश भर से हजारों की तादाद में निषाद मैस्कर घाट पहुंचे। जहां सभी ने शहीद हुए निषादों को श्रद्धांजलि दी। 1857 की क्रांति में शहीद हुए निषादो की शहादत में शहर के मेस्कर घाट में हजारो निषादो ने एक साथ मिल कर शहीद निषादो को श्रद्धांजलि अर्पित की। इस मौके पर देश भर से आये निषाद मैस्कर घाट पहुंचकर हजारों की संख्या में रैली भी निकाली।
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सुरेश चंद्र निषाद जिला संयोजक ने बताया की 27 जून 1857 की क्रान्ति में अंग्रेज हुकूमत के लोग देश का खजाना अपनी नावों से बिठूर से कलकत्ता ले जा रहे थे। इस दौरान समाधान निषाद और लोचन निषाद ने अपने साथियो के साथ पहुंचकर इन्हें रोकने के लिए अंग्रेजो से टक्कर ली जिसमें कई अंग्रेजो को मार भी दिया गया। अपने साथियों की मौत गुस्साई अंग्रेज़ी हुकूमत ने सत्ती चौरा और उसके आस पास के करीब 167 निषादो को पकड़ कर घाट के किनारे लगे पीपल के पेड़ में कच्ची फ़ासी 31 मई 1860 को दे दी थी। जिसको लेकर आज उन शहीदों की शहादत को याद करते हुए निषाद समाज ने श्रद्धांजलि दी है।
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वही तिलक सिंह निषाद ने बताया कि देश तो आजाद हो गया लेकिन हमारे समाज के लोग जो जेलों में बंद थे उन्हें 31 अगस्त 1952 को पूर्ण आजादी मिली और जेल से रिहा किया गया। हमारा समाज आज भी बत्तर जीवन जी रहा है क्योंकि 1932 में अनुसूचित जाती की क्रम संख्या 53 पर अंकित मझवार जाती को आज भी उनका आरक्षण नहीं मिल रहा है। और हमारे निषाद जाती आज भी गुलामी के जीवन को जीने पर मजबूर है।